उच्च शिक्षा : सुधार का अर्थ ?

अब जो उच्च शिक्षा आयोग बन रहा है, इसका एक ही मुख्य लक्ष्य है कि देश की उच्च शिक्षा में सुधार करना।

New Delhi, Jun 30 : मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को मैं बधाई दिए बिना नहीं रह सकता। अब वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का नाम बदलकर उच्च शिक्षा आयोग कर रहे हैं। इसका नाम ही नहीं बदलेगा, अब इसका काम भी बदलेगा। जहां तक नाम बदलने का सवाल है, मानव संसाधन मंत्रालय का नाम सबसे पहले बदलना चाहिए।

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शिक्षा मंत्रालय का यह नाम किसी अफसर ने राजीव गांधी को सुझाया और उन्होंने प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद श्री पी.वी. नरसिंहराव को मानव संसाधन मंत्री बना दिया। मैंने राव साहब को उसी वक्त राष्ट्रपति भवन में कहा कि यह कैसा बेढंगा नाम है ? राजीव तो अभी नौसिखिया हैं लेकिन आप तो विद्वान हैं, अनुभवी हैं। आप अब मनुष्यों को साधन बनवाएंगे क्या ? वह तो साध्य होना चाहिए। राव साहब क्या करते ? उनके बाद अर्जुनसिंह और डाॅ. मु.म. जोशी जैसे लोग भी इस बेढंगें नाम को अपने कंधे पर ढोते रहे। अब शायद मोदी और जावड़ेकर इस गल्ती को सुधार लें।

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अब जो उच्च शिक्षा आयोग बन रहा है, इसका एक ही मुख्य लक्ष्य है कि देश की उच्च शिक्षा में सुधार करना। दान और अनुदान आदि देने का काम अब मंत्रालय करेगा लेकिन यह आयोग देश के सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों, कालेजों, शोध-केंद्रों, प्रशिक्षण केंद्रों आदि पर कड़ी निगरानी रखेगा और जो भी संस्था निर्धारित स्तरों का उल्लंघन करेगी, उन्हें बंद करने, उन पर जुर्माना करने और उनके संचालकों को तीन साल तक की सजा देने का काम करेगी। अभी तो उसे सिर्फ उनकी मान्यता समाप्त करने भर का अधिकार है। आशा है, यह प्रावधान उच्च शिक्षा में चल रही अराजकता पर रोक लगाएगा। विश्वविद्यालयों की वित्तीय व्यवस्था अब सरकार के हाथ में होगी। कहीं ऐसा न हो कि उनकी स्वायत्ता का गला घुट जाए ?

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लेकिन असली सवाल यह है कि हमारी सरकार के पास उच्च शिक्षा का कोई अपना नक्शा भी है या नहीं ? हमारे विश्वविद्यालयों की विश्व में कोई गिनती नहीं है। हमारे जिलों के बराबर जो देश हैं, उनके विश्वविद्यालयों के आगे हमारे सैकड़ों विवि पानी भरते नजर आते हैं। वे विवि नकलचियों के अड्डे नहीं हैं। वे मौलिक अनुसंधान करते हैं। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में वे अपने देश को नई दिशा देते हैं। वे अपनी भाषाओं में उच्च शिक्षा और उच्च शोध करते हैं। उनका काम मौलिक होता है, हमारा काम नकल होता है। यदि राष्ट्रवादियों की यह सरकार नकल को असल में बदल सके तो क्या कहने ? मोदी सरकार ने पिछले चार साल तो फिजूल की नौटंकियों में बर्बाद कर दिए लेकिन अब इस शेष एक साल में वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ क्रांतिकारी काम कर दिखाए तो उसके हट जाने के बावजूद लोग उसे याद रखेंगे और उसका आभार मानेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)