कर्नाटकी घोड़ों पर मोदी और अमित शाह का सबसे बड़ा दांव, हारे तो हरिनाम, जीते तो जय -जय

कांग्रेस और जेडीएस का आरोप है कि उनके विधायकों को खरीदने के लिए सौ -सौ करोड़ का ऑफर किया जा रहा है।

New Delhi, May 19 : कर्नाटक में अपने मालिक का खूंटा तोड़ने वाले घोड़ों के लिए अच्छा चारा , अच्छा अस्तबल , अच्छा मैदान और ‘अच्छे दिन’ के वादे के हैं . अब देखना है कि इन घोड़ों के क्या इरादे हैं . कहने का मतलब ये कि दाम के दम पर दल-बदल और पाला-बदल वाली हार्स ट्रेडिंग जोर -शोर से जारी है . शाम चार बजे कर्नाटक विधानसभा में शक्ति परीक्षण होगा . तय हो जाएगा कि बहुमत न होने के बावजूद सीएम की शपथ ले चुके येदियुरप्पा कुर्सी पर टिके रहेंगे या तीन दिन के सीएम होकर यूपी के अल्पकालीन सीएम जगदंबिका पाल की तरह इतिहास में दर्ज हो जाएंगे . बेआबरू होकर सत्ता से बाहर जाएंगे या साम -दाम-दंड -भेद के दम पर कब्जा बनाए रखने में कामयाब होंगे . जोर तो बीजेपी ने पूरा लगा रखा है कि किसी भी हाल में 104 का आंकड़ा बहुमत के करीब पहुंचे .

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कर्नाटक फतह के लिए ‘दिल्ली के शाह’ की तरफ से गठित चार सदस्यीय एसएसटीएफ यानी सत्ताधारी स्पेशल टास्क फोर्स बेंगलुरु में तीन दिन से तैनात है . नाम तो आप जानते ही होंगे .
कांग्रेस और जेडीएस के खेमें में सेंधमारी के लिए ‘धनबली रेड्डी ब्रदर्स’ भी माल-पानी के साथ चांदमारी में जुटे हैं . ‘जाल -माल’ के साथ हर तरह की चाल चली जा रही है . कांग्रेस और जेडीएस का आरोप है कि उनके विधायकों को खरीदने के लिए सौ -सौ करोड़ का ऑफर किया जा रहा है . सबूत के तौर पर खनन माफिया जनार्दन रेड्डी और एक कांग्रेस विधायक के बीच कथित बातचीत की ऑडियो क्लिप जारी किया है. इसमें रेड्डी को चित्रदुर्ग ग्रामीण से कांग्रेस विधायक बसनगौड़ा दद्दल को मंत्री पद और पैसों का लालच देते सुना जा रहा है . टेप सही हो या गलत लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि विधायकों को तोड़ने , साथ लाने या फिर इस्तीफा दिलवाकर सरकार बचाने के लिए हर तरह की डील क्रैक करने की कवायद की जा रही है .

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दूसरी तरफ कांग्रेस और जेडीएस नेता अपने विधायकों को समेटे रखने के लिए पाताल-तोड़ मेहनत कर रहे हैं . चुनाव के पहले एक – दूसरे के कपड़े फाड़ चुके कांग्रेस और जेडीएस नेता भाईचारे की गजब मिसाल पेश कर रहे हैं . साथ धरना दे रहे हैं . साथ खाना खा रहे हैं . साथ मीडिया से मुखातिब हैं . साथ संघर्ष के लिए नारे लगा रहे हैं . इस बीच बीजेपी विरोधी विधायकों के जत्थे को पहले बेंगलुरु के पांच सितारा होटल फिर हैदराबाद के पांच सितारा होटल में दामाद की तरह आवभगत के बाद सबको बेंगलुरु लैंड करा दिया गया है . कुछ घंटे तक कैसे भी अपना कुनबा बचा रह जाए , सारा जोर इसी पर है . कांग्रेस के दो विधायकों के गायब होने की खबरों के बीच कांग्रेस ने कल बीजेपी के शीर्ष नेताओं और केन्द्र पर एक विधायक के अगवा करने तक के आरोप लगा दिए थे .

