पहले भी ऐसे ही टैक्स चोरी होती थी, तो फिर जीएसटी आने से बदला क्या?

एसटी तो सरकारी कोष तक तभी पहुंचेगी ना जब खुदरा व्यापारी रसीद काटेगा और सरकार को पता चलेगा कि अमुक वस्तु बिक गयी है और उपभोक्ता से जीएसटी वसूल ली गयी है

New Delhi, Mar 31 : जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ GST सरकारी कोष तक जिसके भी खाते से निकलकर पहुंचे निकलना उसे उपभोक्ता की जेब से ही है ( इस पर कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए). दूसरी बात जो मैं समझा हूँ वो ये कि जिस किसी वस्तु पर अधिकतम मूल्य लिखा हो उस पर GST उपभोक्ता से नहीं ली जानी है. यानि वस्तु पर लिखे गए अधिकतम मूल्य में जीएसटी जुडी हुई होती है.

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लेकिन जीएसटी तो सरकारी कोष तक तभी पहुंचेगी ना जब खुदरा व्यापारी रसीद काटेगा और सरकार को पता चलेगा कि अमुक वस्तु बिक गयी है और उपभोक्ता से जीएसटी वसूल ली गयी है. अगर निर्माता की फैक्ट्री से चोरी छिपे सामान निकले, खुदरा व्यापारी तक पहुंचे और खुदरा व्यापारी उसे बिना कोई पर्ची काटे उस पर लिखे गए अधिकतम मूल्य पर बेच दे तो यही तो हुआ कि उपभोक्ता ने तो जीएसटी दे दी लेकिन वो सरकार तक नहीं पहुँची. उसे या तो परचूनिया खा गया या फिर वो परचूनिया, डीलर और फैक्ट्री मालिक ने आपस में बाँट ली.

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मुझे लग रहा है कि ज़्यादातर मामलों में यही हो रहा है. मैंने पिछले दो महीनों में कोटद्वार (गढ़वाल, उत्तराखंड) में जितनी भी खरीददारी की है gstउसमे दुकानदारों ने दाम तो वही वसूले जो छपे हुए थे लेकिन रसीद नहीं दी. एशीयन पेंट जैसी बड़ी कंपनी के डब्बों से लेकर डॉयफ्रुट और ब्रांडेड चावल के बैग तक किसी भी माल पर मुझे रसीद नहीं मिली. मांगने पर कच्चा परचा पकड़ा दिया गया.
पहले भी ऐसे ही टैक्स चोरी होती थी. तो फिर जीएसटी आने से बदला क्या?

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हाँ, अगर फैक्ट्री में या जहाँ कहीं भी वो सामान पैक हुआ वहीं पूरी कि पूरी जी एस टी वसूल ली गयी है तो फिर तो ठीक है. लेकिन अगर परचूनिए के स्तर पर पक्की रसीद नहीं कट रही है तो इस बात की पूरी गुंजायश है कि बिना जी एस टी पेड माल की बिक्री की सामानांतर व्यवस्था जैसे पहले थी वैसी अब भी चल रही हो. इस व्यवस्था में आयकर भी चोरी हो सकता है.
कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिस वस्तु पर अधिकतम मूल्य लिखा हो उसके बारे में ये मान लिया जा रहा हो कि इस पर तो पैकिंग करने वाले से जी एस टी वसूल कर ही ली गयी है इसलिए रसीद देनी ज़रूरी नहीं है. मुझे नहीं मालूम, पर यदि कोई बंधु बता पाएं तो अच्छा रहेगा.

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)