अकेले बजरंग बली ही सब पर भारी हैं- Ajit Anjum

सर्वे कराकर देखिए, मंदिरों और मूर्तियों के दम पर सरकारी ज़मीनें सबसे अधिक हड़पी गई हैं . अकेले बजरंग बली ही सब पर भारी हैं

New Delhi, May 07 : इस देश में सरकारी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करके हर साल न जाने कितने मंदिर रातों रात उग जाते हैं . हाइवे की ज़मीन हो या रेलवे की , राज्य की ज़मीन हो या केन्द्र की , हर साल अकेले हनुमान जी की मूर्ति के दम पर सैकड़ों एकड़ ज़मीनें सरकार के क़ब्ज़े से निकल कर पंडों , पुजारियों और धार्मिक चोले वाले माफ़िया के हाथ लग जाती है . मैंने ऐसे पचासों मंदिर बीते सालों में अपनी आँखों के सामने उगते देखा है. इलाक़े के बाहुबली , मवाली , ठेकेदार भी सरकारी ज़मीन क़ब्ज़ा करने के इस नायाब नुस्ख़े का इस्तेमाल करते हैं। 

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सरकार, रेलवे या निगमों की क्या मजाल कि हाथ भी लगा दे . ग़रीबों की झुग्गियाँ भले ही जेसीबी के नीचे जमीदोंज हो जाए , हनुमान जी की मूर्ति के आगे पीछे क़ब्ज़ा हुई ज़मीनों की तरफ़ देखने की हिम्मत नहीं होती सरकारी अफ़सरों की . आगे मंदिर पीछे कारोबार वाले भी सरकारी ज़मीनों को ऐसे ही हड़पते हैं . डंडा चलाना है तो उन पर भी चलाओ . तब तो नहीं चलाते हैं , जब हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ऐसे धर्मिक स्थलों के खिलाफ आदेश देता है . उन्हें हटाने के फैसले देता है .
गलत है तो सब गलत है . मंदिर , मस्जिद , मज़ार , गिरिजा हो या गुरुद्वारा .

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नमाज को रोकते हैं तो सड़क और सार्वजनिक जगहों पर होने वाले सभी धार्मिक कार्यक्रमों , यात्राओं , जागरणों , अखंड पाठों , जगराताओं और जुलूसों को रोकिए . namazक़ानून और संविधान के मायने सबके लिए ही हैं .

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बोलबम वाले कांवड़ियों के लिए यही नियम लागू हो . सावन के दिनों में सैकड़ों किमी सड़कें उनके क़ब्ज़े में होती है और चलने वाले डर -डरकर रास्ता बदलते हैं . सड़क पर वो यूँ चलते हैं , जैसे अभी -अभी रजिस्ट्री ऑफ़िस से हाइवे अपने नाम कराकर निकले हों . आगे -आगे मोटरसाइकिल दस्ता , पीछे जीप दस्ता , फिर पैदल दस्ता ..और बाक़ियों के लिए नहीं बचता कोई रास्ता .
सर्वे कराकर देखिए, मंदिरों और मूर्तियों के दम पर सरकारी ज़मीनें सबसे अधिक हड़पी गई हैं . अकेले बजरंग बली ही सब पर भारी हैं .
नहीं कुछ तो एक कट ऑफ़ डेट ही बना दीजिए कि इसके बाद क़ब्ज़े की ज़मीन पर उगे धर्म को प्रतीक ग़ैरक़ानूनी हैं .

(चर्चित वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैंं)