जैसा पहले होता था, वैसा अब क्यों नहीं होना चाहिए?
वे पूछ रहे थे कि नैतिकता किस चिड़िया का नाम है? जो कुछ पहले से होता आया है, वह फिर से क्यों नहीं हो सकता?
New Delhi, May 18 : बंपर टीआरपी वाले चैनल पर गर्मागर्म बहस चल रही थी। पैनल में मौजूद कुछ लोग देशवासियों को यह कहकर गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे कि नैतिकता का पतन होता जा रहा है। बिकाउ मीडिया वाला एंकर भी बीच-बीच में हां में हां मिला रहा था। लेकिन वे अकेले अपनी ओजस्वी वाणी में गरज रहे थे। उनकी हुंकार से स्टूडियो की छत कांप रही थी और सारे कैमरे हिल रहे थे।
वे पूछ रहे थे कि नैतिकता किस चिड़िया का नाम है? जो कुछ पहले से होता आया है, वह फिर से क्यों नहीं हो सकता? उनके अकाट्य तर्क सुनकर एंकर ने भी महसूस किया कि नैतिकता सचमुच इस समय अपने उच्चतम स्तर पर है। अगर इससे ज्यादा नैतिकता बढ़ी तो देश का बहुत नुकसान हो जाएगा।
एंकर भी नैतिकता की दुहाई देनेवालों को जोर-जोर से डांटने लगा। इस तरह नेशनल डिबेट में तर्क विजयी हुआ और सत्य की स्थापना हुई।
अब तक नैतिकता की दुहाई दे रहे लोगो का विवेक भी जाग उठा। तर्क ने जोर मारा और उन्होने अपने कपड़े उतार दिये। एंकर ने पूछा— क्या कर रहे हैं आपलोग, पता नहीं है लाइव चल रहा है?
सद्धबुद्धि पाये लोगो ने हाथ जोड़े— हम भी आपकी तरह आदि मानव के वंशज है। हमारे पूर्वज कुछ भी नहीं पहनते थे। जैसा पहले होता था, वैसा अब क्यों नहीं होना चाहिए?
(ब्रह मुहूर्त में लिखी गई लघुकथा)