जहानाबाद का वीडियो देख मेरी देह कांप रही है गुस्से और लाचारी से, क्या करें ?

कैसे लड़ें इस बहशी समाज से, जहानाबाद की इस दलित बच्ची के साथ सामूहिक रूप से बलात्कार करने की कोशिश कर रहे ये लड़के कौन हैं ?

New Delhi, May 02 : जब से अपने शहर आई हूँ सकते में हूँ . एक और सामूहिक बलात्कार की खबर ने मेरे खून जमा दिए है . मेरी बहन ने उस वीडियो को देखा और वह पिछले कई रातों से सो नहीं नहीं पायी है . उसने बताया की एक १२ या १३ साल की बच्ची है जिसके बदन को कुत्तों की तरह नोच रहे है लड़के . जैसे वह लड़की नहीं मांश का निवाला हो . वह लगातार चीख रही है और कह रही है भैया छोड़ दो . ये लड़के शिकार करने निकले हैं अपनी माँ , बहन दोस्त का .

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हमारी सड़कों पर तबाही मचा रहें हैं . खून की धार बह रही है ,धरती रक्त से सन गयी है . मेरे सारे शब्द ख़त्म हो गए है . मेरी देह कांप रही है गुस्से और लाचारी से . क्या करें ? harrasmentकैसे लड़ें इस बहशी समाज से . जहानाबाद की इस दलित बच्ची के साथ सामूहिक रूप से बलात्कार करने की कोशिश कर रहे ये लड़के कौन हैं ?

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इतनी कम उम्र में इनके भीतर वहशीपन कैसे आया ? ये कैसा समाज हम बना रहे हैं ? क्या ये मान लूँ कि इस देश के सभी मर्दों के भीतर बलात्कार के बीज हैं . इस धरती का कोई आदमी मुक्त नहीं है . नहीं इतना भयावह समय नहीं हो सकता . वे जो मेरे खून का हिस्सा है , बेटा , पति,पिता और सखा , दोस्त क्या इनसे हम डरें. क्या मान लें इस पृथ्वी पर भरोसा , भाईचारा और मुहब्बत के लिए जगह नहीं है . हम एक हिंसक और वहशी समय में हैं . जलते हुए आसमान तले ये शहर इस घटना से उबल क्यों नहीं रहा है . क्या यह वही जहानाबाद है जिसकी जमींन से संघर्ष की हज़ार हज़ार कहानियां निकली हैं .

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आज बलात्कार की कहानियां लिखी जा रही है . ऐसी तमाम घटना को अपने समाज से जोड़ कर देखना होगा . इस देश की हिंसक और उन्मादी राजनीति के साथ जोड़ कर देखना होगा . जिस राजनीति में घृणा का बोलबाला है . जहाँ मनुष्य को जाति ,धर्म, लिंग , भाषा , राष्ट्रवाद के नाम पर बांटा जा रहा है वहां हम एक नैतिक और रहमदिल समाज के बारे में किस तरह सोच सकते हैं ? यही तो हम रच रहे हैं . निराशा और अवसाद की दलदल . अपने नौजवानों को इस दलदल में धकेल रहे हैं . क्या हमारी लड़कियां डर और सिसकियों की अँधेरी घाटी में हमेशा के लिए दफ़न हो जाये . यह कहना होगा अब और नहीं सहेंगे . कहना होगा समवेत स्वर में . अँधेरे के विरुध्य न्याय और समानता के लिए , एक सुन्दर और भरोसेमंद दुनिया के लिए आगे आओ साथी अपनी बच्चियों की खातिर आओ . अपनी सभ्यता को बचाने और घृणा के विरुध्य आओ .

(निवेदिता शकील के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)