देवेगौड़ा ने किसे कहा था – ’मुझे राष्ट्रपति बनाओ , मैं आपको पीएम बनाऊंगा’

देवेगौड़ा के साथ भी किस्मत और कांग्रेस थी . उनके बेटे कुमार स्वामी के साथ भी ये दोनों है।

New Delhi, May 23 : जब भाग्य से छींका टूटता है तो ऐसे ही सीएम -पीएम की कुर्सी भी मिल जाती है . 1996 में ऐसे ही देवेगौड़ा को देश के पीएम की कुर्सी मिल गई थी . आज उनके बेटे को सीएम की कुर्सी मिल रही है . जैसे आज महज 38 सीटों वाले नेता के तौर पर कुमार स्वामी प्रदेश के सीएम बनने जा रहे हैं , वैसे ही महज 46 सीटों वाली पार्टी के नेता देवेगौड़ा देश के पीएम बन गए थे . देवेगौड़ा के साथ भी किस्मत और कांग्रेस थी . उनके बेटे कुमार स्वामी के साथ भी ये दोनों है . तब भी बहुमत साबित करने में बीजेपी की नाकामी के बाद देवेगौड़ा की लॉटरी खुल गई थी , अब भी वैसे ही कुमार स्वामी का भाग्योदय हो गया है . तब नंबर के हिसाब से देश की सबसे बड़ी पार्टी के नेता वाजपेयी को जाना पड़ा था , अब प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी के नेता येदियुरप्पा को जाना पड़ा है . तब देवेगौड़ा को Darkest of the dark horses कहा गया था यानी ऐसा शख्स जिसके पीएम बनने के बारे में देश में कोई दूर -दूर तक नहीं सोच रहा था , वो अचानक वाजपेयी की जगह ले रहा था . कुमार स्वामी को उस तरह से डार्क हार्स तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उन्हें भी छींका टूटने पर ही कुर्सी मिली है .

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हालात और किस्मत की इन समानताओं के बीच बेटे की ताजपोशी से देवेगौड़ा खुश तो होंगे लेकिन उन्हे वो दौर आज भी वो भूले नहीं होंगे , जब सीताराम केसरी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने उन्हें लंगड़ी मार कर एक साल के भीतर सत्ता से बेदखल कर दिया था . देवेगौड़ा तिलमिलाकर और बौखलाकर रह गए थे लेकिन अपनी ताजपोशी की वर्षगांठ नहीं मान पाए थे . कांग्रेस अध्यक्ष केसरी और पीएम देवेगौड़ा के बीच तनातनी की कई वजहें थी , जिसने देवेगौड़ा की कुर्सी की कुर्बानी ले ली . यूनाइटेड फ़्रंट नेताओं के बीच मैं नहीं तो तुम नहीं वाले झगड़े में ‘मजबूरी का नाम देवेगौड़ा’ को सबने स्वीकार करके पीएम बना दिया था, वैसे ही उनके बाद इंद्र कुमार गुजराल बन गए . पीएम पद से अचानक हटने के बाद देवेगौड़ा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके पैरों के नीचे से जमीन खींच ली हो . केसरी ने समर्थन वापसी की घोषणा का ऐलान करते वक्त उन पर कांग्रेस अध्यक्ष का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाया . केसरी और देवेगौड़ा के बीच विवाद और पीएम के तौर पर देवेगौड़ा के निरंकुश अंदाज ने संयुक्त मोर्चा सरकार को संकट में तो डाला लेकिन जल्द ही गुजराल को माला पहनाकर फिर मोर्चे की सरकार बन गई .

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इतनी बड़ी कुर्सी से यूं बेआबरु होकर रुखसत हुए देवेगौड़ा राष्ट्रपति बनने के जुगाड़ मे जुट गए . जुलाई 1997 में शंकरदयाल शर्मा का कार्यकाल ख़त्म हो रहा था . संयुक्त मोर्चा के ज्यादातर नेता उपराष्ट्रपति केआर नारायनण को महामहिम के लिए समर्थन देने को तैयार हो चुके थे लेकिन देवेगौड़ा अपना नाम बढ़ाने के लिए बिसात बिछाने में लग गए . उन्होंने संयुक्त मोर्चा के घटकों में से एक तमिल मनीला कांग्रेस के मुखिया और उस समय दक्षिण के क़द्दावर नेता जीके मूपनार को ऐसा ऑफ़र दिया कि मूपनार भी दंग रह गए . देवेगौड़ा के इस ऑफ़र पर हँसी में उड़ाकर मूपनार ने अपनी पार्टी की नेता जयंती नटराजन को पूरी बात बताई और तत्कालीन पीएम गुजराल समेत फ़्रंट के नेताओं को देवेगौड़ा के इरादों से आगाह करने को कहा . वो ऑफ़र क्या था , जानेंगे तो आप भी हैरान रह जाएँगे .

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बक़ौल गुजराल , दैवेगौड़ा ने मूपनार को कहा था – ‘ आप राष्ट्रपति बनने में मेरी मदद कीजिए , मैं गुजराल को हटाकर आपको पीएम बना दूँगा ‘ 6 जून 1997 को संयुक्त मोर्चा की स्टीयरिंग कमेटी में जब केआर नारायणन के नाम पर मुहर लग रही थी , तब भी देवेगौड़ा भड़के हुए थे . इसी मीटिंग के पहले देवेगौड़ा ने जीके मूपनार को पटाने की कोशिश की थी . आखिरकार सामूहिक सहमति नारायणन के नाम पर ही बनी . कांग्रेस अध्यक्ष केसरी का ठप्पा उनके पर लग ही चुका था . देवेगौड़ा अपनी चाल में नाकाम रहे . इस वाकये का ज़िक्र इंद्र कुमार गुजराल ने अपनी किताब Matters of Discretion में खुलकर किया है ।

(वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)