हिंदू-पाकिस्तान पर बवाल के पीछे कांग्रेस की रणनीति क्या है ?

पता नहीं कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की हिंदू और हिंदू प्रतीकचिन्हों से इतनी नफ़रत क्यों है? ये जब भी हिंदू शब्द बोलते हैं तो उसमें एक अजीब सी घृणा झलकती है।

New Delhi, Jul 15 : अजीब शख्सियत है ये शशि थरूर. वो एक राजनायिक रहे हैं. अच्छे लेखक हैं. क्या कब कहां और कितना बोलना है वो अच्छी तरह से जानते हैं. लेकिन उन्होंने एक अजीबोगरीब बयान दिया. कहा – ‘अगर साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीती, तो हिंदुस्तान का संविधान खतरे में पड़ जाएगा, भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा. उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए बीजेपी को लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत चाहिए. राज्यसभा में फिलहाल बीजेपी के पास बहुमत नहीं है लेकिन आने वाले समय में राज्यसभा में बहुमत मिलते ही बीजेपी हिंदू राष्ट्र के एजेंडे पर बढ़ेगी.’ किसी राजनायिक को साफ साफ बयान देना पड़ जाए तो इसका मतलब है कि वो किसी संकट की स्थिति से गुजर रहा है. अगर ये बयान ओवैसी या दिग्गविजय सिंह, लालू या उसके बेटे, ममता दीदी या केजरीवाल ने दिया होता तो शायद इसे कोई गंभीरता से नहीं लेता. लेकिन शशि थरूर ने ऐसा बयान दिया है तो इसमें कोई न कोई बात तो जरूर है.

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हिंदू पाकिस्तान का मतलब क्या है इस पर आगे लेकिन ये समझना जरूरी है कि शशि थरूर ने आखिर ये बयान दिया क्यों? दरअसल, ये बयान कांग्रेस पार्टी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. 2019 के चुनाव आने वाले हैं. गुजरात और कर्णाटक में चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने जेनऊधारी हिंदू ब्राह्मण का रोल निभाया. वो इसलिए क्योंकि इन दोनों राज्यों में चुनाव पर असर डालने लायक मुस्लिम वोटर्स नहीं है. लेकिन, कांग्रेस पार्टी को पता है कि लोकसभा का चुनाव जेनऊ पहन कर जीतना तो दूर लड़ा भी नहीं जा सकता है. क्योंकि कांग्रेस पार्टी कई राज्यों क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ना चाहती है. य़ूपी, बिहार, बंगाल, असम, झारखंड, आंध्र, तेलंगाना, कर्णाटक, तमिलनाडू और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है. लेकिन इसमें एक समस्या है.

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इन राज्यों में कुल 347 सीटें है. कांग्रेस पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि इन 347 सीटों में कितनी सीटों पर उसे लड़ने का मौका मिलेगा? मतलब ये कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस पार्टी को इन राज्यों कितनी सीटें देंगी? मुश्किल ये है कि इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी हाशिये पर चली गई है. यहां न तो कांग्रेस के पास नेता है, न कार्यकर्ता, न संगठन और न ही समर्थन है. गैर करने वाली बात ये है कि 2014 में सबसे ज्यादा उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी के थे. कांग्रेस के 464 उम्मीदवार मैदान में थे. जिसमें पार्टी को 19.3 फीसदी वोट और 8.1 फीसदी यानि 44 सीटें मिली थी. एक अनुमान के मुताबिक अगर कांग्रेस पार्टी को महाबंधन के साथ इन राज्यों में चुनाव लड़ती है तो 347 सीटों में ज्यादा से ज्यादा सौ सीटें ही मिल पाएंगी. वो भी बहुत ही मुश्किल से.

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मतलब ये कि कांग्रेस पार्टी 542 सीटों के चुनाव में सिर्फ 295 सीटों पर चुनाव लड़ पाएगी. कांग्रेस पार्टी का पहला टारगेट इन सीटों को बढ़ाना है. कांग्रेस चाहती है कि वो कम से कम 380 से 400 सीटों पर चुनाव लड़े और महागठबंधन भी बना रहे. इसके लिए, कांग्रेस पार्टी ने वामपंथियों के साथ मिल कर पहले दलित कार्ड खेला. बेमुला, दलितों की पिटाई और गरीब दलित किसानों के मुद्दों के जरिए एक वोटबैंक बटोरने की कोशिश की. लेकिन, ये काम नहीं आया. इसलिए कांग्रेस ने अब स्ट्रेटेजी बदली है. अब फिर से मुसलमानों को अपनी ओर खीचने में जुटी है. पहले इफ्तार और जालीदार टोपी पहन कर माहौल बनाया गया. मुस्लिम वोटों के व्यापारियों के साथ मिल कर शरिया अदातल का मामला उठाया गया. इसबीच, राहुल गांधी मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स से मिलते हैं तो दूसरी तरफ शशि थरूर के जरिए हिंदू-पाकिस्तान का सुगूफा छोड़ देते हैं. और तो और. कंर्णाटक का कांग्रेसी मंत्री शरिया कोर्ट की स्वागत भी कर देता है.

दरअसल, कांग्रेस पार्टी खुद की छवि एक प्रो-मुस्लिम पार्टी की बनाना चाहती है. ताकि ये लगे कि कांग्रेस पार्टी ही अकेली वो पार्टी है जो मोदी और आरएसएस से लड़ सकती है. और मुसलमानों की चिंता करती है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी महागठबंधन में शामिल नेताओं को ये संकेत देना चाहती है कि देश के मुसलमानों का हाथ कांग्रेस के साथ है, ताकि सीटों के बंटवारे के दौरान क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को जूनियर पार्टनर न समझे. कांग्रेस पार्टी मुस्लिम-समर्थन का धौंस दिखा कर गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहिती है. मतलब साफ है कि शशि थरूर का बयान बीजेपी पर हमला से ज्यादा महागठबंधन के लिए संदेश है कि कांग्रेस को कम मत समझिए. लेकिन, ‘संभावित महागठबंधन’ की पार्टियां कांग्रेस के इस चाल को समझ गई इसलिए शशिथरूर के बयान पर लगभग मौन रही. क्योंकि, ये पार्टियां भी खुद को मुसलमानों का रखवाला समझती है. विपक्ष के बीच ये कॉमपिटिटिव अपीजमेंट का खेल शुरु हो गया है.

कांग्रेस पार्टी को हिंदू-पाकिस्तान का डर दिखा कर वो एक तीर से दो शिकार कर लेंगे. लेकिन, पूरे देश में जो संदेश गया वो कांग्रेस पार्टी को फायदा की जगह नुकसान होगा. क्योंकि पाकिस्तान का नाम आते ही लोगों को लगा कि कांग्रेस पार्टी ने हिंदूओं और हिंदुस्तान की बेइज्जती की है. हकीकत ये है कि शशि थरूर जैसे विद्वान से ऐसे बयान की उम्मीद नहीं थी. इसकी वजह ये है कि वो पाकिस्तान को भी जानते हैं और हिंदू सभ्यता और इतिहास से भी वाकिफ हैं. आज हिंदुस्तान में अगर सभी धर्म के सभी अधिकारों के साथ रहते हैं तो वो सिर्फ इसलिए कि हिंदू जन्मजात सहिष्णु होते हैं. ये धर्म किसी दूसरे धर्म को छोटा और उससे घृणा करना नहीं सिखाता है. इतिहास गवाह है कि हजार साल तक हिंदू मुस्लिम और अंग्रेजों के दमन के शिकार होते रहे. बादशाहों और अंग्रेजों के हाथों पिटते रहे लेकिन कभी हिंसक हो कर समाज में अराजकता नहीं फैलाई. अगर दुनिया के किसी दूसरे देश में बहुसंख्यक का इसतरह से शोषण होता तो उस देश का इतिहास गृह युद्ध के पन्नों से भरा होता.

जिस बेशर्मी से शशि थरूर ने हिंदुस्तान की तुलना पाकिस्तान से की है उस मानसिकता से लड़ने की जरूरत है. शशि थरूर की अच्छी तरह पता है कि पाकिस्तान कोई राष्ट्र नहीं है.. वो महज एक इस्लामिक स्टेट है. इतिहास, संस्कृति, भूगोल और समाज के पैमाने पर ये न कभी राष्ट्र था और न ही बन सकता है. दूसरी बात ये है कि पाकिस्तान एक मिलिट्री स्टेट है. मतलब ये कि दुनिया के बाकी देशों की सेना होती है… लेकिन पाकिस्तान की व्यवस्था बिल्कुल अलग है. यहां एक सेना है जिसके पास अपना देश है. जो कभी सामने से या फिर कठपुतली सरकार के पीछे से शासन चलाती है. सवाल ये है कि शशि थरूर और मोदी विरोधी गैंग को ऐसा क्यों लगा कि संविधान खतरे में है. अगर पिछले 4 सालों में मोदी सरकार की तरफ से ऐसी कोई पहल की गई जिसमें भारत के प्रजातंत्र को खत्म करने की बात हो.. अल्पसंख्यकों के अधिकारों का खत्म करने की बात की हो या फिर मिलिट्री को सत्ता सौपने का संकेत दिया हो. तब तो शशि थरूर की बातों पर विचार भी किया जा सकता है. अन्यथा यही कहा जाएगा कि शशि थरूर घटिया स्तर का प्रोपेगंडा और हेट मोंगरिंग कर रहे हैं.

