दुनिया के मूर्खों, एक हों !

जिसने भी इस दिवस की परिकल्पना की थी, उसे ज़रूर अपनी दुनिया के अतीत, वर्तमान और भविष्य की समझ रही होगी।

New Delhi, Apr 01 : हर साल पहली अप्रिल को मनाया जाने वाला ‘मूर्ख दिवस’ सिर्फ हंसने-हंसाने भर का नहीं, हमारी मनुष्यता की अबतक की यात्रा पर थोड़ा ठहर कर सोचने का भी अवसर है। जिसने भी इस दिवस की परिकल्पना की थी, उसे ज़रूर अपनी दुनिया के अतीत, वर्तमान और भविष्य की समझ रही होगी। क्या हमें भी यह सोचने की ज़रूरत नहीं कि सदियों से अर्जित बुद्धि, ज्ञान, विज्ञान, तर्कशक्ति और होशियारी हमें कहां से कहां ले आई हैं ?

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एक ऐसे खतरनाक मोड़ पर जहां सरलता, प्रेम, करुणा, दया, भाईचारा, मानवीयता और हंसी-खुशी सब गायब है। fools day1हमारी ज़रूरत से ज्यादा समझदारी ने हमें उस मुक़ाम पर ला खड़ा किया है जहां न हम सुरक्षित हैं, न हमारी पृथ्वी, न हमारा पर्यावरण, न हमारे रिश्ते, न हमारे बच्चे और न हमारा भविष्य।

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तमाम मानवीय, सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों को ध्वस्त कर डालने की जैसे गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है हर तरफ। fools day2क्या आपको नहीं लगता कि इस अराजक, अंधे समय से निकलकर हमें एक बार फिर मासूम मूर्खताओं के बहुत पुराने दौर में लौट चलना चाहिए ?

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मानवता के उसी सहज, सरल, निश्छल दौर में जिसे हमारे पूर्वजों ने सतयुग का नाम दिया था। तो दुनिया के मूर्खों, एक हो जाओ ! fools day3अपनी दुनिया को इतने समझदारों के चंगुल से छुड़ाने के लिए चलो मूर्खताओं के एक नए दौर की शुरुआत करते हैं !

(Dhurv Gupt के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)