तनाव की धरती पर प्यार के अंकुर- Upendra Rai

कभी उ. कोरिया और द. कोरिया को दो देशों के रूप में बांटने वाली शक्तियों में अमेरिका और सोवियत संघ ही शामिल थे।

New Delhi, Apr 22 : कोरियाई देशों की सीमा पर मोहब्बत का माहौल बनने जा रहा है। अपने किस्म के अनूठे सम्मेलन में उत्तर और दक्षिण कोरिया एक-दूसरे के करीब आएंगे। 70 साल पहले की यादें संजो कर रखने वाली पीढ़ी तो अब नहीं रही, मगर दो बिछड़े भाई एक-दूसरे से जब गले लगेंगे तो निश्चित रूप से उनकी धड़कनें एक-दूसरे को पहचान लेंगी। जब दो भाई मिलने और साथ रहने का फैसला करेंगे, दुश्मनी भुलाने और मित्रता का पण्रलेंगे तो दोनों भाइयों के परिवार भी इसी भावना के साथ एक-दूसरे का स्वागत करेंगे। काश! ये सब जल्द हो जाता। मगर, अभी सब्र रखिए। कभी उ. कोरिया और द. कोरिया को दो देशों के रूप में बांटने वाली शक्तियों में अमेरिका और सोवियत संघ ही शामिल थे। अब सोवियत संघ नहीं रहा, लेकिन उसके उत्तराधिकारी रूस की तुलना में उ. कोरिया को चीन का साथ अधिक मिल रहा है। वहीं द.कोरिया के साथ हमेशा से अमेरिका का आशीर्वाद रहा है और उसी के साथ जापान का प्यार भी। पहले उत्तर और दक्षिण दोनों कोरिया जापान का ही हिस्सा थे। मगर, 1945 में पराजय के बाद जापान को कोरिया से हटना पड़ा था, जब सोवियत संघ और अमेरिका ने कोरिया की बंदरबांट कर ली थी।पश्चिम प्रभावित मीडिया अब तक यही अलापता रहा है कि उ.कोरिया विकास में बहुत पिछड़ चुका है, जबकि द. कोरिया ने जबरदस्त तरक्की की है।

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मगर, ये बात हजम नहीं होती क्योंकि कोई पिछड़ा देश हथियारों के मामले में इतनी तरक्की नहीं कर सकता कि अमेरिका को अपनी शतरे पर झुकने के लिए बाध्य कर दे। उ.कोरिया के तानाशाह बताए जाते रहे शासक किम जोंग उन ने अमेरिकी राष्ट्रपति से उसी भाषा में बात की जिस भाषा में ट्रम्प ने उनके साथ बात की। एक समय तो ऐसा था जब वाकयुद्ध होते होते ऐसा लगने लगा था कि अब युद्ध हुआ कि तब युद्ध हुआ। महाशक्ति अमेरिका ही नहीं, जापान के आसमान का बार-बार उल्लंघन करके उ.कोरिया ने उसे भी खूब ललकारा। अब अगर ऐसी स्थिति बनी है कि अमेरिका-उ.कोरिया में बातचीत के हालात बने हैं, दोनों कोरियाई देश साझा सम्मेलन कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से इसका श्रेय भी किम जोंग उन को ही दिया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि उ.कोरियाई राष्ट्रपति किम ने हाल में जब चीन की यात्रा की, तो राष्ट्रपति के रूप में यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी।दोनों देशों के बीच सुलगती दुश्मनी की आग अभी हाल ही में बुझनी शुरू हुई है। ये माहौल द.कोरिया के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर चुंग एइयोंग के उ.कोरिया दौरे के बाद बनना शुरू हुआ।

