पथलगड़ी कांड पर सब क्यों चुप हैं, कहां है मोमबत्ती गैंग, कहां है विपक्ष ?

वाह रे विपक्ष ! इतना में तो राज्य में आग लग जानी चाहिए थी लेकिन जहां वोट ही ऑक्सिजन हो वहां कौन मिशनरियों से पंगा लेगा।

New Delhi, Jun 29 : बहुत दिनों बाद मीडिया ,खासकर कुछ अखबारों ने झारखंड के बिगड़े हालात को पर्याप्त तरीके से दिखाना शुरू किया है।खूंटी में पत्थरगढ़ी के बाद पांच लड़कियों के गैंगरेप की खबर और अब आजादी मांग रहे पथलगड़ी समर्थकों की हिंसक हरकत। दरअसल इसके पीछे सिर्फ दो कारण है ।एक मिशनरियों का राज्यविरोधी हरकत और दूसरा सरकार की नाकामी। अब मीडिया सरकार की जगह स्थानीय प्रशासन या पुलिस या पुलिस प्रशासन के कुछ अधिकारियों का नाम गिनाकर अपना हाथ झाड़ ले रहे है। साफ साफ क्यो नही बताते कि सरकार नाकाम रही है । आदिवासियों को विश्वास में लेने की कोशिश नही की गई है।

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मिशनरियों की हरकत पर सरकार ने पाबंदी नही लगाई है। एक पादरी ,दुर्भाग्य से उसे ईसाई मतावलम्बी फादर कहते हैं, पांच बेटियों को बलात्कारियो के हाथ सौंप देता है। विपक्ष नामर्दो की तरह मुह छिपाए हुए है। सिर्फ इसलिए कि वहां का विधायक ईसाई है। राज्य में ईसाइयों के वोट लेना है इसलिए चुप है। मोमबत्ती गैंग चुप है क्योंकि उन्हें ऐसी ही संस्थाओं से फंडिंग होती है । उन्ही के पैसों से घर चलता है । मोमबत्ती खरीद लेंगे तो फंडिंग भी बंद हो जाएगी। छिटपुट लोग अल्बर्ट एक्का चौक पर फोटो खिंचवाकर और मन ही मन फोटो नही छपने के प्रार्थना कर तेल पानी का जुगाड़ करने लग गए हैं । वाह रे विपक्ष ! इतना में तो राज्य में आग लग जानी चाहिए थी लेकिन जहां वोट ही ऑक्सिजन हो वहां कौन मिशनरियों से पंगा लेगा। खूंटी ,जहां देश का संविधान जलाया जा रहा है ,मानवता कुचली जा रही है , जनप्रतिनिधि को औकात बताया जा रहा है ,मीडिया को धमकाया जा रहा है ,यह क्या कश्मीर से अलहदा स्थिति है?भारतीय संविधान और संप्रभुता से आजादी का यह नारा राजधानी रांची से महज 30 किलोमीटर दूर गूंज रहा है। सुरक्षाबलों / पुलिस के खिलाफ यहां भी पत्थरबाजी हो रही है।वाहन जलाए जा रहे हैं ,सुरक्षाबलों का अपहरण हो रहा है , अफीम की खेती खुलेआम की जा रही है,समानांतर सरकार गठित की जा रही है,रिज़र्व बैंक के समांतर बैंक स्थापित किया जा रहा है, सांसद के घर हमला हो रहा है ,मीडिया तक को कई इलाकों में प्रवेश पर प्रतिबंध है और हम कह रहे हैं कि राज्य में सरकार का इक़बाल कायम है। पथलगड़ी समर्थकों की नीयत तो तब सामने आ गयी जब उन्होंने पाँच लड़कियों के साथ कुकर्म किया।

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पथलगड़ी करने वालो में अधिकांश ईसाई आदिवासी है ।नेतृत्वकर्ता तो बेशक ईसाई आदिवासी ही है जिन्हें चर्च का पूरा साथ मिल रहा है। अखबार खुलकर बोलने में हिचक रहे हैं कि इसमें चर्च का भी हाथ है । अखबार कयास नही लगा सकते लेकिन सरकार और उसके एजेंसियों को यह बताने में डर कैसा? एक बात तय है कि यहाँ आदिवासियों के साथ लगातार संवाद करने की सरकार की कोशिश नही हुई। सरकार इतना आरोगेंट हैं कि द्विपक्षीय वार्ता हो ही नही सकती। जब तक सरकार आदिवासी नेतृत्व वाला नही होगा दूसरे को पचाना आदिवासी / मूलवासियों के लिए संभव नही है।विपक्ष तो गदगद है कि स्थितियाँ इतनी बिगड़ जाए कि 2019 में मजबूरन जनता उन्हें चुने। इसलिए वे चुप लगाना ही बेहतर समझ रहे हैं। लेकिन क्या राजनीति केवल वोट और सत्ता तक ही सीमित है ? भले कोई कह ले की भारत का लोकतंत्र सफल व्यवस्था है लेकिन जनता और मतदाता बेहद भुलक्कड़ , नासमझ , भावावेग में बहने वाला , जाति धर्म मे बंटा हुआ और लोभी है ।

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आप छाती पीटते रहिये , समझदारी की गुहार लगाते रहिये वे वही करेंगे जो अबतक करते आये हैं। एक दारू की बोतल पर संविधान ,लोकतंत्र ,देश ,समाज कुर्बान । यहां कुछ होने वाला नही ।रामभरोसे हिन्दू होटल। गनीमत है कि जुकरबर्ग ने फेसबुक खुला रखा है वरना गुस्सा छाती जलाते रहता और मुझ सहित बहुत से लोग गुस्सा जाहिर किये बगैर खर्च हो चुके होते और खर्च होने की वजह भी किसी को पता नही चलता।
‌मजरूह सुल्तानपुरी की कसक याद आती है —–
‌ज़बाँ हमारी न समझा यहाँ कोई ‘मजरूह’
हम अजनबी की तरह अपने ही वतन में रहे

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)