हरियाणा : आखिर इन मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन ?

हरियाणा : हादसे तो हो जाते हैं लेकिन हादसों के बाद किसी मासूम की जान सिर्फ इसलिए चली जाये कि अस्पताल पहुंचने के बावजूद वहां पूरे इलाज की व्यवस्था नहीं थी। 

New Delhi, May 01 : उनमें कोई बेहतरीन अधिकारी हो सकता था। कोई सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और अगर कोई कुछ भी नहीं बन पाता तो कम से कम अपने माता-पिता की आंखों का तारा और उनके बुढ़ापे का सहारा तो रहता ही, लेकिन बुझ गये चार घरों के चिराग। हादसे तो हो जाते हैं लेकिन हादसों के बाद किसी मासूम की जान सिर्फ इसलिए चली जाये कि अस्पताल पहुंचने के बावजूद वहां पूरे इलाज की व्यवस्था नहीं थी। डॉक्टरों की कमी थी या संसाधनों की। वजह चाहे जो भी हो लेकिन उसकी गिनती सिर्फ नाकामी के दर्जे में हो सकती है।

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सोमवार को चरखीदादरी में स्कूल बस और डंपर की टक्कर में चालक और हैल्पर समेत छह जानें चली गईं। सवाल ये उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। सबसे पहले डंपर गलत दिशा से आ रहा था। मतलब पहली नाकामी ये ही है कि प्रशासन बेलगाम और ओवरलोड डंपरों पर काबू पाने में पूरी तरह फेल। बेलगाम चलते हैं ये डंपर और पूछने वाला नहीं है। हादसा होने के बाद घायल मासूमों को जब अस्पताल लेकर पहुंचा जाता है तो वहां स्टाफ और सुविधाओं के टोटे ने जिंदगियां लील लीं। एक जिला अस्पताल का ये हाल शर्मनाक नहीं कहा जाये तो क्या कहा जाये। कुछ नहीं होते देख रोहतक पीजीआई के लिए रैफर कर दिया गया। प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावाओं की नाकामी है ये घटना।

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सिर्फ ढाई करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग अगर हर अस्पताल और डिस्पेंसरी को तमाम डॉक्टर अन्य स्टाफ और सुविधाएं भी नहीं दे सकता तो इसपर ताला लगा देना चाहिए। सूबे की सरकार चाहे कितने भी दावे कर ले लेकिन प्रदेश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं कोई बेहतर हालत में नहीं है। अरे सहाब यहां तो अस्पताल पहुंचने के बावजूद सिर्फ कागज़ पूरे नहीं होने की वजह महिला को सड़क पर बच्चे को जन्म देना पड़ जाता है और भी गुरुग्राम जैसे विकसित जिले में। ये भी शर्मनाक है। डॉक्टरों की कमी की तो बात ही मत करो। हरियाणा में प्रति दस हजार लोगों पर सिर्फ एक सरकारी डॉक्टर उपलब्ध है।

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प्राइवेट डॉक्टरों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो भी करीब 1800 की आबादी पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। ऐसे में एक स्वस्थ प्रदेश की कल्पना भी कोई कैसे कर सकता है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक कहते हैं कि प्रति हजार लोगों पर कम से कम एक डॉक्टर होना जरूरी है। यहां हालत तो ये है कि हर जिले में डॉक्टरों से लेकर अन्य स्टाफ 50 से लेकर 150 तक पद खाली पड़े हैं आप खुद ही सोच लीजिए कि ऐसी कमी में इस तरह के हादसों से कैसे निपटा जा सकता है। इसी नाकामी की वजह से चार घरों के चिराग बुझ गये। सरकार को समय रहते इन कमियों पर काबू पाना होगा। नहीं फिर कहीं हादसा होगा तो जिला अस्पताल से बड़े अस्पताल तक पहुंचते- पहुंचते मरीज दम तोड़ते रहेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप डबास के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)