‘लोहिया को भारत रत्न मिले या नहीं, सचमुच वो भारत के रत्न ही थे’

राम मनोहर लोहिया ने न तो शादी की, न घर बसाया और न कोई मकान बनाया। वे कहते थे कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोगों को अपना परिवार खड़ा नहीं करना चाहिए।

New Delhi, Apr 30 : समाजवादी नेता डा.राम मनोहर लोहिया को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की मांग उचित है। हालांकि उन्हें ‘भारत रत्न’ मिले या नहीं, लोहिया सचमुच भारत के रत्न ही थे। ऐसे रत्नों के बारे में कई कारणों से देश को खास कर नयी पीढ़ी को कम ही जानकारियां हैं। न सिर्फ चरित्र की दृष्टि से बल्कि विचारों की दृष्टि से भी लोहिया महान नेता थे। उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं था। एक गरीब देश के नेता लोहिया सामान्य जीवन जीते थे।

Advertisement

उन्होंने न तो शादी की, न घर बसाया और न कोई मकान बनाया। वे कहते थे कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोगों को अपना परिवार खड़ा नहीं करना चाहिए। उनके पास न तो कोई बैंक खाता था और न ही कोई निजी कार। जबकि वे 1963 और 1967 में लोक सभा के सदस्य चुने गए थे। लोहिया जब लोक सभा में बोलने के लिए खड़ा होते थे तो सत्ता पक्ष सहम जाता था। उनका निजी खर्च कैसे चलता था ? मान लिया कि लोहिया जी को कोलकाता से पटना आना है। कोलकाता का कोई साथी पटना तक के लिए टिकट कटा देता था। साथ ही उनके पाॅकेट में राह खर्च के लिए कुछ पैसे रख देता था। वे पैसे बहुत कम ही होते थे।

Advertisement

पटना आए। एक- दो दिन रहे। फिर उन्हें इलाहाबाद जाना है। पटना का कोई साथी इलाहाबाद का टिकट कटा देता था। साथ में कुछ राह खर्च। आगे चले जाते थे। इसी तरह वे देश भर में भ्रमण करते रहते थे। जब सांसद बने तो उनके एक सहयोगी ने कहा कि अब आप कार खरीद लीजिए। उन्होंने कहा कि अभी टैक्सी पर महीने का जो मेरा खर्च है, उसे जोड़ो। फिर कार-पेट्रोल-ड्रायवर का खर्च अलग से जोड़ो। यदि वह टैक्सी से कम आएगा तो खरीद लूंगा। जाहिर है कि कार का खर्च टैक्सी से कम नहीं आया। इस देश को एक देशज राजनीतिक -सामाजिक विचारधारा देने वाले और अपनी खास राजनीतिक रणनीति से पहली बार एक साथ सात राज्यों में कांग्रेस को चुनाव में हरवा देने वाले लोहिया की मौत कैसे हुई ? एक आम आदमी की तरह।

Advertisement

दरअसल वे जर्मनी में प्रोस्टेट का आपरेशन कराना चाहते थे। वहां के एक विश्व विद्यालय ने व्याख्यान के लिए उन्हें बुलाया था। आने -जाने का खर्च विश्वविद्यालय दे रहा था। पर आपरेशन का खर्च 12 हजार रुपए था। तब बिहार सहित कई राज्यों में लोहिया की पार्टी के नेता मंत्री थे। लोहिया ने कहा कि जहां हमारी सरकारें हैं, वहां से मेरे आपरेशन के लिए चंदा नहीं आएगा। लोहिया ने अपने दल के एक नेता से कहा कि वे मजदूरों से चंदा लेकर 12 हजार का इंतजाम करें। उस नेता को चंदा एकत्र करने में देर हो गयी। इस बीच प्रोस्टेट का आपरेशन जरूरी हो गया। दिल्ली के वेलिंगटन अस्पताल में 1967 में आपरेशन हुआ। डाक्टर की लापारवाही से आपरेशन विफल रहा। परिणामस्वरूप लोहिया को बचाया नहीं जा सका।

उससे पहले का एक प्रकरण मुझे मशहूर साहित्यकार डा.खगेंद्र ठाकुर ने सुनाया था। एक दिन उन्होंने लोहिया जी को भाागलपुर में एक सरकारी बस में बैठे देखा। बस दुमका जाने वाली थी। पूछा तो लोहिया जी ने बताया कि राम नंदन मिश्र से मिलने जा रहा हूं। ठाकुर जी ने मुझसे कहा कि इतने बड़े नेता और ऐसी सादगी ! आसानी से उनके लिए एक कार का प्रबंध हो सकता था। तब उनके ही दल के कर्पूरी ठाकुर बिहार सरकार में उप मुख्य मंत्री थे। पर लोहिया निजी कामों के लिए सरकारी साधन के इस्तेमाल के खिलाफ थे। लोहिया जी के बारे में इस तरह की बहुत सारी बातें हैं।

( वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)