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2011 में सत्ता सम्भालने के बाद से उ.कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन के लिए भी द. कोरिया के अधिकारियों के साथ मुलाकात का यह पहला मौका था। एक तरह से द.कोरिया ने उ.कोरिया और अमेरिका के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाई।इस पहल के साथ ही अमेरिका को उ.कोरिया का ये संदेश साफ तौर पर दे दिया गया कि अगर सैन्य खतरे की स्थिति खत्म हो जाए तो उ.कोरिया परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम स्थगित करने को तैयार हो सकता है। हालांकि, अमेरिका उ.कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर पूरी तरह से रोक चाहता है लेकिन उ.कोरिया के रु ख में ताजा बदलाव का स्वागत करने के लिए अगर अमेरिका तैयार हुआ है तो इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां और कारण हैं जहां अमेरिका दबावों का सामना कर रहा है। द.कोरिया की सत्ता में पिछले साल ही बदलाव हुए थे। तब से द.कोरिया का रु ख पड़ोसी देश के साथ सहयोगात्मक रहने लगा है। अब जबकि उ.कोरिया ने भी ऐसी ही इच्छा सामने रख दी है, तो हालात बदलते दिख रहे हैं। अमेरिका अब तक चीन को इस बात के लिए दोषी ठहरा रहा था कि वह उ.कोरिया की गुपचुप मदद कर रहा है, वहीं अमेरिका अब सबकुछ भूल कर उ.कोरिया के साथ बातचीत तक को तैयार दिख रहा है। यह दरअसल उ.कोरिया की कूटनीतिक जीत है। अब जो भी बातचीत होगी वह उ.कोरिया की पहल पर होगी। इससे पहले अमेरिका जिस बातचीत का दबाव डाल रहा था, उससे प्रभावित होने पर उ.कोरिया की सम्प्रभुत्ता खतरे में पड़ सकती थी।अब कोरिया के उत्तर और दक्षिणी हिस्से के लोग एक होने को बेकरार हैं। विंटर ओलम्पिक के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव में कमी आई थी। उ.कोरिया ने अपने खिलाड़ी द.कोरिया भेजे और एक साझा टीम भी बनी थी। यह फरवरी महीने की घटना है। उसके बाद से ही दोनों देशों के बीच उच्च स्तर पर कई राउंड की सफल बातचीत हुई है।

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दोस्ती के इस मौसम में राष्ट्रीय पुनर्एकीकरण की र्चचा ने माहौल को रोमांटिक बना दिया है।कोरिया में शांति का असर अमेरिका-चीन के बीच संबंधों पर भी पड़ेगा जो खुलकर ट्रेड वार कर रहे हैं। हालांकि इस घटना से सीरिया को लेकर रूस के साथ बनी तनावपूर्ण स्थिति में कोई फर्क पड़ने नहीं जा रहा है। लेकिन यह पहल अमेरिका के लिए इसलिए राहत भरी है, कि अगर सीरिया के साथ साथ उ.कोरिया के साथ भी उसके रिश्ते लगातार तनाव भरे बने रहते, तो रूस और उ.कोरिया मिलकर अमेरिका की मुश्किलें और बढ़ा सकते थे। सच यही है कि उ.कोरिया ने अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति का अपने देश के हित में बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए अमेरिका को अपनी शतरे पर बातचीत की मेज तक लाने में सफलता हासिल की है। यह उ.कोरिया को बिना युद्ध लड़े ही मिली बड़ी जीत है।उ.कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन ने पिछले दिनों ही चीन की गोपनीय यात्रा की थी। किम ने वर्षो बाद उसी ट्रेन से फिर यात्रा की जिस ट्रेन पर सवार होकर कभी वे अपने पिता तत्कालीन राष्ट्रपति किम इल जोंग के साथ 2011 में चीन आए थे। यह यात्रा कितनी गोपनीय थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब तीन दिन बाद यात्रा के फुटेज जारी हुए तब दुनिया को इस बारे में जानकारी हुई। इससे यह संदेश भी साफ हो गया कि अगर अमेरिका उ.कोरिया के साथ किसी तरह की बातचीत करता है, तो उसे चीन का खयाल रखना पड़ेगा। और यह भी कि उ.कोरिया अकेला नहीं है, बल्कि उससे छेड़छाड़ पूरी दुनिया के लिए आग में हाथ डालना साबित हो सकता है। किम को निमंत्रित करके चीन यह भी संदेश देना चाहता था कि उ.कोरिया के साथ दोस्ती रखने के लिए अमेरिकी धमकियों की परवाह क्यों की जाए? उ.कोरिया ने एक साथ कई मोर्चो पर कदम बढ़ाए हैं। परमाणविक और मिसाइल कार्यक्रमों के जरिए उसने अपने देश को विश्व की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया है। द.कोरिया से एकीकरण की बात, चीन की यात्रा, द. कोरिया की मध्यस्थता से अमेरिका से बातचीत की पहल और अपनी शतरे पर परमाणु कार्यक्रम छोड़ने की इच्छा- ये कुछेक ऐसी बातें हैं जो किम जोंग उन की परिपक्वता का सबूत हैं। अगर दोनों कोरिया एक होने की दिशा में आगे बढ़े और 70 साल की दुश्मनी छोड़ने को तैयार हो गए, तो यह तनाव की जमीन पर दोस्ती के बीज बोने की शुरु आत होगी, जिस पर भविष्य की अच्छी फसल उगाई जा सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)