राव इंद्रजीत की ढाई की चाल, किसको मिलेगी शह और मात ?

अगर इन सवालों का एक-एक करके विश्लेषण करें तो कुछ चीजें जरूर साफ हो सकती हैं। पहला सवाल कि क्या राव इंद्रजीत सिंह को बीजेपी रास नहीं आ रही है।

New Delhi, May 08 : राव इंद्रजीत सिंह की दौंगड़ा अहीर गांव की रैली के बाद सूबे की सियासत पर नजर रखने वाले इसे कई ऐंगल से देख रहे हैं। एक बात तो ये तय हो गई है कि राव इंद्रजीत की रैली से दक्षिण हरियाणा की राजनीति की हवा बदलने वाली है। रैली से जो संकेत समझे जा सकते हैं वो बीजेपी, कांग्रेस और इनेलो तीनों के लिए इस तरह के हो सकते हैं कि तीनों को ही अपने मोहरे फिर से सेट करने पड़ सकते हैं। रणनीति बदलनी पड़ सकती है क्योंकि राव इंद्रजीत की ये ढाई चाल आगे चलकर शह और मात तक पहुंच सकती है।

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इतवार की रैली के बाद सूबे के सियासी गलियारों में सवाल तैरने लगे हैं। सवाल ये कि क्या कांग्रेस के बाद राव इंद्रजीत सिंह को बीजेपी भी रास नहीं आ रही है? क्या रैली सिर्फ बीजेपी आला कमान पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा मात्र थी? राव अगर बीजेपी छोड़ते हैं तो अगला ठिकाना क्या फिर से कांग्रेस होगी या बसपा के हाथी की सवारी राव इंद्रजीत सिंह को रास आयेगी? क्या आरती राव को प्रदेश पोलिटिक्स में सैटल करने के लिए इंसाफ मंच को ही पार्टी बनाया जायेगा? क्या ये रैली राव की बीजेपी में अनदेखी का परिणाम थी? बीजेपी का मंच नहीं होने के बाजवजूद प्रदेश के शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा समेत कई विधायकों और सांसद धर्मवीर का रैली में पहुंचना क्या अहीरवाल में नए सियासी समीकरणों की ओर संकेत कर रहा है? इन सभी सवालों पर सभी दलों को विशेष ध्यान देना होगा। खासकर बीजेपी को क्योंकि अहीरवाल में करीब एक दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां राव इंद्रजीत सिंह का इशारा किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत तय कर सकता है।

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अगर इन सवालों का एक-एक करके विश्लेषण करें तो कुछ चीजें जरूर साफ हो सकती हैं। पहला सवाल कि क्या राव इंद्रजीत सिंह को बीजेपी रास नहीं आ रही है। इसका जवाब हां में भी हो सकता है, वजह ये है कि वो खुद को अहीरवाल के सबसे बड़ा नेता मानते हैं और बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें कुछ खास अहमियत दी जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उनके कद को बीजेपी में करीब करीब उतना ही रखा गया जितना कांग्रेस में था, जबकि उनके एक और कांग्रेसी साथी चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कमल का फूल थामा तो वे कैबिनेट मंत्री के तौर पर नवाजे गये।

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दूसरे सवाल का जवाब भी इससे जुड़ा हुआ है। ये हो सकता है कि महेंद्रगढ़ में ये रैली कर उन्होंने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की हो कि अगर इस इलाके में वजूद बनाए रखाना है उनकी अनदेखी करना संभव नहीं है। पार्टी छोड़ने और पार्टी में बने रहने या इंसाफ मंच को पार्टी का रूप देना ये सभी सवाल भी अब उठ रहे हैं लेकिन अगर गौर से देखा जाये तो फिलहाल उनका बीजेपी छोड़ना मुश्किल लग रहा है। इनेलो की ओर जाने की अटकलों पर उन्होंने ये कहते हुए विराम लगा दिया कि इसका तो सवाल ही पैदा नहीं होता। बसपा को भी सूबे में कम से कम एक ऐसा चेहरा चाहिए जिसको सामने रखकर इनेलो से सीटों को लेकर समझौते के वक्त दबाव बनाया जा सके। राव इंद्रजीत सिंह वो चेहरा हो सकते हैं, क्योंकि अहीरवाल की करीब एक दर्जन विधानसभा सीटें और एक लोकसभा सीट तो ऐसी है ही जिसपर राव इंद्रजीत का दखल किसी की भी हार-जीत तय कर सकता है इसलिए बसपा को राव रास आ सकते हैं। ये बात बीजेपी वाले भी समझते हैं। इस रैली का संकेत अगर बीजेपी आलाकमान तक ठीकठाक तरीके से पहुंचा दिया गया तो माना जा सकता है राव दबाव बनाने में कामयाब रहे हैं और कुछ हद तक ये देखने को भी मिला है रैली की तैयारियों के दौरान जहां बीजेपी का नाम तक नहीं लिया जा रहा था किसी पोस्ट, बैनर या प्रचार के दौरान सिर्फ धर्मवीर सिंह को छोड़कर किसी का जिक्र तक नहीं किया जा रहा था वहीं रैली के मंच पर बीजेपी नेताओं की तस्वीरें ये संकेत देती हैं।

एक बात ये भी है कि राव अपनी राजनीति पारी अच्छे से खेल चुके हैं या यूं कहें कि खेल रहे हैं अब बारी है उनकी बेटी आरती राव के लिए एक विशेष जगह बनाने की। इतवार की रैली इसके लिए जमीन तैयार कर गई है। रैली में पहुंची भीड़ बताती है कि लोगों आरती को पसंद रहे हैं अब उन्हें किस तरीके से लॉच किया जाएगा ये देखना महत्वपूर्ण होगा। इंसाफ मंच को पार्टी का रूप दिया जा सकता है क्योंकि वो चाहते हैं कि आरती राव अगर सूबे की राजनीति में आये तो उसी लेवल पर आये जिस लेवल पर दूसरे राजनीतिक परिवारों या यूं कहें कि जैसे अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों को लाया गया था।
खैर हसरते बहुत सी हैं और हसरते हमेशा कोशिशें करवाती हैं और कोशिशों का अंजाम क्या होता है ये महत्वपूर्ण होता है।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप डबास के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)