सरकार हित में भी है सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा

यदि सरकार गवाहों की रक्षा नहीं करती तो वह राष्ट्र के आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते को समर्थन-प्रोत्साहन नहीं करती।

New Delhi, Jul 03 : गत दो महीने के भीतर बिहार के दो सूचना अधिकार कार्यकत्र्ताओं की हत्या कर दी गयी। अन्य कइयों की जान खतरे में है।पूरे देश में भी ऐसी हत्याएं होती रहती हैं। 2005 में जब सूचना अधिकार कानून बना था तो लोगों की उम्मीदें जगी थीं। लगा था कि अब जनता भी सांसदों-विधायकों की तरह सरकार से सूचनाएं मांग सकती है। बहुत सी महत्वपूर्ण सूनाएं मिली भी।कुछ अब भी मिल रही हैं।पर धीरे -धीरे उसके प्रति लोगों का उत्साह कम होता जा रहा है।क्योंकि निहितस्वार्थी तत्वों द्वारा कठिनाइयां खड़ी की जा रही हैं।

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दरअसल कानून बनाते समय ही शासन को इस बात का पूर्वानुमान होना चाहिए था कि इस क्षेत्र में काम करने वालों की जान खतरे में पड़ेगी क्योंकि यह कानून मूलतःनिहितस्वार्थी तत्वों पर गहरी चोट करता है। यदि सरकार अच्छी हो तो सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता परोक्ष रूप से सरकार का ही काम कर रहा होता है। हालांकि भ्रष्ट व निकम्मी सरकारों को यह कानून पसंद नहीं है। किसी अच्छी सरकार के लिए सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता आंख व कान का काम करते हैं जिस तरह कोई गवाह अदालत के लिए आंख-कान का काम करता है। सूचना अधिकार कार्यकत्र्ता गण सरकारी लूट,भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर कर अंततः ईमानदार शासक का काम ही आसान करते हैं।
एक तरह से वे सरकार के गवाह होते हैं।

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यदि देश में कभी गवाह सुरक्षा कानून बने तो उसके तहत सूचना अधिकार कार्यकत्र्ताओं को भी लाया जाना चाहिए। अन्य कानूनों की तरह सूचना अधिकार कानून के दुरुपयोग की भी खबरें आती रहती है। पर भयादोहन के काम में लगे उन सूचना अधिकार कार्यकत्र्ताओं की बात यहां नहीं की जा रही है। उनकी की जा रही है जो ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। गवाह सुरक्षा कानून के अभाव के कारण भी इस देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ध्वस्त होता जा रहा है।इसी तरह सूचना अधिकार कानून भी। सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक बार सरकार से कहा कि वह गवाह सुरक्षा कानून बनाए।
हिमांशु सिंह सब्बरवाल बनाम मध्य प्रदेश केस में 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह न्यायिक सिस्टम के आंख-कान हैं। यदि सरकार गवाहों की रक्षा नहीं करती तो वह राष्ट्र के आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते को समर्थन-प्रोत्साहन नहीं करती।

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पर गवाह सुरक्षा कानून में सरकार की कोई रूचि नहीं लगती। दुनिया के जिन देशों में गवाह सुरक्षा कानून मौजूद हैं,उनमें अमेरिका, कनाडा, इजरायल, ब्रिटेन, आयरलैंड, इटली और थाइलैंड शामिल हैं।
अमेरिका में अदालतें 93 प्रतिशत मुकदमों में सजा सुना देती है। जापान में 99 प्रतिशत और ब्रिटेन में 80 प्रतिशत मामलों में सजा हो जाती है। पर भारत का प्रतिशत 45 है। नतीजतन हर तरह के अपराधी जितने निडर इस देश में हैं,उतने शायद कहीं ंनहीं।जिन मुकदमों में राजनीतिक नेता आरोपित होते हैं,उनमें से अनेक मामलों में सरकार बदलते ही गवाह भी बदल जाते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)