वाराणसी : आम आदमी की कीमत पर ध्वस्तीकरण जुल्म की इन्तहा

वाराणसी : आपने पद ग्रहण करने बाद अपने नेतृत्व मे पहली बार जिस मकान को ढहाते समय सरस्वती फाटक से नेपाली खपड़ा जाने वाले सार्वजनिक मार्ग को बिना किसी पूर्व सूचना के बंद किया, उससे आमजन आक्रोश से भर उठा था।

New Delhi, Mar 31 : विवादास्पद पूर्व सीईओ की विदाई पश्चात जब आपने पद भार ग्रहण किया तब उम्मीद बंधी थी कि बतौर नये कार्यपालक अधिकारी बाबा के भक्तों के प्रति आप न सिर्फ समर्पित होगे बल्कि पिछले 35 वर्षों के दौरान मंदिर प्रशासन की ओर से किए गए मंदिरों को ध्वस्त करने जैसे पाप कर्म का प्रायश्चित भी करेगे. शुरूआत मे आपका रुख ऐसा था भी. मगर अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आप भी अपने पूर्ववर्तियो के ही पदचिन्हो पर चलते नजर आ रहे हैं. मंदिर की ओर से खरीदे गए मकानो-भवनों को जिनमें मंदिर भी है, जिस निर्ममता से ढहाया जा रहा वह घोर आपत्तिजनक होने के साथ ही लज्जास्पद भी है.

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आपने पद ग्रहण करने बाद अपने नेतृत्व मे पहली बार जिस मकान को ढहाते समय सरस्वती फाटक से नेपाली खपड़ा जाने वाले सार्वजनिक मार्ग को बिना किसी पूर्व सूचना के बंद किया, उससे आमजन आक्रोश से भर उठा था. इस नाचीज ने व्हाट्सप के माध्यम से जब अपनी आपत्ति जतायी तब आपने उत्तर मे यह आश्वासन दिया कि आगे से इस तरह की काररवाई के समय श्रद्धालुओं, विदेशी पर्यटकों और क्षेत्रीय जनता को होने वाली परेशानी को ध्यान मे रखा जाएगा और तोड़फोड़ रात्रि मे ही होगी. आप दिल पर हाथ रख कर कहें कि क्या अपने वादे पर कायम रहे ? जवाब यही आएगा – नही नही और नही.

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विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के विस्तारीकरण और सुंदरीकरण के नाम पर जिस तानाशाही अंदाज मे काम किया जा रहा है उससे यूँ लग रहा है कि मानो गली सहित सम्पूर्ण इलाका ही मंदिर प्रशासन की मल्कियत हो. एस एन त्रिपाठी की ही तर्ज पर आप भी आमजन की परेशानी को मुंह चिढाते हुए दिन मे ही गैर कानूनी तरीके से रास्ता बंद कर न सिर्फ तोड़फोड़ करा रहे हैं बल्कि अपनी ही अगुवाई मे खरीदे मकानों के पड़ोस के भवन और दुकानों को भी बेरोक टोक नुकसान पहुँचाने मे कोई कर कसर नही रख छोड रहे है.

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30 मार्च की ही बात है कि एक मकान को, जिसमे प्रमोद विनायक विराजमान है, गिराते समय बेपरवाही के चलते सामने की दुकान पर मलबा गिर गया. गनीमत यही कि जान माल की क्षति नही हुई. लेकिन सैकड़ो साल पुरानी गोपाल सरदार की दूध दही की उस दुकान का बुरा हाल हो गया. क्या यह जुल्म की इन्तहा नहीं ? आपने हालाँकि दुकान बनवाने की घोषणा की है. लेकिन क्या वादा निभाया भी जाएगा ? इसको लेकर संदेह है. जब आप सिर्फ रात्रि मे ही धवस्तीकरण का दिया अपना वचन नही निभा सके तो अब आपकी बात पर कौन भरोसा करेगा ? फिर, तोड़फोड़ का भी एक सलीका होता है. जाइए देखिए बगल के नेपाली खपड़ा मे एक आश्रम के पुनर्निर्माण के लिए पुराना ढाँचा गिराया गया, किसी को कानों कान खबर तक नही हुई, कष्ट या परेशानी तो दूर की बात है.
मंदिर प्रशासन से बार बार पूछा गया कि खरीदे भवनों को गिरा कर आप वहां क्या करने वाले हैं ? लेकिन कोई जवाब नही मिला. मेरा यही कहना है कि मंदिर सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए है इसलिए जो कुछ भी कीजिए उनकी व सैकड़ों साल से रह रहे क्षेत्रीय वाशिंदो की सुख सुविधा के साथ ही उनकी परेशानियों को सर्वोच्च वरीयता दीजिए और परमात्मा से डरिए. मत भूलिए कि आप जितने अंधेरे बढाएगे , उतनी ही आहे भी बढ़ेगी.

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)