परीक्षा परिणाम : अंक से आगे भी है दुनिया

मुझे उनकी यह बात हर बोर्ड एक्जाम के दौरान याद आती है। कितनी लिमिटेड ‘ब्रैकेट’ के साथ हम इस परीक्षा के तनाव और बाद में रिजल्ट को सेलेब्रेट करते हैं।

New Delhi, May 27 : एक बार स्वर्गीय एपीजे कलाम से देश के एजुकेशन सिस्टम पर बात करने का मौका मिला था। उन्होंने कहा था-इंडिया में 90% स्टूडेंट एकेडमिक सुसाइड करते हैं।मतलब अपनी पसंद को मार कर बस 5*10 केबिन की जॉब और बेहतर पैकेज के लिए पढ़ते हैं। वह दूसरों के लिए पढ़ते हैं। अपनी पसंद को मारकर। उन्होंने बताया था कि शुरू के सालों में किस तरह उनके दूसरे बैचवालों ने अमेरिका में अधिक डॉलर कमाया और वे अपने रुपये की सैलेरी में उन तमाम दूसरे दोस्तों से अधिक खुश रहे।

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मुझे उनकी यह बात हर बोर्ड एक्जाम के दौरान याद आती है। कितनी लिमिटेड ‘ब्रैकेट’ के साथ हम इस एक्जाम के तनाव और बाद में रिजल्ट को सेलेब्रेट करते हैं।
कई लोग असहमत होंगे। लेकिन मेरा मानना है कि बोर्ड टापर्स को अधिक ग्लोरिफाइ कर देते हैं। मानो अंक ही अंतिम सत्य है। वन वे सेलेब्रेशन है जो कई के लिए निगेटिव बन जाती है। एक फिक्स टेंपलेट बना दिया है जिसे फॉलो करना है। और उस लकीर से हटने को सबसे बड़ा जोखिम बता उसे खारिज कर देते हैं। भूल जाते हैं कि 99.6 फीसदी से महज 10-20 नंबर लाने वाले की संख्या हजार में है। लेकिन हम स्टॉर-स्टैट से प्रभावित समाज हैं। एक सामुहिक-टीम सेलेब्रेशन बनाने के बजाय इस रिजल्ट को भी स्टॉर वर्शिप में एक-दो नामों तक रिजल्ट का फोकस कर देते हें। बाकी फेल्योर हैं?

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मुझे आज तक समझ नहीं आया कि किस तरह आईआईटी में किसी खास स्ट्रीम का स्पेशलाइज बंदा किसी प्रोडक्ट को बेचने में अपनी उस पढ़ाई का यूज करता होगा। या किस तरह क्रिएटिव बंदा किसी टारगेट में अपना रोल निभा लेता होगा। ‘राईट मैन एट रांग प्लेस’ का सिंड्रोम हर दूसरे मिसाल में मिल जाएगा। असल में बारहवीं-दसवी के स्तर पर अधिकतर बच्चों को अपने रिश्तेदार,समाज और पड़ोसी को साबित करने के लिए परफार्म करना होता है। उनके लिए,उनकी पसंद से। डॉक्टर-इंजीनियर सा सरकारी नौकरी में ‘राजपाल से द्वारपाल’ की जद्दोजहद में सिमटी पूरी सिस्टम के बीच से जो भयावह खाई बनती चली गयी उसमें कभी न कभी हर कोई अपने हिसाब से गिरेगा।

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बहुत कुछ है। एजुकेशन-करियर में एक क्रांतिकारी सोशल रिफार्म की जरूरत है। लेकिन यह रिफार्म आना होगा सबसे कमजोर और सबसे लकीरों में बंधी मिडिल क्लास सोसाइटी से जिसे प्रयोग से चिढ़ रहा है। ऐसे में यह क्रांति जल्द आएगी,मुझे संदेह है। आजकल जो कुछ परिवर्तन दिखता है वह सामािजक बदलाव नहीं है बल्कि यह इंडिव्यूजल एफर्ट के कारण हुआ है।
मेजोरेटी मिडिल क्लास करियर की ट्रैजिक कहानी कुछ इस तरह चलती है
5 साल की उम्र-मैं एस्ट्रानाऊट बनना चाहता हूं
15 साल में-मैं आईआईटी में पढ़ना चाहता हूं
20 साल में-मैं आईएएस बनना चाहता हूं
30 साल में-कोई जाॅब की लिंक है, जरा भिजवा दो या

(वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)