अभियुक्तों की पहचान ‘अपराधी और उपद्रवी तत्वों’ के रूप में ही होनी चाहिए न कि ‘हिंदू’ रूप में !

कुछ ‘नासमझ किस्म के सेक्युलर’ लोगों की टिप्पणियों में बार-बार अपराधियों की ‘हिंदू’ पहचान बताई जा रही है।

New Delhi, Apr 13 : आज के दौर में कुछ लोगों को हर घटना या प्रक्रिया को धर्म-संप्रदाय के चश्मे से देखने की आदत सी हो गई है! जम्मू के कठुआ गैंगरेप और हत्याकांड के संदर्भ में कुछ हलकों में यही प्रवृत्ति देखने को मिल रही है!
अब तक जो बात सामने आई है कि बलात्कारी और हत्यारों को जम्मू क्षेत्र के कुछ ‘हिंदुत्वा-मनुवादी संगठनों’ द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है, जो बेहद अफसोसनाक है। पर मेरा मानना है कि इसके बावजूद अभियुक्तों की पहचान ‘अपराधी और उपद्रवी तत्वों’ के रूप में ही होनी चाहिए न कि ‘हिंदू’ रूप में! सोशल मीडिया पर कुछ ‘नासमझ किस्म के सेक्युलर’ लोगों की टिप्पणियों में बार-बार अपराधियों की ‘हिंदू’ पहचान बताई जा रही है। यह मूर्खतापूर्ण और खतरनाक प्रवृत्ति है, जिसका फायदा ‘हिंदुत्वा-मनुवादी संगठन’ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में कर सकते हैं! अपराधी घृणित-किस्म के खुराफ़ाती और समाज विरोधी तत्व थे। उन्हें किसी जाति या धर्म की पहचान नहीं दी जानी चाहिए। हां, उनके संरक्षक ‘हिंदुत्वा मनुवादी’ जरुर हैं!

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दूसरी बात कि वह आठ साल की बच्ची इलाके में रहने वाले बक्करवाल परिवार से थी। संयोगवश, जम्मू-कश्मीर में गूजर और बक्करवाल सौ फीसदी मुस्लिम समुदाय के हैं। Rapeगूजर और बक्करवाल में एक बारीक सा फर्क है, जो लोग अपने मवेशियों, बकरी और भेड़ आदि के साथ घूमंतू जीवन बिताते हैं, उन्हें बक्करवाल कहा जाता है और जो सरहदी या अन्य पहाड़ी इलाकों स्थायी तौर पर बसे हैं, वे गूजर कहे जाते हैं। पर दोनों बिरादरियां काफी हद तक एक सी हैं।

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इस बात को रेखांकित करना भी जरूरी है कि कुछ खास निहित स्वार्थी तत्वों की इस घटना के पीछे साज़िश जान पड़ती है, जो घुमंतू बकरवाल लोगों को वहां की जमीन से बेदखल करने की लंबे समय से कोशिश करते आ रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं किन्हीं लैंड माफिया गिरोह के इशारे पर बलात्कारी-हत्यारों ने एक मासूम बच्ची का पहले अपहरण किया। उसे एक धार्मिक परिसर में कैद करके रखा गया। बच्ची के साथ लगातार बलात्कार किया जाता रहा और अंत में मार डाला गया। धर्म की छाया में आपराधिक क्रूरता का तांडव!

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इस नृशंस आपराधिक घटना के पीछे आर्थिक और जमीन कब्जा का भी एक पहलू नजर आता है। मुझे लगता है अपराध के पीछे की तमाम वजहों की ठीक से पड़ताल होनी चाहिए। जम्मू कश्मीर में फारेस्ट एक्ट लागू नहीं है। राज्य सरकार ने भी अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की। इससे जंगलात की जमीन पर बड़े व्यवसायियों, खासकर जमीन-जायदाद के धंधेबाजों के लिए कब्जा जमाना आसान हो गया है।
यह तो गहन पड़ताल में ही पता चल सकेगा कि इस नृशंस घटना में ऐसा कोई आर्थिक-व्यवसायिक पहलू है या नहीं, पर जम्मू इलाके में यह एक समस्या जरूर है।

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)