दस बहाने करके डुबो गई राफेल डील

बोफोर्स में तो अंकल को कमिशन मिलने की बात थी। राफेल में कमीशन कहां है?

New Delhi, Oct 03 : क्या राफेल डील मोदी सरकार को उसी तरह से डुबाएगि जैसे बोफोर्स डील राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार को डुबा गई थी? अगर इस मुद्दे पर सरकार की बौखलाहट को देखें तो यही संकेत मिलता है। जब कोई झूठ बोल रहा हो तो उसके बहाने ध्यान से सुनने चाहिए, क्योंकि उसके खंडन से पूरा सच सामने आ जाता है। राफेल डील में मोदी सरकार की बहानेबाजी और सच की बानगी आप भी देखिए।

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पहला बहाना: राफेल बहुत अच्छा हवाई जहाज है खुद वायु सेना के सेनापति कह रहे हैं तो फिर विवाद कैसा?
सच यह है कि इसके बारे में कोई विवाद ही नहीं है। पिछली सरकार मानती थी, यह सरकार मानती है, वायुसेना मानती है और विशेषज्ञ मानते हैं कि राफेल हमारे लिए सबसे उपयुक्त हवाई जहाज है। विवाद यह है कि जब वायु सेना ने 126 हवाई जहाज मांगे थे तो सरकार ने सिर्फ 36 का ऑर्डर क्यों किया? जो हवाई जहाज़ 520 करोड़ रुपए में मिल रहा था उसे 1600 करोड़ में क्यों खरीदा?
दूसरा बहाना: अगर इतना सस्ता मिल रहा था तो कांग्रेस सरकार ने क्यों नहीं खरीद लिया?
सच यह है कि कांग्रेस सरकार अकर्मण्यता और अनिश्चित का शिकार थी इसी मामले पर ही नहीं, सभी बड़े फैसलों को कांग्रेस सरकार ने लटका कर रखा था। मोदी सरकार अगर उस अनिश्चितता को तोड़ कर जल्दी फैसले लेती तो अच्छा था लेकिन यहां तो उसने पुराने फैसलों को बदल दिया। सवाल उसका है।

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तीसरा बहाना: फैसला बदलने की स्वीकृति तो खुद एयर फोर्स और सरकार की तमाम समितियों ने दी।
सच यह है कि जिस दिन प्रधानमंत्री ने फ्रांस में यह घोषणा की उस दिन सुबह तक न तो हमारी एयर फोर्स को पता था, ना खुद हमारे रक्षा मंत्री को पता था, न हीं फ्रांस के राष्ट्रपति को इस बदलाव का कोई अनुमान था। सच यह है की मोदी जी की इस आश्चर्यजनक घोषणा से पहले किसी भी समिति की कोई स्वीकृति नहीं थी। प्रधानमंत्री के वापस आने के बाद कैबिनेट समेत सब समितियों से ठप्पा लगवाया गया। जब खुद प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दी तो किस समिति की मजाल कि उसे पलट सके। फिर भी एक ईमानदार अफसरों हिम्मत से यह नोट लिखा कि यह डील देश हित में नहीं है। उस छुट्टी पर भेज दिया गया, उसकी जगह जिस अफसर ने इस नोट को पलट दिया उसे रिटायरमेंट के बाद बड़े पद का इनाम मिला।

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चौथा बहाना: कांग्रेस के जमाने में जिस डील की बातचीत चल रही थी और जो समझौता प्रधानमंत्री ने किया उसकी तुलना ही कैसे की जा सकती है? इतने साल में महंगाई बढ़ी है। इस सरकार ने जहाज में नए उपकरण लगवाए हैं।
सच यह है कि पुराने और नए समझौते के बीच कुछ महंगाई हुई, कुछ रुपए का दाम गिरा और कुछ नए उपकरण भी जोड़े गए। लेकिन अगर इन सब को हटा भी दिया जाए फिर जिसे पिछली सरकार ने 520 करोड़ में खरीदने की बात की थी, ठीक वही जहाज उसी जमाने के दाम पर दिया जाए तो मोदी सरकार उसके लिए 1100 करोड़ दे रही है। तीन गुना नहीं तो कम से कम दो गुना दाम तो दिया ही जा रहा है।

