25 जून की वह रात, जब इंदिरा गांधी की फरमान से देश पर बरपा सरकारी कहर

कांग्रेस के अलावा सिर्फ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आपातकाल के पक्ष में थी। भाकपा नेताओं ने जेपी को फासिस्ट करार दिया था।

New Delhi, Jun 25 : आज (25 जून 1975 ) ही के दिन अर्द्धरात्रि में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आतंरिक आपातकाल लगाया था। 26 जून 1975 की सुबह इंदिरा गाँधी ने आकाशवाणी से खुद देश में आपातकाल लगाए जाने की सूचना दी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ फखरुद्दीन अली अहमद को सोते से जगाकर आपातकाल लागू करने की अधिसूचना पर हस्ताक्षर कराये गये थे। आपातकाल में जेपी समेत सभी विपक्षी नेता और छात्र नेता जेल में डाल दिए गये थे। देश में एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था। आरएसएस समेत कई संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। कांग्रेस के अलावा सिर्फ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आपातकाल के पक्ष में थी। भाकपा नेताओं ने जेपी को फासिस्ट करार दिया था।

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संविधान की धारा 352 के तहत देश में आतंरिक अशांति का हवाला देते हुए आपातकाल लागू किया गया था। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने मंत्रिमंडल को भी विश्वास में नहीं लिया था। 25 जून 75 को दिल्ली के रामलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विशाल जनसभा हुई थी। जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए सरकार से इस्तीफे की मांग की थी। उन्होंने पुलिस और सुरक्षा बलों से सरकार के असंवैधानिक आदेशों का पालन नहीं करने की अपील भी की थी। इसी को आधार बनाकर इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लागू किया था। आपातकाल में मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति नहीं थी।

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इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को दिये अपने फैसले में रायबरेली से इंदिरा जी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया था। इंदिरा गांधी से चुनाव हारे राजनारायण ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनकी तरफ से अधिवक्ता शांति भूषण ने पैरवी की थी। फैसला सुनाते हुए जस्टिस सिन्हा ने अपने आदेश में लिखा कि ‘ इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया, इसलिए उनका चुनाव निरस्त किया जाता है।’
इंदिरा जी पहली भारतीय पीएम थी जो किसी मामले में गवाही देने के लिये कोर्ट में हाज़िर हुई थी। 18 मार्च 1975 को जब वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में आई तो कोई भी उनके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ। इस संबंध में कोर्ट ने पहले ही निर्देश जारी कर दिया था। इंदिरा जी पांच घंटे तक कोर्ट में रहीं। आरंभ में जस्टिस सिन्हा ने उनसे कुछ सवाल पूछे। बाद में 4 घंटे से अधिक समय तक राजनारायण के वकील शांति भूषण ने उनसे सवाल पूछे।

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यहाँ यह स्मरण कराना जरुरी है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस डीएस माथुर ने जस्टिस सिन्हा के घर आकर कहा था -अगर इंदिरा जी के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हैं, तो उन्हें तुरंत सुप्रीम कोर्ट में भेज दिया जाएगा। लेकिन जस्टिस सिन्हा प्रलोभन में नहीं आये। दुनिया के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी हाईकोर्ट के जज ने प्रधानमंत्री के खिलाफ इस तरह का फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद देश में चल रहे कांग्रेस विरोधी आंदोलन में और गति आ गई थी। छात्रों के साथ -साथ राजनीतिक दल भी इंदिरा गाँधी से इस्तीफे की मांग करते सड़कों पर आ गए थे। पूरे देश में इंदिरा विरोधी माहौल बन गया था। बिहार इस आंदोलन का केंद्र था।
इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 22 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट में वैकेशन जज जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर के सामने इंदिरा गाँधी की ओर से अपील की गई। 24 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर जस्टिस अय्यर ने आंशिक स्थगनादेश देते हुए इंदिरा जी की लोकसभा की सदस्यता तो बहाल रखी लेकिन उन्हें सदन में वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया। जेपी के नेतृत्व में देश में हो रहे आंदोलन से इंदिरा जी पहले से ही परेशान थीं। कोर्ट के फैसले ने उनकी नाराजगी और बढ़ा दी। उन्हें लगा की अब उनकी कुर्सी छिन जायेगी। इससे निपटने के लिए इंदिरा गांधी ने 25 जून की अर्द्ध रात्रि में बिना कैबिनेट की सहमति लिये आपातकाल लगा दिया था।

आपातकाल में सत्ता पूरी तरह संजय गाँधी के हाथों में आ गई थी। मंत्री से लेकर अधिकारियों तक को वे सीधे निर्देश देते थे।
आपातकाल में सरकारी कर्मचारियों को नसबंदी कराने का कोटा निर्धारित कर दिया गया था। कोटा पूरा नहीं होने पर उनका वेतन रोक दिया जाता था। कोटा पूरा करने के चक्कर ने बूढ़े और कुंवारे लोगों की भी जबरन नसबंदी कराई गई। प्रेस पर सेंसर लगा दिया गया। सरकार के विरोध में बोलना, लिखना या आंदोलन करना अपराध था। संविधान संशोधन कर लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष से बढाकर 6 वर्ष कर दिया गया था। आपातकाल के लम्बे समय तक जारी रहने से विश्व में इंदिरा गाँधी की आलोचना होने लगी थी। उन्हें तानाशाह कहा जाने लगा था। इधर अधिकारी सरकार को रिपोर्ट दे रहे थे कि जनता बहुत खुश है। इससे इंदिरा जी को लगा कि चुनाव कराकर विरोधियों का मुंह बंद कर दिया जाये और तानाशाह का धब्बा धो दिया जाये। यही सोचकर उन्होंने फरवरी 1977 में अचानक चुनाव की घोषणा कर सबको चौका दिया। जेल में बंद विपक्षी नेताओं को रिहा कर दिया गया। मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए।21 मार्च 1977 को परिणाम आया तो कांग्रेस का सफाया हो गया था। खुद इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थी। हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। जेपी की पहल पर विपक्षी दलों ने मिलकर जिस जनता पार्टी का गठन किया था ,उसे दो तिहाई बहुमत मिला। और मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने।
प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के पहले इंदिरा गांधी ने आपातकाल समाप्त कर दिया था। 21 मार्च 1977 को चुनाव हारने के बाद अपने कैबिनेट की अंतिम बैठक में इंदिरा जी ने आपातकाल हटाने का फैसला लिया था। आपातकाल में ज्यादतियां तो बहुत हुई थीं लेकिन कुछ अच्छे काम भी हुए मसलन ट्रेनें बिलकुल समय पर चलने लगीं। सरकारी दफ्तरों में सभी समय पर मौजूद रहते थे। काम तेजी से हो रहे थे। अपराध और रिश्वतखोरी न्यूनतम थी। लेकिन इसके लिए देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)