पचास फीसदी वोट पाने का फॉर्मूला

आजादी के बाद अब तक लोक सभा चुनाव में किसी भी दल को 50 प्रतिशत वोट नहीं मिल सके हैं।

New Delhi, May 29 : भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल में यह दावा किया है कि 2019 में पार्टी की वोट की हिस्सेदारी बढ़कर 50 प्रतिशत हो जाएगी। क्या यह दावा सच हो सकता है ? याद रहे कि सन 2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को देश में सिर्फ 31 प्रतिशत मत मिले थे। हालांकि सीटें 282 मिलीं।जिस तरह इन दिनों गैर राजग दलों में एकजुटता बढ़ रही है,वैसे में भाजपा के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपने वोट का प्रतिशत बढ़ाए। अन्यथा, अगले चुनाव में उसके सामने भारी राजनीतिक दिक्कत आ सकती है।

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पचास प्रतिशत वोट का लक्ष्य हासिल कर लेने के मनसूबे में कितना दम है, इसका जवाब अगले लोक सभा चुनाव में ही मिल सकेगा। पर भाजपा की पिछली कुछ चुनावी उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए इसे एकबारगी खारिज भी नहीं किया जा सकता। याद रहे कि आजादी के बाद अब तक लोक सभा चुनाव में किसी भी दल को 50 प्रतिशत वोट नहीं मिल सके हैं। सन 1984 में भी नहीं ,जब कांग्रेस को लोक सभा में 404 सीटें मिली थीं।कांग्रेस को तब मत मिले थे 49 दशमलव 10 प्रतिशत।
फिर भी भाजपा और उसकी सरकार ने अभूतपूर्व लक्ष्य पाने के लिए कोशिश जरूर शुरू कर दी है।
यह स्वाभाविक ही है कि उसकी शुरूआत उसी उत्तर प्रदेश को ध्यान में रखकर हो जहां के दो मजबूत क्षेत्रीय दलों ने साथ मिल कर भाजपा के लिए कठिन चुनौती खड़ी कर दी है।गत मार्च के दो लोक सभा उप चुनाव फूल पुर व गोरख पुर के नतीजे उसके गवाह बने जहां भाजपा अपनी ही सीटें गंवा बैठी।साथ ही चुनावी जीत का उसका घोड़ा भी रुका।

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कर्नाटका में सरकार बनाने की उसकी अधकचरा कोशिश से भाजपा की जरूर किरकिरी हुई,पर चुनावी सफलता तो उसे वहां भी मिली ही है। प्रस्ताव है कि सुप्रीम कोर्ट के 1993 के एक निर्णय को ध्यान में रखते हुए मंडल आरक्षण व्यवस्था में सुधार हो।इससे भाजपा के वोट बढ़ने की पूरी गुंजाइश है।
इस संबंध में पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश भी केंद्र सरकार के पास 2011 से ही पड़ी हुई है।पिछड़ा वर्ग की सिफारिश पर भी सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का ही असर है।
कहा जा रहा है कि यदि मंडल आरक्षण में ऐसा सुधार हुआ तो वह भाजपा के लिए चुनावी ‘ब्रह्मास्त्र’ साबित हो सकता है।
उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर के अनुसार भी ‘भाजपा ने एक ब्रह्मास्त्र तैयार कर लिया है।सपा-बसपा गठबंधन को ध्वस्त करने के लिए अगले चुनाव से छह माह पहले उसे छोड़ दिया जाएगा।’
ऐसा आश्वासन भाजपा हाई कमान ने पिछले दिनों राजभर को दिया है।वैसे तो वह ब्रह्मास्त्र पूरे देश के लिए होगा,पर साथ -साथ उत्तर प्रदेश सरकार भी राज्य की नौकरियों के लिए उस पर अलग से काम कर रही है।

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वह राजभर के शब्द वाला वह ‘ब्र्रह्मास्त्र’ दरअसल आरक्षण में प्रस्तावित फेरबदल करके तैयार किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने तय किया है कि सत्रह पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के कोटे में शामिल कर दिया जाएगा।इससे पिछड़ी जातियों के लिए नौकरियों की संभावनाएं बढ़ेंगी।
साथ ही, पिछड़ों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में भी आरक्षित 27 प्रतिशत सीटों को तीन हिस्सों में बांटा जाएगा।इस आशय का आश्वासन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश विधान सभा में भी दे चुके हैं।
इससे यह होगा कि अति पिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातियों को भी मंडल आरक्षण का लाभ समान रूप से मिल पाएगा।राजभर के अनुसार आरक्षण का अधिक लाभ अभी यादव,सोनार,जाट और पटेल को मिल रहा है।
उत्तर प्रदेश में 2013 में पुलिस बल में 41 हजार 610 बहालियां हुई थीं।
मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया था।हाई कोर्ट ने भी उस पर कहा था कि ‘आरक्षण का लाभ सभी पिछड़ी जातियों को समान रूप से मिलना चाहिए न कि मात्र किन्हीं सबल जातियों को। ’
मंडल आयोग की सिफाशि को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ों के लिए आरक्षण वी.पी.सिंह सरकार ने 1990 में लागू किया था।पर मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था।
सुप्रीम कोर्ट में मधु लिमये ने यह दलील पेश की कि सुप्रीम कोर्ट 27 प्रतिशत आरक्षण का उप वर्गीकरण कर दे।

