महाभियोग : कांग्रेस का दुस्साहस- V P Vaidik

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ यह महाभियोग कांग्रेस समेत छह राजनीतिक दलों की ओर से पेश किया गया है। आश्चर्य है कि कांग्रेस को सिर्फ छह ही विरोधी दल मिले।

New Delhi, Apr 22 : स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली घटना है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को महाअभियुक्त के कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। महाअभियुक्त के लिए महाभियोग ! मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ यह महाभियोग कांग्रेस समेत छह राजनीतिक दलों की ओर से पेश किया गया है। आश्चर्य है कि कांग्रेस को सिर्फ छह ही विरोधी दल मिले, यह एतिहासिक कार्रवाई करने के लिए। बाकी लगभग दो दर्जन दलों ने कांग्रेस की इस महान पहल को नापसंद क्यों कर दिया ? नापसंद तो पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहनसिंह ने भी इसे पहले ही कर दिया था।

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कांग्रेस पार्टी के जो कानूनी दिग्गज हैं, वीरप्पा मोइली, चिदंबरम, सलमान खुर्शीद और अश्वनी कुमार (पूर्व कानून मंत्री) जैसे लोगों ने भी उस याचिका पर दस्तखत करने से मना कर दिया, जो राज्यसभा के सभापति वैंकय्या नायडू के पास भेजी गई है। कांग्रेस-जैसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में इसे बगावत से कम क्या कहा जाए लेकिन फिर भी कांग्रेस के मालिकों ने अपनी बाल-बुद्धि लगाई और नायडू के अभिमत के लिए उस याचिका को भेज दिया। उसे लोकसभा की अध्यक्षा को क्यों नहीं भेजा गया ? इसीलिए कि वहां उस याचिका पर कम से कम 100 सांसदों के दस्तखत जरुरी थे। वे मिलते या नहीं मिलते ?

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राज्यसभा में तो सिर्फ 50 की जरुरत होती है। इससे क्या सिद्ध होता है ? क्या यह नहीं कि यदि इस महाभियोग पर मतदान हो गया तो कांग्रेस बुरी तरह से पिट जाएगी, क्योंकि 2/3 बहुमत के बिना यह पास नहीं हो सकता ? क्या कांग्रेस के नेता इतनी-सी बात भी नहीं समझते ? क्या वे बुद्धू हैं ? नहीं, वे इस मुकदमे के जरिए यह सिद्ध करना चाहते हैं कि भारत की न्यायपालिका, भारत सरकार के इशारों पर नाचती है। इसीलिए उसने अनुसूचित-रक्षा कानून में संशोधन कर दिया, सोहराबुद्दीन मामले में भाजपा-अध्यक्ष अमित शाह को बचाने की कोशिश कर रही है, असीमानंद व गुजरात की भाजपा नेता माया कोडनानी की रिहाई और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा मनमानी कर रहे हैं।

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उस याचिका में जस्टिस मिश्रा के विरुद्ध जो पांच आरोप लगाए गए हैं, उन्हें तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने निराधार घोषित किया है। यों भी राज्यसभा के सभापति चाहें तो स्वविवेक के आधार पर उस याचिका को रद्द कर सकते हैं। यदि उसे स्वीकार भी कर लें तो तीन सदस्यीय कमेटी उन आरोपों की जांच करेगी। तब तक मिश्रा सेवा-निवृत्त (अक्तूबर में) हो जाएंगे। याने कांग्रेस की यह पहल न्यायिक कम, राजनैतिक ज्यादा है लेकिन इससे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को जो आंच आ रही है, उसकी उसे कोई चिंता नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)