ग़रीब मुल्क में सड़कों की सजावट की अय्याशी- Ravish Kumar
सड़क बनाने के लिए जो ज़रूरी है, होना चाहिए मगर सजावट के नाम पर यह अय्याशी और अश्लीलता के अलावा कुछ नहीं है।
New Delhi, Mar 26 : 9 नंबर का नेशनल हाइवे तैयार होने के कगार पर है। निज़ामुद्दीन ब्रिज से शुरू होकर ग़ाज़ीपुर बोर्डर तक। पहले से काफी चौड़ा हो गया है।सड़क अच्छी बननी चाहिए, थोड़े बहुत भदेसपन के बावजूद अच्छी ही बनी है। इससे पहले राष्ट्रमंडल खेलों से पहले इसे बेहतर किया गया था जब ग़ाज़ीपुर से पहले घुमावदार फ्लाईओवर बना था।
तब शीला दीक्षित के समय सड़क की सजावट के लिए एक सुंदर सा पैदलपार पुल बना था जो टूट चुका है। निज़ामुद्दीन के पास सुंदर दिखने के लिए महँगी छतरी लगाई गई थी जो जल्दी ही पीली हो गई और समाप्त हो गई। अब तो उसे भी नए डिज़ाइन के लिए तोड़ दिया गया। पटपड़गंज के पास आम आदमी पार्टी की सरकार ने फुटओवर ब्रिज बनाया। उसे भी ध्वस्त कर दिया गया। इन सब पर करोड़ों रुपये लगे ही होंगे मगर सब पानी में। अगर सभी सरकारें सड़क की प्लानिंग मिलकर करतीं तो इतना पैसा बर्बाद नहीं होता।
अब यमुना पुल के नदी वाले हिस्से को सजाया जा रहा है। आप तस्वीरों में देखिए। जल्दी ही लोग कहेंगे कि वाह क्या सजावट है। सोलर पैनल लगा है। पौधों को पानी मिलता रहे इसकी व्यवस्था की गई है। ताकि हम शहर वालों को सुंदर लगे। इसमें भी कुछ पैसा लगा ही होगा। बताइये चार महीने बाद ये फूल पत्ती टिकेगी या टिक भी गई तो इसके लिए एक ग़रीब मुल्क का पैसा ख़र्च होना चाहिए जहां लाखों लोग आठ हज़ार से कम के वेतन पर काम कर रहे हैं। सड़क बनाने के लिए जो ज़रूरी है, होना चाहिए मगर सजावट के नाम पर यह अय्याशी और अश्लीलता के अलावा कुछ नहीं है। लैंड स्केप के नाम पर क़ुतुब मीनार और अशोक स्तंभ का घटिया मिनिएचर बनाया गया है और वाहियात तरीके से खंभों को रंगा गया है। हम सब बदहवास हो चुके हैं। एक बार सोच कर देखिए। क्या हम इतने अमीर हो चुके हैं कि सजावट की विलासिता शुरू कर दें ? फिर लोग बिना सैलरी और कम सैलरी पर काम क्यों कर रहे हैं?
नोट-कुछ का कहना है कि पोस्ट हटा दूं क्योंकि प्रदूषण को कम करने के लिए वर्टिकल गार्डन की अवधारणा चल रही है। इसमें ज़्यादा ख़र्च नहीं आता। मैं एक सीमा से आगे सजावट पर ख़र्च न करने के स्टैंड पर कायम हूं । अब यह नई जानकारी सामने आई है तो उसका भी स्वागत है।