नेहरू को मैने नहीं देखा !

पिताजी को छोड़कर किसी ने नेहरू जी को देखा नहीं था लेकिन नेहरू का नाम ही सबको सिहरा देता था। मरे आदमी को जीवन दे सकता था।

New Delhi, May 28 : नेहरू जी जिस दिन मरे उसी दिन मेरा रिजल्ट आया था। मैं पास हो गया था और छठे दरजे के लिए कानपुर में तब के एक बेहतरीन इंटर कालेज नगर महापालिका गांधी स्मारक इंटर कालेज में मुझे प्रवेश मिल गया था। मैं उसके एडमिशन टेस्ट में पास हो गया था और कालेज के सूचना पट पर 40 छात्रों की जो सूची लगी थी उस पर मेरा भी नाम था। यह बताने के लिए मैं घर की तरफ भागा। लेकिन घर आकर देखा कि पिताजी खुद घर पर हैं और उदास-से हैं।

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मैने उनकी उदासी अनदेखी करते हुए कहा पिताजी मैं पास हो गया। मगर पिताजी कुछ नहीं बोले। मैने फिर कहा लिस्ट में मेरा नाम है, पर पिताजी फिर चुप। तब मैने पूछा क्या हुआ? पिताजी ने बताया कि चाचा नेहरू नहीं रहे। अम्माँ सुबक रही थीं और दादी भी। आसपास के सारे लोग रो रहे थे। वहां पंजाबियों की बस्ती थी मगर वे भी उदास थे। हालांकि पंजाबी नेहरू जी को पसंद नहीं करते थे। बाहर आकर देखा कि नीलम की झाई से लेकर बाबा बस्तीराम तक सब पूछ रहे थे कि रेडियो किस के पास है। पर पूरे छह ब्लाक में किसी के पास रेडियो नहीं। तब हम सब बी ब्लाक स्थित एक शुक्ला जी के घर को भागे ।

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शुक्ला जी वहां एक इंटर कालेज में फिजिक्स के लेक्चरर थे और उनके घर पर रेडियो से लगातार सूचनाएं प्रसारित हो रही थीं। उनके घर के बाहर मेला लगा था। ठठ के ठठ लोग जुटे थे और रो रहे थे। हम वहां शाम तक रहे और सबके सब चुपचाप आंसू बहाते वहां बैठे रहे। सूचना आई कि तमिलनाडु में एक औरत ने आत्मदाह कर लिया। कुछ लोगों को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि अब देश का क्या होगा। तब किसी ने नहीं कहा कि उनकी बेटी तो है। सब यह सोच रहे थे कि देश फिर गुलाम हो जाएगा क्योंकि एक ऐसा आदमी चला गया जिसका कोई जोड़ीदार नहीं था। देर रात हम लौटे। मां तब तक जाग रही थीं।

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पिताजी को छोड़कर किसी ने नेहरू जी को देखा नहीं था लेकिन नेहरू का नाम ही सबको सिहरा देता था। मरे आदमी को जीवन दे सकता था। नेहरू जी मर गए, नेहरू जी मर सकते थे, ऐसा सोचना भी असंभव लग रहा था। इसके बाद नेहरू जी अंत्येष्टि और उनकी अस्थियों का संगम में प्रवाह देखने हेतु लोग इलाहाबाद गए। पिताजी मुझे तब पहली बार संगम ले गए थे। वहां की भीड़ देखकर लगा कि महाकुंभ शायद ऐसा ही होता होगा। आज नेहरू जी को दिवंगत हुए 54 साल हो गए। मगर आज सरकारी स्तर पर किसी ने नेहरू जी को याद नहीं किया। उस विभूति को जो आधुनिक भारत का भाग्यविधाता था।

(वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)