खुद सुप्रीम कोर्ट ने तो ऐसा करने से मना कर दिया,पर उसने यह जरूर कहा कि खुद सरकार ही इस काम को करे। सन 1993 में दी सुप्रीम कोर्ट की इस सलाह को विभिन्न केंद्रीय सरकारों ने नजरअंदाज ही किया।कारण राजनीतिक ही था।हां,कुछ राज्य सरकारों ने जरूर वर्गीकरण किया है।
नतीजतन केंद्रीय सेवाओं में 27 प्रतिशत में से सिर्फ 11 प्रतिशत पद ही भरे जा पा रहे हैं।
जानकार लोग बताते हैं कि उप वर्गीकरण के बाद यह प्रतिशत बढ़ेगा।
साथ ही, उस फैसले का राजनीतिक लाभ भी उस दल को मिलेगा जिस दल की सरकार उप वर्गीकरण का निर्णय करेगी।
संयोग से केंद्र की राजग सरकार को यह अवसर मिल रहा है।
सन 2011 में ही राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने वर्गीकरण की सिफारिश मन मोहन सिंह सरकार से की थी।
आयोग की सिफारिश भी 27 प्रतिशत को तीन हिस्सों में बांट देने की है।सिफारिश है कि पिछड़ा,अधिक पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा के रूप में वर्गीकरण हो।
पर जाहिर कारणों से मन मोहन सरकार ने उसे नजरअंदाज कर दिया।
पर , नरेंद्र मोदी सरकार ने गत साल अक्तूबर में इस उद्दश्य से एक आयोग बनाया।दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रही जी.रोहिणी के नेतृत्व में पांच सदस्यीय आयोग बना है।
उसे तीन महीनों में रपट देनी थी।पर उसका कवर्यकाल बढ़ाया जाता रहा।

पिछली बार कार्यकाल बढ़ाते समय ही केंद्र सरकार ने यह कह दिया कि 20 जून के बाद कार्यकाल नहीं बढ़ेगा।उसे उस दिन तक रपट दे देनी है।
यानी उस आयोग को किसी भी हालत में 20 जून तक अपनी रपट सरकार को दे देनी है।
उस रपट में यह बात होगी कि पिछड़ा ,अधिक पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कौन -कौन सी जातियों आएंगी।
देश में लगभग तीन हजार जातियां हैं।
प्रत्येक वर्ग को 9 प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने का प्रस्ताव है।यानी संकेत हैं कि 2019 के लोक सभा चुनाव से करीब छह माह पहले
इस संबंध में केंद्र सरकार अधिसूचना जारी कर देगी।
चूंकि वह अधिसूचना सन् 1993 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुकूल होगी,इसलिए उसे किसी कानूनी पचड़े में डाल देने की कोई गुंजाइश भी किसी के लिए नहीं बचेगी।
उस प्रस्तावित अधिसूचना से उन लोगों में नाराजगी हो सकती है जिन्हें अभी मंडल आरक्षण का लाभ उनकी आबादी के अनुपात में अधिक मिल रहा है।दूसरी ओर उनमें खुशी होगी जिनके हक अब तक मारे जा रहे हैं।

जाहिर है कि इसका राजनीतिक लाभ भाजपा व अंततः राजग को मिलेगा।इस तरह वोट शेयर को 31 प्रतिशत से बढ़ा कर 50 प्रतिशत करने में भाजपा को सुविधा हो सकती है।
याद रहे कि वर्गीकरण का अधिक लाभ पिछड़ों के बीच की अधिकतर जातियों को मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
इसका असर बिहार सहित देश के अन्य प्रदेशों की राजनीति पर भी पड़ सकता है।
आरक्षण के मामले में बिहार भी एक संवेदनशील राज्य है।
2015 के बिहार विधान सभा चुनाव के समय आरक्षण पर कुछ बयानों ने भाजपा यानी राजग को नुकसान पहुंचाया था।अब भी भाजपा विराध्ेाी दल यह कहते रहते हैं कि मोदी सरकार आरक्षण खत्म करना चाहती है।यदि आरक्षण के वर्गीकरण का निर्णय भाजपा सरकार कर देती है तो विरोधी दलों के लिए पिछड़े वर्ग के मन में संशय पैदा करना कठिन हो जाएगा।उनके पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं होगा कि उन्होंने अब तक यह काम क्यों नहीं किया ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)