ये नेहरू वाली कांग्रेस की परंपरा नहीं है- Prabhat Dabral

प्रशासनिक क्षेत्र में ज़बरदस्त कामयाबी हासिल करने वाले राजीव गाँधी को कांग्रेस पार्टी के पतन का सिलसिला शुरू करने वाले नेता के रूप में भी याद किया जाना चाहिए।

New Delhi, May 22 : इसमें शक नहीं की राजीव गाँधी देश के बेहतर प्रधानमंत्रियों में से एक थे. ये जो आज देश में थोड़ी बहुत चमक दमक है, उनकी ही देन है. उनके समय में कम्प्यूटर आया और सैम पित्रोदा की देख रेख में संचार क्रांति की ठोस बुनियाद रखी गयी. लेकिन मेरा मानना है उनका सबसे बड़ा योगदान आधारभूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के क्षेत्र में था.

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उन्होंने ट्रांसपोर्ट और एविएशन मिनिस्ट्री को तोड़कर तीन हिस्सों में बांटा और सड़क परिवहन, जहाजरानी तथा एविएशन के लिए तीन अलग अलग मंत्रालय बनाकर उनकी कमान अपने नौजवान काबिल साथियों माधव राव सिंधिया, राजेश पायलट और टाइटलर ( १९८४ का दाग उन्हें ले डूबा) को सौंप दी. गाड़ियों में जो ये लम्बावाला नंबर आप देखते हैं, ये तबका ही है. शताब्दी जैसी रेलगाड़िओं, बड़े बड़े हाईवे और प्राइवेट एयरलाइन्स की बुनियाद इसी दौर में रखी गयी. स्वच्छता और पीने के साफ़ पानी की समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर सुलझाने की कवायद उन्ही के टाइम में शुरू हुयी. और हाँ पंचायती राज के संस्थानों को मजबूत करने में किये गए उनके योगदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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प्रशासनिक क्षेत्र में ज़बरदस्त कामयाबी हासिल करने वाले राजीव गाँधी को कांग्रेस पार्टी के पतन का सिलसिला शुरू करने वाले नेता के रूप में भी याद किया जाना चाहिए. उन्होंने कट्टरपंथी मुसलमानों को खुश करने के लिए शाहबानो फैसले को निरस्त करने वाला संविधान संशोधन किया और फिर कट्टरपंथी हिन्दुओं को साथ लेने के लिए राम मंदिर के ताले खुलवा दिए. नतीजा सबके सामने है. दोनों तरह के कट्टरपंथियों को तो कांग्रेस के साथ नहीं ही आना था, लिबरल लोग भी कांग्रेस से खफा हो गए. राजीव के इन दो कदमों ने देश की सबसे पुरानी पार्टी के तिरोहण का जो सिलसिला शरू किया वो आज तक थमा नहीं है.

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वैसे राजीव के पुत्र राहुल भी कुछ कुछ उन्ही की लाइन पर चल रहे हैं. जनता की समस्याओं को लेकर सड़क पर आंदोलन करने के स्थान पर वो वोट हासिल करने के लिए मंदिरों, मस्जिदों के चक्कर काट रहे हैं. rajiv-gandhi1ये नेहरू वाली कांग्रेस की परंपरा नहीं है.

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)