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छद्म समाजवादियों ने राजनीति को सबसे ज्यादा डिरेल किया है

राजनीति : क्या ऐसे नेताओं को गांधी, लोहिया और समाजवाद का नाम लेने का हक है ?

New Delhi, May 10 : छद्म समाजवादियों ने राजनीति को सबसे ज्यादा डिरेल किया है। यूपी में पूर्व CM को आजीवन बंगला देने के कांग्रेसी सरकार के कानून को SC ने रद्द कर दिया था । लेकिन तब के CM अखिलेश यादव ने नया कानून बना कर कोर्ट के आदेश को बेअसर कर दिया। समाजवादी नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के चश्मे चिराग टीपू को भी तो अपने लिए आलीशान बंगला चाहिए था।

सत्ता से बेदखल होने के बाद टीपू जिस बंगले में गये, कहते हैं उसकी साज सज्जा पर 20 करोड़ खर्च किये गए। मायावती के बंगले पर 15 करोड़ खर्च हुए थे। उसे बंगला कहना ठीक नही, वह महल है।
बिहार में आजीवन बंगले देने का कानून समाजवादी -लोहियावादी-जेपीवादी लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के शासनकाल में बना था। उन्होंने 5 साल तक CM रहनेवालों के लिए आवास देने का कानून बनाया था। नीतीश कुमार ने 2010 में इसमें संशोधन कर 5 साल का बंधन हटा दिया। साथ ही 8 स्टाफ भी देने की व्यवस्था की गई। नतीजा यह हुआ कि 40 वर्ष पूर्व मात्र 5 दिन CM रहे सतीश प्रसाद को भी पटना में मुफ्त सरकारी आवास, गाड़ी, सुरक्षा सब मिल गया।

उक्त संशोधन में यह भी जोड़ा गया कि अगर कोई पूर्व CM फिर CM बन जाता है तो वह पूर्व CM के नाते मिले आवास को भी रख सकता है। चाहे वह खुद CM आवास में क्यों न रहे। इसका फायदा अकेले नीतीश ही ले रहे हैं। मुख्यमंत्री निवास में रहते हुए वे पूर्व CM वाला आवास भी अपने कब्जे में रखे हुए हैं। इन आवासों के रख रखाव पर करोड़ो रुपये सालाना खर्च हो रहे हैं।
पूर्व CM को आजीवन मुफ्त आवास की सुविधा बिहार, झारखंड, यूपी के अलावा पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और आसाम में भी है। यही नहीं कई मुख्यमंत्रियों को दिल्ली में भी सरकारी आवास मिला हुआ है। दिल्ली में स्थित राज्य के गेस्ट हाउस में भी मुख्यमंत्रियों के लिए अलग सुइट है। यह लोकतंत्र का राजशाहीकरण ही तो है ? यह जनता के पैसे का खुला दुरुपयोग भी है। लेकिन नेताओं को यह बुरा नही लगता।

एक CM माणिक सरकार भी थे, जिन्होंने चुनाव हारने के 2 घंटे के अंदर ही मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिया। अपना ब्रीफकेस लिया और पत्नी का हाथ थाम अगरतला के CPM दफ्तर में रहने पहुंच गए। माणिक दा 20 वर्षों तक त्रिपुरा के CM रहे थे। यह कोई पुरानी घटना नही पिछले महीने की बात है। प.बंगाल में अलग से कोई CM आवास नहीं है। इंद्रजीत गुप्त केंद्रीय गृह मंत्री रहते हुए भी दो कमरेवाले फ्लैट में ही रहे, जो उन्हें सांसद रहते मिला था। दूसरी ओर बिहार में मंत्री पद से हटने या चुनाव हारने के बाद भी नेताजी सरकारी आवास खाली नही करते। इसके लिए कोर्ट तक चले जाते हैं। और कोर्ट भी उन्हें सुनता है। जैसे गुंडे मकानों पर कब्जा कर लेते हैं, वैसे ही ये नेता हैं। कोई फर्क नहीं। फिर भी वे माननीय कहलाते हैं ! क्या ऐसे नेताओं को गांधी, लोहिया और समाजवाद का नाम लेने का हक है ?

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