लोकतंत्र अब जिंदगी का सवाल नहीं बस एक फुटबॉल मैच है, जिसमें सिर्फ जीत चाहिए

मजाल है, मेरे रहते यहां कोई और घुस जाये। उधर लोकतंत्र का नौजवान रखवाला काम से इतना थक गया है कि फिर से कहीं छुट्टी मनाने चला गया है।

New Delhi, May 17 : चौकीदार चोरी के इल्जाम में चक्की पीस चुके आदमी को सत्ता का चोर दरवाजा दिखा देता है। लेकिन दरवाजे में सेंध लगाना इतना आसान नहीं है। लोकतंत्र की रिले रेस के आगे का बैटन देश का सबसे नामी तड़ीपार थामता है, दौड़ अचानक तेज हो जाती है।

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तड़ीपार कुर्सी तक पहुंचता और वहां रूमाल रख देता है। राजधानी के सबसे आलीशान बंगले में आसीन अपने पुराने खिदमतगार से तड़ीपार कहता है– सुनो बेटा महामहिम। Karnatakaनंबर कुछ कम पड़ रहे हैं। पांच-दस विधायक पकड़कर लाता हूं। तब तक तुम यहां किसी को फटकने मत देना।

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खिदमतगार कान पकड़ता है– कैसी बात कर रहे हैं, मालिक। आराम 10-15 दिन में आइये। मजाल है, मेरे रहते यहां कोई और घुस जाये। yediyurappaउधर लोकतंत्र का नौजवान रखवाला काम से इतना थक गया है कि फिर से कहीं छुट्टी मनाने चला गया है। कब आएगा या नहीं आएगा किसी को पता नहीं।

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सुना है उसकी पार्टी के कुछ लोग बिक चुके हैं और कुछ बिकने वाले हैं। कुछ को मलाल है कि अच्छा दाम नहीं मिल रहा है। दिल्ली से हुंकार उठ रही है– हमने रेट इतने बढ़ा दिये हैं और तुमलोग कहते हो कि भारत में कोई आर्थिक तरक्की ही नहीं हुई है। कुल मिलाकर कहानी यह कि लोकतंत्र अब जिंदगी का सवाल नहीं बस एक फुटबॉल मैच है, जिसमें फैंस को सिर्फ जीत चाहिए। तड़ीपार के पराक्रम पर समर्थक इस तरह तालियां पीट रहे हैं, जैेसे मैनेचस्टर यूनाइटेड ने लिवरपूल को हरा दिया हो।
वैसे तालियां पूरी दुनिया पीट रही है– Long live Indian democracy.

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)