पांचवा बहाना: आप लोग यह तुलना कर ही कैसे सकते हैं? यह सूचना तो गोपनीय है।
सच यह है कि सरकार के इस बहाने में ही विरोधाभास है। सरकार एक ओर तो कहती है कि मामला गुप्त है। ना किसी को दाम पता है ना बताया जा सकता है। दूसरी ओर सरकार कहती है कि यह सस्ता सौदा है। सच यह है कि इसमें कुछ भी गुप्त नहीं है। सरकार ने खुद पहले दिन पत्रकारों को अनौपचारिक रूप से इस खरीद का पूरा ब्यौरा दिया था। यूं भी हथियारों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ भी छुपा नहीं है। हर विशेषज्ञ जानता है की भारत ने सऊदी में क्या खरीदा किस उपकरण का कितना दाम दिया।

छठा बहाना: बोफोर्स में तो अंकल को कमिशन मिलने की बात थी। राफेल में कमीशन कहां है?
सच यह है की अगर वह फोर्स में 7% कमीशन का संदेह था तो राफेल में 50% कमीशन का संदेह है। अगर बोफोर्स 64 करोड़ का घोटाला था तो राफेल 30,000 करोड़ का घोटाला है। आरोप यह है की ऑफसेट डील कमीशन खाने का एक जरिया है। पहले जिस सौदे की बात चल रही थी उसमें राफेल के साथ हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को पार्टनर होना था। मोदी जी ने रातोंरात इस सरकारी कम्पनी को हटाकर अनिल अंबानी की कंपनी को डलवा दिया।

सातवां बहाना: हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तो बेकार सरकारी कंपनी है उसके बस का नहीं था इतने हवाई जहाज बनाना।
सच यह है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड एकमात्र कंपनी है जिसे रक्षा के लिए विमान बनाने का ऐसा अनुभव है। सच यह भी है की फ्रेंच कंपनी को इस भारतीय सरकारी कंपनी से कोई दिक्कत नहीं थी। दोनों कंपनियों में बातचीत हो चुकी थी, समझौता लगभग पूरा हो गया था। अचानक मोदीजी ने पलट दिया। पता नहीं कहां से अंबानी की कंपनी को ले आए। यह कंपनी तो मोदी जी के फ्रांस जाने से दस दिन पहले ही बनी थी।

आठवां बहाना: इस सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी के जुड़ने का मोदी जी से कोई संबंध नहीं है फ्रेंच कंपनी ने खुद अपने पार्टनर ढूंढो और अनिल अंबानी का चयन किया।
सच यह है कि अब तक इस बहाने की धज्जियां उड़ चुकी है। सच यह है कि अनिल अंबानी उस यात्रा में प्रधानमंत्री के साथ फ्रांस गए थे। सच यह है की प्रधानमंत्री की इस सौदे की घोषणा की खबर में फ्रांस के अखबारों ने अनिल अंबानी की कंपनी का जिक्र किया था अगर सच में कोई संदेह था तो फ्रेंच राष्ट्रपति होलांदे ने पूरा खुलासा कर दिया है उन्होंने साफ साफ कहा कि अनिल अंबानी की कंपनी के चयन में हमारा कोई हाथ नहीं था। अचानक मोदी जी ने पुरानी डील को बदलने की बात कही और सरकारी कंपनी की जगह अनिल अंबानी की कंपनी का नाम लिया। यह उनका निर्णय था फ्रांस का नहीं।

नौवां बहाना: अब तक हेरा फेरी का कोई प्रमाण कोर्ट कचहरी या ऑडिटर की तरफ से नहीं आया है।
सच यह है कि ऐसा कोई प्रमाण कभी भी बोफोर्स के जमाने में भी नहीं आया था, आज तक नहीं आया है। तब भी खोजी पत्रकारिता ने प्रमाण जुटाए थे, आज भी वही स्रोत है।
अंतिम बहाना: रक्षा डील के बारे में सवाल उठाने से सेना का मनोबल गिरेगा। ऐसी बातें पाकिस्तान के इशारे पर हो रही हैं।
सच यह है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार के हर आरोपी का यही अंतिम बहाना होता है। यही बहाना बोफोर्स के जमाने में राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने लगाया था। अगर इसे मान लें तो क्या इतने साल तक वह फोर्स के मामले को उठाने वाले बीजेपी के नेता पाकिस्तान के इशारे पर ऐसे आरोप लगा रहे थे? सच यह है सेना का मनोबल गुपचुप दिल से नहीं पारदर्शिता से बढ़ता है।
यह पढ़कर आपको वो गीत याद आ रहा है ना “दस बहाने कर के…”
अगर चालू फिल्मी गीत पसंद नहीं है तो इस ग़ज़ल को गुनगुनाइए:
सरकती जाए है रुख से नकाब, आहिस्ता, आहिस्ता
निकालता आ रहा है आफताब, आहिस्ता, आहिस्ता।

(स्वराज इंडिया के संयोजक योगेन्द्र यादव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)