राजनैतिक दल, NGO और नाकारा व्यक्ति आरक्षण को जीवन-मरण और प्रतिष्ठा का सवाल बनाये हुए हैं

आरक्षण का दर्द तो सामान्य कोटा के लोग जानते हैं लेकिन आरक्षण टारगेट पूरा नही करने का भी खौफ कम नही है ।

New Delhi, Apr 04 : हरिजन, आदिवासी एक्ट में किये गए बदलाव को कुछ मूर्खो ने आरक्षण से जोड़ दिया है। जब जोड़ दिया तो हमहू सोचे कि अब इसपर भी लिखिए दिया जाए।
दुनिया मे भारत की तरह आरक्षण नीति कहीं नही है। अमेरिका में रेड इंडियन या वहां के मूलवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी लेकिन यह व्यवस्था कारगर नही हुआ तो उसे भी हटा दिया गया। ब्राजील, मलेशिया कनाडा में भी Reservation की व्यवस्था है लेकिन यह अल्पसंख्यक समुदाय या महिलाओ के लिए प्रावधान किया गया था। पाकिस्तान में धर्म के आधार पर आरक्षण है। हिन्दू ,सिख और ईसाई के लिए पाँच प्रतिशत आरक्षण है।

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जापान में जातिप्रथा है। वहां उपेक्षित जाति बुराकुमास के लिए आरक्षण है। रोमानिया ,कोरिया ,चीन ,नॉर्वे में आरक्षण नही है लेकिन कुछ वर्गों के लिए नीतियां बनी हुई है। श्रीलंका में भी ईसाई और तमिल लोगो के लिए प्रावधान है। सनद रहे यह प्रावधान Reservation नही बल्कि कुछ नीतियां है। हां बहुत से देशो में आरक्षण है लेकिन वह जन प्रतिनिधि संस्थानों में महिलाओं को लेकर। भारत की तरह जातीय और इतने बड़े पैमाने पर आरक्षण किसी भी देश मे नही है। नॉर्वे में अधिकतम 40 फीसदी आरक्षण है लेकिन वह भी महिलाओं के लिए । अमेरिका और कनाडा में वहां के मूलवासियों के लिए स्थानीय स्तर पर कुछ नीतियां बनाई गई है जिसे हम अपनी सुविधा के लिए Reservation कह सकते हैं। ऐसा नही कि विदेशों में वंचित ,पीड़ित वर्ग नही है लेकिन उनके लिए आरक्षण नही देकर नीतियां बनाई गई है। जिससे किसी दूसरे का हक़ नही मारा जाता है।

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अब भारत पर । आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने नसबंदी के लिए सभी सरकारी कर्मचारियों को टारगेट दिया था। जिसके कारण ही नसबंदी कार्यक्रम जबरन थोपने का आरोप लगाकर हड़कंप मचाया गया था। भारत मे नसबंदी के बाद Reservation ही ऐसा मुद्दा है जिसे टारगेट बनाकर लागू कराया जा रहा है। दूरदर्शन रांची में एक अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की नौकरी लगी। लेकिन उस मस्तमौला आदिवासी युवक को नौकरी वाली गुलामी रास नही आई और बिना बताए वह सिमडेगा में किसी रिश्तेदार के यहां मेहमानी खाने चला गया। अब रांची दूरदर्शन के अधिकारियों को पता चला कि युवक ने आफिस आना बंद कर दिया है तो सबके होश उड़ गए। चारो ओर दूत दौड़ाये गए कि हर हाल में उसे ढूंढकर लाया जाए । बड़ी मुश्किल से सिमडेगा में वह मिला।

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अधिकारियों ने उसके हाथ पैर जोड़े और विनती की कि वह काम भले न करे लेकिन नौकरी न छोड़े वरना बाकियो की नौकरी चली जाएगी । Reservation का दर्द तो सामान्य कोटा के लोग जानते हैं लेकिन आरक्षण टारगेट पूरा नही करने का भी खौफ कम नही है । इसलिए मैं तो कहता हूँ कि जिस तरह गैस की सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया गया उसी तरह सम्पन्न और समर्थ लोग Reservation भी छोड़े ऐसा आह्वान किया जाए। देखियेगा कि लोग सामने आएंगे और धीरे धीरे सही व्यक्ति तक आरक्षण का लाभ पहुचेगा। दिक्कत यह है कि राजनैतिक दल, एन जी ओ और नाकारा व्यक्ति इसे जीवन मरण और प्रतिष्ठा का सवाल बनाये हुए हैं। जिसके चलते Reservation को लेकर कोई कुछ कह दे तो लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। मानवाधिकार संगठन ने Reservation को नस्लवाद तक कहा है। लेकिन कोई इस छत्ते को छेड़ना नही चाहता। सत्तर साल से हम इस नस्लवाद को ढो रहे हैं । न्यूक्लिअर, पर्यावरण, मानवाधिकार, ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र दिशा निर्देश जारी करती है। क्या Reservation जैसे नस्लवाद के खिलाफ भी किसी वैश्विक संगठन के दबाव का इंतजार करें?

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैंं)