इमरजेंसी के प्रस्तावक, इमरजेंसी के खिलाफ मिले जनादेश के बाद उसके प्रधान मंत्री कैसे बन सकते थे ?

1977 में प्रधान मंत्री पद के लिए जग जीवन राम का नाम जरूर आया था। पर मोरारजी देसाई उनसे बीस पड़े।

New Delhi, Jul 08 : बाबू जगजीवन राम जब सन 1984 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सासाराम लोक सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे, तब एक बात राजनीतिक हलकों में तैर रही थी। वह यह कि तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी चाहते थे कि बाबू जी को लोक सभा में होना चाहिए। याद रहे कि इंदिरा जी की हत्या के कारण तब कांग्रेस के पक्ष में देश भर में सहानुभूति की लहर थी। तब कांग्रेस बिहार की लोक सभा की 54 सीटों में से 48 सीटें जीत गयीं थी। ‘बाबू जी’ भी जीते जरूर, पर सिर्फ 13 सौ मतों से।

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इस तरह हमेशा चुनाव जीतने का उनका रिकाॅर्ड कायम रह गया। सन 1986 में उनका निधन हो गया।
याद रहे कि जग जीवन राम को लोग ‘बाबू जी’ कहा करते थे। 1977 में प्रधान मंत्री पद के लिए जग जीवन राम का नाम जरूर आया था। पर मोरारजी देसाई उनसे बीस पड़े। सबसे बड़ी बात यह थी कि मोरारजी पूरे आपातकाल जेल में थे । उन्होंने पेरोल पर छूट जाने की कोई कोशिश तक नहीं की। दूसरी ओर तब के मंत्री जगजीवन राम ने संसद में इमरजेंसी की मंजूरी का प्रस्ताव पेश किया था। यानी इमरजेंसी के प्रस्तावक ,इमरजेंसी के खिलाफ मिले जनादेश के बाद उसके प्रधान मंत्री कैसे बन सकते थे !

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चुनाव की घोषणा के बाद ही जगजीवन बाबू ने कांग्रेस छोड़ी थी। पर, जगजीवन राम में इतने अधिक गुण थे जो किसी नेता को महान बना देने के लिए पर्याप्त हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति के लिए अपना निजी कैरियर छोड़कर आजादी की लड़ाई में शामिल हो जाना भी एक बड़ी बात थी।

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वे प्रभावशाली वक्ता व कुशल प्रशासक के रूप में चर्चित हुए। जिस मंत्रालय को उन्होंने संभाला, उसमें बेहतर काम हुए। उन्हें इस देश व समाज की बेहतर समझ थी। बांग्ला देश युद्ध के समय वे रक्षा मंत्री थे। पर युद्ध में जीत का श्रेय सिर्फ प्रधान मंत्री को मिला था। दूसरी ओर 1962 में चीन से हार का ठीकरा तब के रक्षा मंत्री वी.के.कृष्ण मेनन पर फोड़ दिया गया था।

(जगजीवन राम की पुण्य तिथि –6 जुलाई-के अवसर पर विशेष, वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)