गैस सिलिंडर का दाम पिछले आठ सालों में दोगुना हो गया

यह बढोतरी सिर्फ इसी सरकार के दौर में नहीं हुई है. 2010 के बाद से ही यह सिलसिला शुरू है. 26 जून, 2010 से पहले गैस सिलिंडर की कीमत सिर्फ 281 रुपये थी. तब से आज तक कीमत लगातार बढ़ रही है।

New Delhi, Oct 25 : क्या आपको पता है कि आप अपने घरेलू गैस सिलिंडर की कितनी कीमत चुका रहे हैं? जब से खाते में सब्सिडी ट्रांसफर होने का दौर शुरू हुआ है, हममें से ज्यादातर लोगों ने इसका हिसाब लगाना छोड़ दिया है कि वेंडर को कितना बिल चुकाया और खाते में कितनी रकम पहुंची. कई लोगों की तो खाते में रकम भी नहीं पहुंच पा रही, यह अलग मसला है. मगर जिनकी रकम खाते में पहुंच पा रही है, वे भी गैस सिलिंडर की कीमत सही-सही बता पाने में सक्षम नहीं हैं.

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कल तक मैं भी समझता था कि कीमत यही कोई चार सौ, साढ़े चार सौ के करीब होगी. मगर आज जब चुकायी गयी रकम और खाते में आयी सब्सिडी की राशि का हिसाब किया तो पता चला कि सब्सिडी वाली 14.2 किलो गैस सिलिंडर की कीमत पटना में 511 रुपये हो गयी है. दिल्ली में 504 रुपये है. अब आप समझिये कि सरकार के साथ मिलकर बाजार कैसे काम करता है. सरकार ने कह दिया कि सब्सिडी खाते में ट्रांसफर होगी और आप भूल गये कि कीमत बढ़ रही है या घट रही है.
इंडियन ऑयल कारपोरेशन की साइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2014 नवंबर से लेकर अब तक गैस सिलिंडर की कीमत में 87 रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है. यह रवैया उस सरकार का है जो बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार के नारे के साथ सत्ता में आयी है, यह सिलिंडर लेकर आंदोलन करने वालों की सरकार है. आपको पता भी नहीं है, मगर आप जितनी दफा गैस भरवा रहे हैं, आपकी जेब 87 रुपये अधिक ढीली हो रही है.

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हालांकि यह सच है कि यह बढोतरी सिर्फ इसी सरकार के दौर में नहीं हुई है. 2010 के बाद से ही यह सिलसिला शुरू है. 26 जून, 2010 से पहले गैस सिलिंडर की कीमत सिर्फ 281 रुपये थी. तब से आज तक कीमत लगातार बढ़ रही है. इससे पहले के छह सालों में गैस सिलिंडर की कीमत सिर्फ 40 रुपये बढ़ी थी. एक जनवरी, 2004 को कीमत 241 रुपये थी.
दरअसल, सच पूछिये तो सरकार चाहे हरे रंग की हो या भगवा रंग की, भारत में हर सरकार का आर्थिक लक्ष्य देश को लोक कल्याणकारी अर्थव्यवस्था से बदल कर बाजारवादी अर्थव्यवस्था बना देना है, ताकि पूंजीपतियों को व्यापार करने में सुविधा हो. इसका सबसे बुनियादी उपाय माना गया है, सब्सिडी को खत्म कर देना. तो सरकारें हर तरह की सब्सिडी को खत्म करती जा रही हैं. चाहे पेट्रोलियम सब्सिडी हो, या खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी या मुफ्त शिक्षा, मुफ्त इलाज के नाम पर खर्च होने वाला सरकारी धन. सरकार चाहती है कि वह अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ ले और अपने नागरिकों को हर काम के लिए दैत्याकार कारपोरेट कंपनियों के जबड़े में छोड़ दे. वह हर चीज को जरूरत से अधिक कीमत अदा करे.

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इसी वजह से देश के एक फीसदी लोगों का देश के 50 फीसदी संसाधनों पर कब्जा है और 60 फीसदी लोग महज छह फीसदी संसाधनों के भरोसे जी रहे हैं. फिर चाहे उज्ज्वला योजना का नाम हो या स्वास्थ्य बीमा का चुग्गा यह सब दिखाने की बात है. अब बताइये वह आदमी 511 रुपये में सिलिंडर कैसे भरा सकता है जिसकी दैनिक आमदनी ही सिर्फ 36 रुपये है. लिहाजा उज्ज्वला योजना के तहत कनेक्शन लेने वाले ज्यादातर परिवार दूसरी बार गैस नहीं रिफिल करवा पाये हैं.
हमको और आपको भले पता भी नहीं चलता कि गैस सिलिंडर का दाम पिछले आठ सालों में दोगुना हो गया. हम इसी सोशल मीडिया पर पूरी बेशर्मी से कहते हैं कि भले पेट्रोल का दाम 500 रुपये लीटर हो जाये, वोट तो मोदी जी को ही देंगे. मगर उनका क्या जो 60 फीसदी वाली केटोगरी में हैं और सिर्फ छह फीसदी संसाधनों पर जी रहे हैं. वे कैसे पटवन के लिए 80 रुपये प्रति लीटर डीजल खरीदेंगे और 511 रुपये का सिलिंडर भरवायेंगे. याद रखिये, वोटर वो भी हैं.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)