चार्ली चैपलिन : जिसने बला की गरीबी के बाद पैसे औऱ शोहरत की इंतहां देखी

अपना देश और शहर छोड़कर परदेस में इसलिए जान खपा रहा था ताकि गरीबी के अभिशाप से जान छुड़ा सके।

New Delhi, Apr 16 : बचपन से उसे मेहनत करने की आदत थी। ना करता तो ज़िंदा बच पाना मुश्किल था। वो अपना देश और शहर छोड़कर परदेस में इसलिए जान खपा रहा था ताकि गरीबी के अभिशाप से जान छुड़ा सके। पांच महीने की जी तोड़ मेहनत के बाद वो फिलाडेल्फिया से ऊबने लगा था। एक हफ्ते की छुट्टी पर जाने का मौका मिला तो उसने ज़िंदगी में पहली बार अमीरों की तरह बर्ताव करने की ठानी। अच्छा एक्टर था इसलिए वैसी एक्टिंग करने भी लगा। तुरत-फुरत एक शोरूम में पहुंचा और पाई-पाई बचाने की कंजूसी के उलट महंगा ड्रेसिंग गाउन और 75 डॉलर का शानदार सूटकेस खरीदा।

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दुकानदार ने प्रभावित होकर सूटकेस घर पर ही भिजवाने का प्रस्ताव रखा तो उसे अचानक अहसास हुआ कि वो किसी पिरामिड के शीर्ष पर खड़ा है। ज़िंदगी उसके साथ ऐसे अदब से कभी पेश नहीं आई थी। इसके बाद उसने शहर के सबसे महंगे होटल का रुख किया। डर्बी टोप पहन शान से छड़ी घुमाते हुए उसने होटल एस्टॉर में प्रवेश किया। अमीरी और शानो शौकत के साथ सहज नहीं था इसलिए जगमगाहट देख थोड़ी देर के लिए घबराहट हुई। डेस्क पर संभलकर अपना नाम दर्ज कराया और जब कमरे का एक दिन का किराया पता किया तो पैसा एडवांस में जमा करने की पेशकश की। अब तक सरायों और सस्ते होटलों में ठहरने का तजुर्बा उसका पीछा कर रहा था।

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गरीबी का भूत चारों तरफ नाच रहा था और वो था कि दौड़े चला जा रहा था। दमकती लॉबी से गुज़रा तो मन भर आया। कमरे में पहुंचकर बाथरूम के हर आइने और नल का मुआयना करने लगा। हाथों से सब कुछ छूकर देखता रहा। वो अपना हर पैसा वसूल लेना चाहता था। अपने पैसों पर ऐश करने का उसका पहला मौका था। नहा धोकर कुछ पढ़ने की इच्छा हुई लेकिन फोन करके अखबार तक मंगाने का आत्मविश्वास खुद में पैदा नहीं कर सका। कुछ रुक कर कपड़े पहने और बाहर निकल आया। वो किसी सम्मोहन में बंधा डिनर हॉल तक पहुंच गया। वेटर ने एक टेबल तक उसे गार्ड किया और पल भर बाद वो फिर से अदब की दुनिया के पिरामिड पर बैठा था।

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वेटरों की फौज उसे ठंडा पानी, मेन्यू, मक्खन और ब्रेड पेश कर रही थी। वो बेचारा संभल कर अपनी सबसे उम्दा अंग्रेज़ी बोल रहा था। खा-पी कर उसने एक डॉलर की बड़ी टिप दी। वो कमरे में लौट फिर बाहर निकल आया। उसके भीतर कुछ तो था जो बाहर आने को खदबदा रहा था। समझ वो भी नहीं पा रहा था कि ये ज्वालामुखी आखिर किस वजह से फटना चाहता है। चलते-चलते मेट्रोपॉलिटन ओपेरा पहुंच उसने ना जाने क्यों जर्मन ग्रैण्ड ओपेरा का टिकट खरीदा। उसे ये कभी पसंद नहीं था। जर्मन भाषा में ओपेरा चलता रहा और वो ऐसे ही बैठा रहा। जैसे ही रानी के मरने का दृश्य आया अचानक फूट-फूट कर रोने लगा। आसपास कौन है और क्या सोच रहा है उसे कुछ खबर नहीं थी। वो बस रोये चला जा रहा था। वो तब तक रोया जब तक बदन की ताकत बाहर नहीं निकल गई। आखिरकार निढाल होकर उसे चैन मिला.
ये चार्ली चैप्लिन था जिसने बला की गरीबी के बाद पैसे औऱ शोहरत की इंतहां देखी और आज मेरी जान का जन्मदिन है.

(नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)