मोदी से घृणा करने वाले लुटियन पत्रकारों से लेकर अवार्ड वापसी गैंग की ये फितरत है कि इन्हें हिंदू और हिंदू प्रतीक चिन्हों को कोसे बिना चैन नहीं आता है. वैसे तो ये काफी पढ़े लिखे हैं लेकिन मोदी का नाम सुनते ही इनकी विवेक और बुद्धि नष्ट हो जाती है. मूर्खों की भांति राई का पहाड़ बनाते हैं. पहले मोदी को, फिर हिंदूओं को और अब तब तो हिंदुस्तान को ही बदनाम करने पर तुले हैं. ये हिंदू-पाकिस्तान की खिचड़ी काफी पहले से पक रही थी. दरअसल, मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए ये लोग गौ-रक्षकों द्वारा की गई पिटाई को देश की सबसे बड़ी समस्या समझने लगे हैं. मैं गौरक्षकों का समर्थक नहीं हूं, गाय को बचाने के लिए किसी इंसान की पिटाई करने बिल्कुल खिलाफ हूं. इन गुड़ों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का पैरोकार हूं लेकिन कोई ये कहे कि 15-20 लिंचिग के मामले से देश पाकिस्तान की तरह बन जाएगा तो इस बकवास को माना नहीं जा सकता है. पिछले कुछ महीनों में बच्चा चोर गैंग की अफवाह के नाम पर 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इन सब की मौत लिंचिंग से हुई है. मरने वाले और मारने वालों में हिंदू मुस्लिम पिछड़े दलित भी शामिल हैं. तो क्या इससे प्रजातंत्र खतरे में पड़ गया? क्या हिंदुस्तान पाकिस्तान बन गया? ये एक लॉ एंड ऑर्डर का प्रोब्लेम है. ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है लेकिन इसके नाम पर अगर देश मे राजनीति होगी तो ये अशोभनीय है. हकीकत ये कांग्रेस पार्टी ने जनता से जुड़ी राजनीति दशकों पहले छोड़ चुकी है. भ्रष्टाचार में डूबी विपक्षी पार्टियों को पास सरकार के खिलाफ न तो कोई मुद्दा है और न ही माद्दा है.

पता नहीं कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की हिंदू और हिंदू प्रतीकचिन्हों से इतनी नफ़रत क्यों है? ये जब भी हिंदू शब्द बोलते हैं तो उसमें एक अजीब सी घृणा झलकती है. कांग्रेस पार्टी जब सरकार में थी तब हिंदू-टेरर.. हिंदू-टेरर की अफवाह उड़ाई. झूठे मामले दर्ज किए. निर्दोष लोगों को बलि का बकरा बनाया पर कुछ साबित नहीं कर सके. लेकिन कांग्रेस की प्रोपेगंडा-मशीन और लुटियन गैंग ने हिंदुओं को आतंकवादी बता कर दुनिया भर में बदनाम किया. कांग्रेस पार्टी के वरिष्टतम नेता दिग्गविजय सिंह ने तो बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ दी. मुंबई हमला हिंदू आतंकवाद की साजिश है, इस मूर्खतापूर्ण थ्योरी पर न सिर्फ मुहर लगाई बाकायदा किताब का विमोचन भी कर दिया. और ‘जेनऊधारी’ राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत से यहां तक कह दिया कि हिंदुस्तान को इस्लामिक आंतकवाद से ज्यादा हिंदू आंतकवाद से खतरा है. अब जब कांग्रेस की साजिश का खुलासा हो गया है. हिंदू आंतकवाद की थ्योरी की हवा निकल गई है तो इन लोगों ने हिंदू आंतकवाद का रट लगाना बंद कर दिया. लेकिन, इनके अंदर इतनी घृणा भरी है कि उसका किसी न किसी रूप में बाहर आना लाजमी था. यही वजह है कि विपक्ष अब हिंदू-पाकिस्तान का हौआ खड़ा करने में जुटा है.

(वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)