कर्नाटक चुनावः भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए देवगौड़ा का खास मतलब !

भावी सत्ता में साझेदारी को लेकर अभी ठोस बात भले नहीं हुई है पर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में भाजपा राज्य में कांग्रेस को सत्ता से वंचित करने के लिए कुछ भी कर सकती है।

New Delhi, Apr 21 : कर्नाटक में चुनाव की बढ़ती सरगर्मी के बीच अब भारतीय जनता पार्टी को यह बात समझ में आ गई है कि यहां चुनाव जीतना उसके लिए उतना आसान नहीं है, जितना वह शुरू में सोच रही थी। ऐसे में उसने अपनी चुनाव रणनीति में कुछ बदलाव किये हैं। पार्टी नेताओं के तेवर और अंदाज से भी इस बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। वह हर कीमत पर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की रणनीति पर काम कर रही है और इसके लिए उसका सारा जोर हैः एक त्रिशंकु विधानसभा की नौबत पैदा करना। इस रणनीति में जनता दल(एस) की अहम् भूमिका देखी जा रही है। समझा जाता है कि भाजपा के कुछ उच्चस्थ सूत्र जनता दल(एस) के प्रमुख नेताओं से संपर्क बनाये हुए हैं। भावी सत्ता में साझेदारी को लेकर अभी ठोस बात भले नहीं हुई है पर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में भाजपा राज्य में कांग्रेस को सत्ता से वंचित करने के लिए कुछ भी कर सकती है। औपचारिक टिप्पणी में जनता दल(एस) के नेता भाजपा के साथ किसी तरह के गठबंधन या साझेदारी की संभावना से साफ इंकार कर रहे हैं। पर यह बात सबको मालूम है कि सत्ता की बात आने पर चुनाव से पहले के वायदे और बाद की असलियत में फर्क हो जाता है।

Advertisement

जनता दल(एस) के शीर्ष नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा इन दिनों भाजपा के मुकाबले कांग्रेस पर ज्यादा हमलावर हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि उनकी नाराजगी कांग्रेस से ज्यादा सिद्दारमैय्या से है। उनके पास कहने को यह दलील भी है कि राज्य में कांग्रेस की सत्ता है, इसलिए उसे हराना उनका मकसद है। वह भाजपा से किसी तरह की समझदारी या तालमेल की संभावना से साफ इंकार करते हैं। यह बात देवगौड़ा अच्छी तरह जानते हैं कि राज्य में कहीं भी अगर इस तरह का संदेश गया कि उनकी पार्टी सत्ता के लिए भाजपा से चुनाव-बाद गठबंधन या तालमेल कर सकती है तो मुस्लिम समुदाय के वोट उनकी पार्टी को नहीं मिलेंगे। जनता दल(एस) के मुख्य आधार कहे जाने वाले वोकलिंगा-बहुल कई इलाकों में मुस्लिम समुदाय के भी अच्छे-खासे वोट हैं। दलितों को रिझाने के लिए जनता दल(एस) ने सुश्री मायावती की बसपा से गठबंधन किया है।

Advertisement

पर कर्नाटक में दलितों का बड़ा हिस्सा फिलहाल कांग्रेस की तरफ मुखातिब नजर आ रहा है। कांग्रेस में यहां स्वयं भी कई प्रमुख दलित नेता हैं। इनमें सबसे प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। वह लोकसभा में इस वक्त कांग्रेस संसदीय दल के नेता हैं और यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। माना जाता है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में कांग्रेस खड़गे को आगे करके देवगौड़ा की पार्टी को भाजपा के पाले में जाने से रोकना चाहेगी। बंगलुरू स्थित कई राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस को अपने बल पर बहुमत नहीं आया तो वह खड़गे को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर जनता दल(एस) के विधायकों का समर्थन लेने में सफल हो सकती है। अगर सुश्री मायावती की पार्टी को कुछ कामयाबी मिलती है तो उनके लिए भी खड़गे को नजरंदाज करना मुश्किल हो जायेगा। लेकिन कांग्रेस निर्वतमान मुख्यमंत्री सिद्दारमैय्या को तभी पीछे करेगी, जब चुनाव में उसे बहुमत नहीं मिलता है। बहुमत पाने की स्थिति में उसकी पहली पसंद सिद्दारमैय्या ही हैं, जिनसे देवगौड़ा बीते कई सालों से बुरी तरह चिढ़ते हैं।

Advertisement

चुनावी परिदृश्य में फिलहाल कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है। अगले सप्ताह से प्रधानमंत्री मोदी की जनसभाओं का दौर शुरू होने वाला है। gowdaभाजपा के स्थानीय नेताओं को यकीन है कि इससे माहौल कुछ बदलेगा। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करते हुए ‘भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार’ देने का भाजपा का नारा पूरे कर्नाटक में मजाक सा बन गया है। हाल के वर्षों में लिंगायतों के बीच पहली बार कांग्रेस ने बड़ी सेंध लगाई है। ऐसे में चुनाव दिलचस्प हो गया है।

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)