सर्प क्यों इतने चकित हों, दंश का अभ्यस्त हूं…

प्रसून अब घालमेल कर रहे हैं. वे भाजपा और मोदी के लिए एड कैंपेन तैयार करते हैं और उसे टॉक शो के रूप में पेश करते हैं. कल रात का दो घंटे का पूरा वीडियो एक ऐड कैंपेन था।

New Delhi, Apr 19 : ये पंक्तियां उस कविता की है, जिसे गीतकार और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के अध्यक्ष और 2014 आम चुनाव में बीजेपी के प्रचार अभियान के लिए बेहतरीन जिंगल लिखने वाले पद्मश्री प्रसून जोशी ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए लिखा है. यह कविता कल उन्होंने दो घंटे के लाइव कार्यक्रम भारत की बात में मोदी को सुनायी और पूरे देश ने सुना. अब इस कविता में सर्प कौन है और विष को हलाहल समझ कर कंठ में जगह देने वाला शिव किसे कहा गया है, यह बताने की जरूरत नहीं है. हां, मेरे जैसे लोगों को बिहार के नेता ब्रह्मदेव आनंद पासवान याद आ गये, जिन्होंने लालू चालीसा लिखी थी और लालूजी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया था. हालांकि वहां वे साल भर ही रह पाये, मगर नेता बन गये और आज संभवतः हम पार्टी के प्रवक्ता हैं.

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लालू चालीसा की पंक्तियां मुझे याद नहीं हैं. मगर उसमें शायद ही वैसा ओज हो जैसा प्रसून जोशी की कविताओं गीतों में होता है. मैं सबसे पहले इस बात के लिए क्षमा मांग लेता हूं कि इस पोस्ट के जरिये मेरा इरादा कतई ब्रहमदेव पासवान को प्रसून जोशी के समतुल्य बताना नहीं है. कई यादगार गीतों के रचयिता हैं प्रसून. वे मूलतः कवि हृदय हैं. हालांकि वे असल में विज्ञापन की दुनिया के आदमी हैं. संभवतः वे अभी भी जानी मानी विज्ञापन एजेंसी मकेन इंडिया के सीइओ हैं. उनकी प्रतिभा की तो बात ही अलग है.
एक कवि और गीतकार का किसी विज्ञापन एजेंसी का सीइओ होना किसी सूरत में गलत नहीं. और एक कवि को अपनी पेशेवर जिंदगी में लालू चालीसा या मोदी चालीसा टाइप गीत लिखने पड़ सकते हैं, क्योंकि वह उसकी रोजी-रोटी है, इसमें भी कोई विरोध नहीं है. मगर मामला साफ होना चाहिए.
यह साफ होना चाहिए कि आपकी फलां कविता विज्ञापन है, फलां अपने हृदय की आवाज. जैसा कि हम अखबार वाले खबरों और विज्ञापनों के क्लासिफिकेशन में फर्क रखते हैं. कई क्लाइंट हमें विज्ञापनों को खबरों के रूप में छापने का आग्रह करते हैं, मगर तब भी हम उस खबरनुमा विज्ञापन को लेआउट या फांट के जरिये अलग करते हैं और उसमें कहीं यह लिख देते हैं कि यह विज्ञापन है. यह नियम है, यह नीति है.

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मगर प्रसून अब घालमेल कर रहे हैं. वे भाजपा और मोदी के लिए एड कैंपेन तैयार करते हैं और उसे टॉक शो के रूप में पेश करते हैं. कल रात का दो घंटे का पूरा वीडियो एक ऐड कैंपेन था. जो बहुत प्रोफेशनली तैयार किया गया और उस ऐड कैंपेन में बहुत चतुराई से लोगों की हताशा को लोगों के अधैर्य और बढ़ती भूख बताने की कोशिश की गयी. यह साबित करने का प्रयास किया गया कि पहले कोई काम नहीं होता था. अब काम हो रहा है तो लोगों को लगने लगा है कि और काम होना चाहिए. इसलिए लोग परेशान हैं.
जबकि सच यही है कि अब लोग चाहने लगे हैं कि अच्छे दिन के बदले पिछले तथाकथित बुरे दिन ही सही सलामत वापस कर दिये जायें. जहां जीना इतना कठिन नहीं था. खैर, यह एक अलग मसला है.

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ब्रह्मदेव पासवान ने जब लालू चालीसा लिखी थी तो कतई इसे गंभीर साहित्य साबित करने की कोशिश नहीं की थी. उसकी चाटुकारिता की बेशर्मी जगजाहिर थी. मगर प्रसून चाटुकारिता भी करते हैं और अपने व्यक्तित्व की आभा भी बनाये रखना चाहते हैं. वे किसी पार्टी का विज्ञापन करते हैं और बदले में पार्टी उसे कभी पद्मश्री देती है, कभी सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष बना देती है, तो कभी दूसरी सुविधाएं देती हैं. अगर कोई विज्ञापन एजेंसी पार्टी का विज्ञापन करे तो उसका कंपसेशन सरकार जनता के पैसों से क्यों करे.
यह पता किया जाना चाहिए कि आखिर भारत की बात कार्यक्रम का निर्माता कौन था और इसके लिए पैसा किस मद से खर्च किया गया? क्या यह पैसा भाजपा ने दिया या भारत सरकार के जनसंपर्क विभाग ने. यह बात साफ होनी चाहिए कि मोदी के पर्सनल ब्रांडिंग के लिए सरकारी खाते से पैसा खर्च न हो. अगर कोई इलेक्शन कैंपेन टाइप की चीज बने तो वह पार्टी के पैसे से बने और यह साफ हो कि यह प्रचार है. कोई टॉक शो नहीं. यह साफ न होना ही कल के आयोजन की सबसे बड़ी गड़बड़ी है. बांकी तो ब्रहमदेव पासवान को लालू ने डंके की चोट पर राज्यसभा भेजा था, मोदी भी प्रसून को भेज सकते हैं. अब चाहे प्रसून सचिन तेंदुल्कर से सीख सकते हैं, जो राजनीतिक कारणों से राज्यसभा भेजे गये और अपनी क्रेडिबिलिटी और इमेज का सत्यानाश कर बैठे. आखिरकार प्रसून की ऐड एजेंसी इमेज मैनेजमेंट का भी काम करती है…

(पोस्ट के साथ कविता वाला वीडियो मैंने जानबूझ कर नहीं लगाया है, इस प्रचार अभियान का हिस्सा नहीं बनना चाहता। यह तस्वीर लालू चालीसा लिखने वाले ब्रह्मदेव पासवान की है, प्रसून चाहें तो इस चेहरे में अपना चेहरा देख सकते हैं।)

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)