कर्नाटक की हार को जेडीएस ने कांग्रेस की जीत में बदल दिया

अगर प्रियंका अपने बच्चों को वानर सेना जैसे संगठन ज्वाइन करा दें या खुद पहले सेवादल को ज़िंदा कर दें तो कांग्रेस को जड़ से नया किया जा सकता है।

New Delhi, May 23 : कांग्रेस के पास अब खोने को कुछ नहीं, लेकिन पाने को तीन बीजेपी शासित प्रदेश हैं. लोकसभा चुनाव से पहले अगर सूबाई क्षत्रपों को सम्मान देते हुए कांग्रेस ने एक या दो राज्यों में भी जीत हासिल कर ली तो राहुल के नेतृत्व को राजनीतिक पंडितों की स्वीकृति भी मिल जाएगी.

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कर्नाटक की हार को जेडीएस ने कांग्रेस की जीत में बदल दिया. यूपी के उपचुनाव में भी गठजोड़ के सुखद नतीजे दिखे हैं. KUMARSWAMI-3पंचायत चुनाव में टीएमसी की एकतरफा जीत कांग्रेस को रिझा रही होगी. टीडीपी का राजग से टूटना भी कांग्रेस के लिए सुखद है. शिवसेना के सामना में रोज़ राहुल को लेकर हमदर्दी भरी पंक्तियों का दिखाई देना एक क्षीण मगर संभावना की किरण तो है ही.

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राहुल गांधी के लिए मौका है कि वो कांग्रेस को अखिल भारतीय बनाकर इंदिरा की ही तरह साबित करें कि वो बस एक उत्तराधिकारी नहीं बल्कि सियासत के सांचे में धीमे धीमे ढले ख़ालिस राजनीतिज्ञ हैं.
शायद आनेवाले दिनों में प्रियंका गांधी संगठन की राजनीति में शामिल हो जाएंगी और सोनिया पूरी तरह आराम करेंगी. लोकसभा चुनाव से पहले अगर राहुल गांधी संगठन के चुनाव करा लें और Congress के सहयोगी संगठनों को फिर जिला लें तो पार्टी में नया खून दौड़ने लगेगा. कांग्रेस को आरएसएस के सघन जाल को काटना है तो उसी स्तर पर इकाइयों को मज़बूत करना पड़ेगा. कांग्रेस में पहले वानर सेना होती थी जिसमें इंदिरा और फिरोज़ ने काम किया था. युवा कांग्रेस की भी अपनी ताकत थी.

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सेवादल में हर बड़े कांग्रेसी की ट्रेनिंग होती थी. अगर प्रियंका अपने बच्चों को वानर सेना जैसे संगठन ज्वाइन करा दें या खुद पहले सेवादल को ज़िंदा कर दें तो Congress को जड़ से नया किया जा सकता है. इनके बिना हर जीत सिर्फ वोट के आधार पर मिलनेवाली सियासी जीत होगी. अगर राहुल गांधी देश में Congress को विचार की तरह फैलाना चाहते हैं तो चुनावी राजनीति से हटकर सांगठनिक गतिविधियों पर ज़्यादा ध्यान देना पड़ेगा. ठीक है कि इसके तुरंत परिणाम नहीं मिलते पर संघ ने 95 साल मेहनत करके साबित किया है कि विचार को फैलाने का नतीजा ज़्यादा प्रभावशाली होता है. जनसंघ या बीजेपी को रातोंरात खड़ा कर देना सिर्फ तभी मुमकिन है.

(टीवी पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉ़ल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)