हर बात पर मनुवादी या ब्राह्मणवादी कहकर गालियां देना नाजायज है- Yogesh Kislay

उत्तर प्रदेश में गोहत्या पर प्रतिबन्ध होगा लेकिन मेघालय में नहीं होगा। इसीलिए कुरान की तरह मनुस्मृति ‘ ABSOLUTE या COMPLETED ‘ शरीयत नहीं है।

New Delhi, Apr 15 : झारखण्ड के गढ़वा में ब्राह्मणो को दलाल ,बिचौलिया जैसे ‘उपमा ‘ से सुशोभित किये जाने के बाद यह विचार / गुस्सा आया ——–
राजनीतिज्ञ बड़ी सुविधा महसूस करते हैं कि सवर्णो को गाली देनी हो तो उसे ब्राह्मणवादी ,मनुवादी, ढोंगी जैसे विशेषण दे दे। लालू यादव ,मायावती, मुलायम सिंह यादव की राजनीति का आधार ही यही रहा है। पहले मनुवाद को समझिये। मनु आदिपुरुष हैं। मनु की चर्चा होती है तो स्वयम्भुव मनु ,वैवस्वत मनु और प्राचनेस मनु के बीच विभ्रम होता है। दरअसल वेदव्यास, कालिदास, शुक्राचार्य की तरह बाद में मनु एक उपाधि / पदवी बन गया। इसलिए मनु दरअसल स्वायम्भुव मनु या आदि मनु ही मूल मनु थे। इन्होने प्रचलित सामाजिक प्रथाओं का दस्तावेज बनाया। इसमें काल ,पात्र और स्थान के हिसाब से समाज के नियम – परिनियम बनाये। संस्कार ,व्रत ,धर्म ,राजधर्म , अभक्ष्य -भक्ष्य ,सन्यास ,वृत्ति ,गति ,कर्म ,दोष ,प्रायश्चित सभी के प्रावधान और संविधान बनाये। लेकिन इनके प्रावधानों में कटटरता कहीं नहीं थी। मसलन एक सूत्र ये है —–‘अनुमंता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी। संस्कर्त्ता चोपहर्त्ता च खादकश्चेति घातका: ‘

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मतलब , मारने की आज्ञा देने, मांस के काटने, पशु आदि के मारने, उनको मारने के लिए खरीदने और बेचने, मांस के पकाने, परोसने और खाने वाले – ये आठों प्रकार के मनुष्य घातक, हिंसक अर्थात् ये सब एक समान पापी हैं। — वहीँ मनुस्मृति में एक श्लोक यह भी है —नियुक्तस्तु यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः। स प्रेत्य पशुतां याति सम्भावनेकविंशतिम। — मतलब ,जो व्यक्ति श्राद्ध और मधुपर्क में नियुक्त हो मांस नहीं खाता हो वह बीस जन्मो तक पशु योनि में जन्म लेता है। — मनुस्मृति के सिद्धांतो में इतना विरोधाभास क्यों है इसे भी समझना चाहिए। सनातन धर्म का फैलाव इतना अधिक था कि प्रकृति भी आपस में विरोधाभासी हो गयी थी।

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कहीं का जीवनचर्या पहाड़ पर आधारित था तो कहीं पर समुद्र पर। कहीं मरुभूमि थी को कहीं हरी भरी उपजाऊ जमीन। ऐसे में एक ही सिद्धांत पर बने रहना संभव नहीं था। इसलिए मनु ने इतने विकल्प दिए थे कि काल , पात्र और स्थान के हिसाब से सूत्र लागू किये जाये। इस्लाम में यह सुविधा नहीं है। कुरान और हदीस में जो लिख दिया गया वह अल्ला का आखरी फरमान। कुरान – हदीस भी इस्लाम के आदिपुरुष की ही जुबान है जिसे बाद में दस्तावेज बनाये गए। अगर खाड़ी के मरुस्थल में पानी की कमी के चलते वजू करने का कोई नियम निकाला गया तो वही नियम बारिश से डूबे इलाके में भी लागू होगा। जो अरब में लागू होगा वही भारत में। लेकिन मनु ने सुविधा दी है , जो बिहार में लागू होगा वह मिजोरम में लागू नहीं भी हो सकता है।

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उत्तर प्रदेश में गोहत्या पर प्रतिबन्ध होगा लेकिन मेघालय में नहीं होगा। इसीलिए कुरान की तरह मनुस्मृति ‘ ABSOLUTE या COMPLETED ‘ शरीयत नहीं है। मनुस्मृति को नहीं मानने वाले या पूर्वाग्रह से उसे जला डालने वाले विक्षिप्त ज्ञानी रहे होंगे। इसीलिए हर बात पर मनुवादी या ब्राह्मणवादी कहकर गालियां देना नाजायज है। ब्राह्मणो की अपनी भूमिका थी। मनुस्मृति में ही कहा कि मनुष्य जन्मना शूद्र होता है लेकिन कर्म के आधार पर चार वर्ण तय किये जाते हैं। आप मनुवादी कहकर गाली देने की हिम्मत तो रखते हैं लेकिन क़ुरानवादी कहकर बोल के देखिये ? और उतना दूर भी क्या जब जाति के नाम पर गालिया बनानी हो तो तेलीवादी ,अहीरवादी ,चमारवादी ,दुसाधवादी ,डोमवादी जैसे शब्द /गलियां भी बननी चाहिए। आज तेली समाज का रहनुमा कहकर कोई गर्व कर सकता है तो ब्राह्मण समाज का नेता बनकर कोई गर्व क्यों नही करे ? अगर ब्राह्मण दलाल है तो बाकी जात परमहंस हैं क्या ? देश और समाज हित में ब्राह्मणो का जो योगदान रहा है उसका सानी कौन है। वामपंथ हो या दक्षिण पंथ , अभिजात्य हो या दलित हो ,समाजवादी हो या मध्यमार्गी सबका नेतृत्व ब्राह्मणो ने किया क्योंकि उसमे कूवत है। कूवत केवल दबंगई के कारण नहीं बल्कि सबको साथ लेकर चलने की समझ और चरित्र के चलते। मायावती हो या लालू यादव या मुलायम या अमित शाह या राहुल गाँधी सबके रहनुमा ब्राह्मण रहे। बिना सुर्खिया पाए ,बिना प्रसिद्धि पाए ,बिना लाम काफ के उन्होंने समाज की सेवा की । कभी यह नहीं कहा कि मैं ब्राह्मण हूँ इसलिए मुझे नेतृत्व दो। नारद से लेकर चाणक्य तक और आधुनिक भारत में ब्रजेश मिश्रा से नृपेंद्र मिश्रा या अजित डोभाल तक देश और समाज के लिए निष्पृह भाव से कर्म करते हैं। जिसने जरुरत बताई ,निष्ठा दिखाई ब्राह्मणो ने उनकी मदद की। अकेले दम पर तेलीवाद और अहीरवाद चलाकर देख लीजिये। औकात पता चल जायेगा। मनुवाद को जो नहीं जानते ,ब्राह्मणवाद को जो नहीं जानते उन्हें रहनुमाई का अवसर मिलेगा तो अनर्गल ही निकलेगा न। अब से जो मनुवाद और ब्राह्मणवाद का मजाक उडाता है वह पहले क़ुरानवाद , ईसाईवाद ,तेलीवाद ,अहीरवाद की सही व्याख्या करके दिखाए तब जाने …….. बाआत करते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)