बीजेपी को डरना चाहिए अगर कर्नाटक जीतती है तो

जितने मित्र कर्नाटक से लौटे हैं या अब तक जितने ओपेनियन या एक्जिट पोल आए,उनमें सबसे बड़ी कॉमन बात यह थी कि कर्नाटक की मौजूदा सिद्धारमैया सरकार से लोग खुश हैं।

New Delhi, May 14 : कर्नाटक चुनाव क बाद जिस तरह के एक्जिट पोल आए हैं,उस हिसाब से बीजेपी की जीत का सिलसिला जारह रहेगा और दक्षिण के गेट पर वह दोबारा शासन करेगी। लेकिन अगर इन्हीं एक्जिट पोल और ग्राउंड रिपोर्ट की दूसरी चीजों को भी गौर से देखें तो बीजेपी को इस जीत के साथ 2019 और आगे के चुनाव के लिए डरना भी चाहिए।

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जितने मित्र कर्नाटक से लौटे हैं या अब तक जितने ओपेनियन या एक्जिट पोल आए,उनमें सबसे बड़ी कॉमन बात यह थी कि कर्नाटक की मौजूदा सिद्धारमैया सरकार से लोग खुश हैं। कहीं काम के स्तर पर एंटी इनकंबेसी नहीं है। जिस टूडेज चाणक्य ने बीजेपी को 120 सीटें दी,उसके पोल में भी 50 फीसदी से अधिक लोगों ने सरकार के कामकाज को बेहतर माना। लेकिन फिर वे भी बदलाव चाहते हैं। वह बस सरकार बदलना चाहते हैं। उनके अंदर बदलाव की भूख है और यह नेशनल ट्रेंड हैं।
दरअसल 2014 से “बस बदलाव चाहिए ” का ट्रेंड चल पड़ा रहा है। जहां भी माैजूदा सरकार है उसे बदल देनी है। बदली भी गयी। 2014 के बाद बीजेपी को सिर्फ दो ऐसे राज्य में अब तक चुनाव का सामना करना पड़ा जहां उसकी सरकार पहले से थी।

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पहली गुजरात जहां हम-आपने देखा कि नरेन्द्र मोदी-अमित शाह के गृह राज्य में भी कांगेस ने बिना लीडरशिप और एक तरह से कॉलेज से निकले छात्र नेताओं की मदद से लगभग हराने में सफल हो भी गये थे। सिर्फ एक जिला के परिणाम के माइनस कर दें तो कांग्रेस आगे दिख जाती है। दूसरा राज्य गोवा था जहां तमाम अनुमान को दरिकनार करते हुए वहां भी बिना लीडरशिप और गुटबाजी के कांग्रेस बीजेपी से बड़ी पार्टी बन गयी जबकि वहां मनोहर पर्रिकर बहुत बड़े नेता हैं और उनके प्रति कोई नाराजगी नहीं थी। दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल को मिली बड़ी जीत से अधिक शीला दीक्षित की बड़ी हार थी। कांग्रेस जीरो पर आ गयी। जबकि दिल्ली में आप किसी से पूछेंगे तो लोग बोलेंगे कि शीला दिल्ली की सबसे बेहतरीन सीएम रही हैं और उनके समय में दिल्ली ने बड़ा बदलाव देखा। यूपी में सबने देखा कि अखिलेश यादव के प्रति नाराजगी नहीं थी लेकिन बस सरकार बदल देनी है तो उन्हें मटियामेट कर दिया चुनाव में।

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वहीं 2014 के बाद लोकसभा सीटों पर जहां भी उपचुनाव हुए बीजेपी वह सारी सीट हारती गयी जिसे 2014 में बहुत बड़े मारजिन से जीती थी। लगातार 7 लोकसभा सीट बीजेपी हार चुकी है। खुद विपक्ष ने भी गोरखपुर सीट के बारे में नहीं सोचा जहां जीत मिल गयी। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा उपचुनाव की सीट जीती लेकिन उनका वोट आधा से कम हो या जिसे 2013 में पार्टी ने जीती थी।
तो क्या यह “दिल मांगे मोर” वाला राजनीतिक दौर है जहां लोग बदलाव चाहते हैं लेकिन उनके लिए बदलाव का मतलब क्या है वे नहीं जानते हैं? क्या वे ऐसी सरकार को भी सिर्फ बदलाव के कारण बदल दे रहे हैं जिसका अप्रूवल रेटिंग 70 फीसदी है? अगर यह ट्रेंड है तो नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को डरना चाहिए। कर्नाटक चुनाव उनके लिए अंतिम दौर हैं जहां वह बदलाव के बयार वाली दिशा में चलते आ रहे हैं। इसके बाद उन्हें इस बयार के उलट चलना है। एमपी,राजस्थान,छत्तीसगढ़, लोकसभा,झारखड,महाराष्ट्र्रहरियाणा सहित तमाम राज्य में उन्हें बदलाव के लिए नहीं, बदलाव के खिलाफ वोट मांगनी है।
इस राजनीतिक ट्रेंड के बीच बीजेपी अगर कर्नाटक जीत गयी तो उसे सतर्क होना पड़ेगा और हार गयी तो संतोष कर सकती है कि यह ट्रेंड बदल गया और अागे के लिए बेहतर उम्मीद कर सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)