कभी ठेले पर बेचते थे चाय, आज हैं 254 करोड़ की कंपनी के मालिक

भले बलबंत सिंह राजपूत के रोब-रुतबे को पंख लग गये हो, लेकिन आज तक वो उस ठेले को दिल में लगाये बैठे हैं, जिस पर कभी उन्होने चाय और सुपारी बेची थी।

New Delhi, Jun 13 : बलवंत सिंह राजपूत वैसे तो गुजरात में एक बीजेपी नेता के रुप में जाने जाते हैं, लेकिन उनका एक पहचान फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले कारोबारी का भी है। एक जमाने में उनके पिता ऑयल मिल में नौकरी करते थे, फिर जब वहां से उनकी नौकरी छूट गई, तो सड़क किनारे ठेला लगाकर चाय बेचने लगे, उससे जो भी आमदनी होती थी, उससे उनका घर चलता था। पिता के साथ ही बलवंत सिंह राजपूत भी ठेले पर चाय और सुपारी बेचने में लग गये। साल 1972 में गुजरात में भयंकर बाढ आई, जिसमें उनका घर बह गया। उस समय बलवंत के पास एक जोड़ी कपड़े तक नहीं थे।

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पिता ने भेजा था सीएम से नौकरी मांगने
मुश्किल के दिनों में उनके पिता ने उन्हें गांधीनगर में तत्कालीन सीएम माधव सिंह सोलंकी के पास नौकरी मांगने भेजा था, लेकिन सीएम से मिलने के बजाय वो कांग्रेस नेता जिनाभाई दारजी के पास पहुंच गये। कांग्रेस नेता ने उन्हें आश्वासन दिया, कि वो उन्हें लाइसेंस दिलवा देंगे, वो सरकारी गल्ले की दुकान खोल लें, वहां से लौटने के बाद बलवंत ने अपने घर में ही दुकान खोल ली, जिससे उनके परिवार का गुजारा होने लगा। उस छोटी सी दुकान से शुरुआत करने वाले बलवंत आज 254 करोड़ की कंपनी गोकुल ग्रुप के मालिक हैं, जहां कभी राशन की दुकान खोली थी, आज वहां शानदार ऑफिस है।

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राजनीति में पैठ
जब बलवंत सिंह ने बिजनेस खड़ा कर लिया, तो फिर उनकी राजनैतिक हैसियत भी बढने लगे। समाज के उच्च तबकों में उनका आना-जाना होने लगे। जिसके बाद उन्होने राजनीति में भी एंट्री ली। दो बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक रह चुके बलवंत अभी भी अपने पुराने दिनों को नहीं भूले हैं। वो इस बारे में खुलकर बात करते हैं।

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पुराने दिन याद हैं
भले बलबंत सिंह राजपूत के रोब-रुतबे को पंख लग गये हो, लेकिन आज तक वो उस ठेले को दिल में लगाये बैठे हैं, जिस पर कभी उन्होने चाय और सुपारी बेची थी। वो बताते हैं कि वो ठेला उन्हें संघर्ष के दिनों की याद दिलाता रहता है, ऐसी यादें इंसान को जीवन से जूझने का माद्दा देती है। परिस्थितियां तो अच्छी-खराब होती रहती हैं, लेकिन इंसान को अपने बुरे और संघर्ष के दिन कभी नहीं भूलना चाहिये।

फूड ऑयल का बिजनेस
बलवंत सिंह राजपूत की गिनती आज गुजरात के बड़े व्यापारियों में की जाती है, उनका फूड ऑयल का बिजनेस काफी फल-फूल रहा है, साथ ही राजनीति में होने की वजह से वो अक्सर सुर्खियों में भी रहते हैं। बलवंत सिंह ने बताया कि जब उनका काम-धंधा संभल गया, तो उन्होने सियासत में उतरने का फैसला लिया, उनके कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं से ताल्लुकात होने लगें।

कांग्रेस नेता ने दी थी बिजनेस की सीख
उन्होने बताया कि बड़े बिजनेस में हाथ आजमाने की सीख उन्हें कांग्रेस के ही एक बड़े नेता सुरेन्द्र सिंह राजपूत ने दी थी। जब वो घरेलू जीवन को संभालने के लिये जद्दोजहद कर रहे थे, उन्हें अपनी बहन को गंभीर हालत में एक दिन अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था, लेकिन उनकी माली हालत इतनी कमजोर थी, कि वो अपनी बहन को कुछ और वक्त अस्पताल में रखने की हालत में नहीं थे।

कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन किया
जब राजनीति में उनकी हैसियत बढने लगी, तो साल 2002 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें सिद्धपुर सीट से उतारा, वो बीजेपी उम्मीदवार को हराकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन अगला चुनाव 2007 में वो हार गये। हालांकि उन्होने हार नहीं मानी और फिर 2012 में निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे । लेकिन फिर कांग्रेस के अंदर मची घमासान और खींचतान से परेशान होकर उन्होने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी से जुड़ गये। आपको बता दें कि बलवंत सिंह राजपूत पूर्व सीएम शंकर सिंह बाघेला के रिश्तेदार भी हैं।