जुमलों की बाढ़ से देश के जवान और किसान तबाह हो रहे हैं- Kanhaiya Kumar

न तो खेत में खट रहे किसान को अपनी फ़सल का सही दाम मिल रहा है न उसके बेटे को सीमा पर ढंग की सुविधाएँ मिल रही हैं।

New Delhi, Apr 08 : शाह जी ने प्रधानमंत्री जी को बाढ़ कहा है। उन्होंने शायद ठीक ही कहा है क्योंकि जुमलों की बाढ़ से देश के जवान और किसान तबाह हो रहे हैं।
जिस देश में हर आधे घंटे पर एक किसान की आत्महत्या का शर्मनाक आँकड़ा हो, वहाँ धर्म की बहस को राजनीति के केंद्र में रखने की कोशिश करने वाले लोग लोकतंत्र और मानवता, दोनों के अपराधी हैं। लगभग 52% किसान परिवार कर्ज़ में डूबे हुए हैं। प्रत्येक किसान पर लगभग 47 हज़ार रुपये का औसत कर्ज़ है। 1995 से लेकर अब तक तीन लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

Advertisement

भाजपा सरकार ने 2014 से लेकर सितंबर 2017 तक कॉरपोरेट जगत का 2.41 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ माफ़ कर दिया, जबकि किसानों के 60,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ नहीं माफ़ करने के उसके पास दर्जनों बहाने हैं। जिन मसलों पर बात होनी चाहिए, उन पर बात नहीं होने देने के लिए मंदिर-मस्जिद का शोर मचाया जा रहा है।

Advertisement

न तो खेत में खट रहे Farmer को अपनी फ़सल का सही दाम मिल रहा है न उसके बेटे को सीमा पर ढंग की सुविधाएँ मिल रही हैं। जब सेना का जवान घटिया खाने की शिकायत करता है pic- kashmirतो उसे देशद्रोही कहा जाता है। जब किसान मंदसौर में पुलिस की गोलियों से मारे गए तब भाजपा के समर्थकों ने उन्हें कांग्रेसी बताया।

Advertisement

मेरा एक सवाल है। जिस देश में 1% आबादी के पास 73% संपत्ति हो, वहाँ असमानता के मसले को कब तक बहस से बाहर रखा जा सकेगा?
किसान अगस्त में संसद के सामने धरना देने की तैयारी कर रहे हैं। आइए, हम अभी से उनके अधिकारों के पक्ष में आवाज़ उठाना शुरू कर दें। मुंबई में किसान पाँव के छालों की परवाह नहीं करके रात भर सिर्फ़ इसलिए चलते रहे कि दिन में परीक्षा देने जा रहे विद्यार्थियों को परेशानी न हो। अगर सरकार और समाज की बेरुख़ी झेलते हुए इतनी संवेदना बचाने वाले किसान समाज की चिंताओं के दायरे से बाहर रहते हैं, तो ऐसे समाज का बच पाना बहुत मुश्किल है। हमें बदलाव के लिए आगे आना ही होगा।
जिए जवान, जिए किसान।

(छात्रनेता कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)