राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव की दूसरी वर्षगाठ

जनता जब नाचती-नाचती बैंक के बाहर पहुंची तो पता चला कि नोटबंदी महोत्सव को लेकर देश में जोश इतना है कि किसी भी बैंक में पांव रखने की जगह नहीं रही हैं।

New Delhi, Nov 09 : 8 तारीख की रात 8 बजे से राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव शुरू हुआ था। `बारह महीने में बारह तरीके से तुझसे प्यार जताउंगा रे’ की धुन पर पूरा देश डिंक-चिका कर रहा था। भक्त जोर-शोर से नाच रहे थे। अभक्त थोड़ा शर्माकर कुछ दूर खड़े होकर नाच रहे थे।
नाच और तेज हो गया जब सुबह अखबारों ने आठ कॉलम की हेडलाइन लगाई। हेडलाइन से पता चलता था कि जिस तरह से भावनगर वाले शेठ ब्रदर्स के कायम चूर्ण से एक साथ कब्ज, एसिडीटी और बदहजमी का नाश हो जाता है, उसी तरह मोदीजी ने एक नोटबंदी से कालाधन, आतंकवाद और फेक कैरेंसी का डिचक्यू-डिचक्यू कर दिया है।

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जनता जब नाचती-नाचती बैंक के बाहर पहुंची तो पता चला कि नोटबंदी महोत्सव को लेकर देश में जोश इतना है कि किसी भी बैंक में पांव रखने की जगह नहीं रही हैं। कुछ जगहों पर डंडे चले तो टांट सहलाती पब्लिक को पक्का यकीन हो गया कि कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुका है। लुटा-पिटा पति जब एटीएम से लौटा तो पत्नी से स्वागत इस तरह किया जैसे दांडी यात्रा के बाद नमक लेकर लौटा हो।
लग रहा था कि बैंक की लाइनों के धक्के से जोश फीका पड़ जाएगा लेकिन नाच रुकने के बदले और तेज हो गया क्योंकि कांटो से खींचके आंचल और तोड़के बंधन देश के तमाम एंकर और संपादकों ने पांवों में पायल बांध लिये थे। नेतागण बिन घुंघरू के नाच रहे थे।

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जनता को बताया गया कि चूरन वाला 2000 रुपये का नोट इसलिए अच्छा है, क्योंकि रंग छोड़ता है। फिर भी यह भी पता चला कि नैनो चिप वाला नोट `टार्जन द वंडर’ कार की तरह चमत्कारी है। पब्लिक का जोश देखकर प्रधानमंत्री तक चिंता में पड़ गये। उनकी प्यारी जनता इस तरह नाचेगी तो बीमार पड़ जाएगी।
इसलिए मोदीजी ने सोच-समझकर एक युक्ति निकाली। उन्होंने कहा नोटबंदी एक यज्ञ है। अभिप्राय यह था कि आपलोग बैठकर यज्ञ समिधा डालिये, नव दधीचि बनकर भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी अस्थियां दान कीजिये, उछलने-कूदने की क्या ज़रूरत है। इस अपील का असर यह हुआ कि रॉक एंड रोल कर रही जनता शास्त्रीय नृत्य करने लगी। हालांकि भक्त लोग अब भी बसंती बने हुए थे.. पांव हो जाये घायल तो क्या.. जब तक है, जान मैं नाचूंगी।

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उधर एटीएम में घायल हो रही जनता पटापट मरनी शुरू हुई। गयादीन ने दम तोड़ने से पहले अपने बेटे तो अपनी थाती यानी एटीएम कार्ड सौंपी और कहा- रोज इसी तरह आना, खाली हाथ वापस जाना लेकिन वोट मोदीजी को ही देना। बेटे ने कार्ड को माथे से लगाया और पितृ ऋण उतारने में जुट गया। राबुझावन हार्ट अटैक से मरे तो उनके बेटे भी यही किया। यानी अगले 12 दिन तक नियमित रूप से एटीएम जाता रहा। पिता के सत्कर्म थे कि उसे रोज चार-चार हज़ार रुपये मिले।
इस तरह उसने 48 हजार रुपये की अपार धनराशि से खूब धूमधाम से अपने पिता का श्राद्ध किया। तेरहवीं में आये कौव्वे ने मुंडेर पर मिठाई खाई और उड़कर सीधे कांग्रेसी होर्डिंग पर बैठ गया और प्रसन्ना से बीट किया। रामबुझावन के बेटे का संकल्प और दृढ़ हुआ, वह बोला– जिंदगी भर भीख मांग लूंगा मगर वोट मोदीजी को ही दूंगा।

लेकिन भीख मांगने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि सुधी संपादकों और ज्ञानी एंकरों ने बताया कि पैसा इतना आनेवाला है कि गरीब जनता दोनों हाथों लुटाएगी तब भी खत्म नहीं होगा। गिनती खूब जोर से होती रही। इस बीच प्रधानमंत्री के मागदर्शन से नेहरू के योजना आयोग को नीति आयोग मे बदलने वाले अरविंद पनगढ़िया अचानक अमेरिका भाग गये। सफाई दी कि अमेरिका में मेरे पास पक्की नौकरी है। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहमण्यम भी अमेरिका को प्राप्त हुए। उनका कहना था- दादा बनने वाला हूं, अब भारत में और नहीं रुक सकता हूं।
नोटबंदी एक यज्ञ था। इससे धन वर्षा हुई। वर्षा में बरसे धन को अपने-अपने पुष्पक विमानों में भरकर नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और नितिन संदेसारा जैसे अनेक पुण्यात्मा नाना देश को चले गये। दूरदर्शी वित्तमंत्री ने कहा भी गणना पूरी नहीं हुई है। एक बार गणना हो जाये तो बता देंगे कि नोटबंदी का उदेश्य क्या था। जो परिणाम आएगा, लक्ष्य भी वही रहेगा।

आरबीआई वाले गिनते-गिनते थक गये। एक दिन उन्होने कलेजे पर पत्थर रखकर देश को बता दिया कि नोटबंदी से बाबाजी का ठुल्लू प्राप्त हुआ है। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल भी भागने को हुए तो मोदी और जेटली ने उन्हें पकड़ लिया और थ्री इडियट्स का गाना इमोशनल शुरू हो गया—जाने तुझे देंगे नहीं।
अब खबर यह है कि मोदीजी आरबीआई के रिजर्व में से 3.36 लाख करोड़ रुपये मांग रहे हैं। एक और यज्ञ में समिधा डालनी है। जनता अब नाचना भूल चुकी थी। इसलिए मैने सरकार से आग्रह किया था कि नोटबंदी ना सही लेकिन दिनभर के लिए एटीएम एक बार फिर से बंद करवा दीजिये ताकि जनता को याद रहे की राष्ट्रहित में नाचना क्या होता है।

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)