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सदन की जो ताजा स्थिति है उसके मुताबिक 224 विधायकों वाली विधानसभा की 222 सीटों पर मतदान हुआ था , जिसमें कुमार स्वामी दो सीटों से जीते हैं . इस हिसाब से सदन की संख्या हुई 221 और सरकार बनाने के लिए चाहिए 111 विधायक , जबकि बीजेपी के पास हैं – 104 यानी बहुमत से 7 कम . इसी सात के गैप को पाटने के लिए बीजेपी के बड़े बड़े सूरमा हर तरह के लक्ष्यभेदी वाण ट्राय कर रहे हैं . धन-वाण , कुर्सी -वाण , डर-वाण ..कोई भी वाण लग जाए . कहा जा रहा है कि बीजेपी की पहली कोशिश है कि किसी भी तरह से शक्ति परीक्षण के वक्त 13 विधायक सदन से गैर हाजिर हो जाएं . अगर ऐसा हुआ तो सदन की संख्या घटकर 208 रह जाएगी . एक प्रोटेम स्पीकर को घटा दें तो 207 . ऐसे में बीजेपी को बहुमत के लिए चाहिए 104 विधायक . इतना बीजेपी के पास है . लेकिन क्या बीजेपी की सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस और जेडीएस खेमे के 13 विधायक ‘सेट’ हो चुके हैं ? जाहिर इसका जवाब ‘सेटर ‘ , सेंटर और सेटिंग में शामिल लोग ही जानते होंगे .

दूसरा तरीका ये हो सकता है कि क्रास वोटिंग हो और बीजेपी जीत जाए . कुछ लोगों का ये भी दावा है कि बीजेपी के शीर्ष पुरुषों से ‘प्रसाद’ का भरोसा पाकर कांग्रेस के 8 और जेडीएस के 2 विधायक क्रास वोटिंग को तैयार हो गए हैं . अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के पक्ष में 215 विधायक हो जाएंगे . सरकार तो बच जाएगी . फिर दलबदल कानून के तहत दलबदलू विधायकों की सदस्यता खत्म करने का मामला चलता रहेगा . तब तक कोई दूसरा ऊपाय भी खोजा जाएगा . इसके पीछे सोच ये हो सकती है कि पहले आज की गोटी लाल हो जाए , बाद की बाद में देखेंगे .

अब कुछ घंटे बाकी हैं . देखते रहिए तमाशा …हां , एक बात जरुर है कि अगर बीजेपी बहुमत नहीं साबित कर पाई तो जितनी किरकिरी येदियुरप्पा की होगी , उससे कहीं ज्यादा पीएम मोदी और अमित शाह की . जाहिर है कि मोदी और अमित शाह को इस खेल में हराना नामुमकिन नहीं तो आसान भी नहीं . कर्नाटकी घोड़ों पर मोदी और अमित शाह का ये सबसे बड़ा दाव है . हारे तो हरिनाम, जीते तो जय -जय . सरकार बच गई तो कुछ दिनों तक विरोधी हंगामा करेंगे . सोशल मीडिया पर घेराबंदी करेंगे . फिर किसी बोतल से कहीं कोई जिन्ना निकलेगा ,कुछ मुद्दे निकलेंगे , विवाद और बवाल का रुख दूसरी तरफ होगा . कर्नाटक में सरकार अपना काम करती रहेगी . पब्लिक मेरोरी वैसे भी बहुत शार्ट होती है . वैसे भी भूल जाएगी , जैसी बीतों दशकों मे भूलती रही है . मोदी समर्थक वैसे भी कांग्रेसी सरकारों के दौर में राज्यपालों के कारनामों का चिट्ठा लेकर बीजेपी के बचाव में पिले पड़े हैं , उन्हें तो सरकार बचाने का हर फार्मूला कबूल है . वो हार्स ट्रेडिंग पर भी जयकारा लगा रहे हैं . सरकार बचने के बाद और जोर से लगाएंगे .

(वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)