लोकपाल नियुक्ति : सर्वसम्मति की परंपरा खुद कांग्रेस ने समाप्त कर दी है

वैसे कांग्रेस को कोई जायज शिकायत है तो केंद्र सरकार को चाहिए था कि उस समस्या का जल्द समाधान करती ताकि लोकपाल की नियुक्ति का काम शीघ्र पूरा हो जाता।

New Delhi, Apr 10 : लोकपाल के चयन के लिए गत 1 मार्च को बैठक बुलाई गयी थी। उसमें शामिल होने के लोक सभा में कांग्रेस के नेता मलिकार्जुन खडगे को ‘विशेष आमंत्रित’ के रूप में आमंत्रित किया गया था। विशेष आमंत्रित को वोट देने का अधिकार नहीं है, ऐसा कह कर खड़गे उस बैठक में शामिल नहीं हुए।

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याद रहे कि तकनीकी तौर पर प्रतिपक्ष के नेता को ही वोट को अधिकार है। पर यदि खड़गे को बुलाया गया था तो उन्हें जाना चाहिए था। क्योंकि उम्मीदवारों के नाम पर वे अपनी राय तो दे ही सकते थे। वैसे भी सर्वसम्मति की परंपरा खुद कांग्रेस ने समाप्त कर दी है। वैेसे खगड़े को कोई जायज शिकायत है तो केंद्र सरकार को चाहिए था कि उस समस्या का जल्द समाधान करती ताकि लोकपाल की नियुक्ति का काम शीघ्र पूरा हो जाता। खड़गे की मांग पूरी करने में कोई कठिनाई है तो सरकार देश को बताए। दरअसल वह नियुक्ति वर्षों से अटकी हुई है। इस देरी पर तरह- तरह की चर्चाएं हो रही हैं। यदि जल्द नियुक्ति नहीं हुई तो लोगबाग इस नतीजेे पर पहुंचने को स्वतंत्र होंगे कि मोदी सरकार ही लोकपाल की नियुक्ति नहीं चाहती है।

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पर, इसके साथ ही जरा कांग्रेस भी खुद अपनी तस्वीर आईने में देख ले। मन मोहन सरकार ने मुख्य सतर्कता आयुक्त के चयन के लिए 3 सितंबर 2010 को बैठक बुलाई गयी थी। manmohan singhबैठक में प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह, गृह मंत्री पी.चिदम्बरम और लोक सभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज उपस्थित थीं।

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पी.एम. और एच.एम. ने सुषमा स्वराज के सख्त विरोध के बावजूद विवादास्पद पी. थाॅमस का नाम बहुमत से तय कर लिया। जबकि सुषमा ने कहा था कि थाॅमस के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप विचाराधीन है। ऐसे व्यक्ति को आप सी.वी.सी. कैसे बना सकते हैं ? जबकि, सी.वी.सी. को भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में लगी सारी सरकारी एजेंसियों के कामों पर ईमानदारी से नजर रखनी है और उन्हें निदेशित करना है। पर सब जानते है कि मनमोहन सरकार की कार्यशैली कैसी थी ! सुषमा स्वराज को तो उस बैठक में वोट देने का अधिकार था। उस अधिकार का भी तो कोई सुफल नहीं निकला। थाॅमस साहब नियुक्त कर दिए गए। हां, बाद में एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने थामस की उस नियुक्ति को रद कर दिया था।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)