‘सरकार और अदालत दोनों की इज्जत बची रहे और राम मंदिर भी बन जाए’

शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद अब न तो सरकार के भरोसे रहना चाहती है और न ही अदालत के। वे ‘अपुन भरोसे’ राम मंदिर खड़ा करना चाहते हैं।

New Delhi, Nov 25 : अयोध्या अब 26 साल बाद फिर खबरों में हैं। इस बार वहां दो लाख से भी ज्यादा भक्तों के इकट्ठे होने का अंदाजा है। उन्हें संभालने के लिए 70 हजार सिपाहियों को उप्र सरकार ने तैनात कर दिया है। इतना डर इसलिए पैदा हुआ है कि इस प्रदर्शन का आयोजन शिव सेना ने किया है। 1992 में जब मस्जिद गिरी थी, तब भी उप्र में कल्याणसिंह की भाजपा सरकार थी और आंध्र के समाजवादी नेता सत्यनारायण रेड्डी राज्यपाल थे।

Advertisement

6 दिसंबर 1992 को रविवार था। उस दिन दोनों ने मुझसे कई बार फोन पर बात की थी। अब भी भाजपा के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं और भाजपा के वरिष्ठ नेता राम नाइक राज्यपाल हैं। राम मंदिर के मुद्दे को शिवसेना भाजपा के हाथ से छीन लेना चाहती है। वह मोदी सरकार को कोस रही है कि राम मंदिर के सवाल पर वह चार साल से खर्राटे खींच रही है और सर्वोच्च न्यायालय भी उसे टाले जा रहा है।

Advertisement

शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद अब न तो सरकार के भरोसे रहना चाहती है और न ही अदालत के। वे ‘अपुन भरोसे’ राम मंदिर खड़ा करना चाहते हैं। यही भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। उसे मस्जिद वालों से जितनी बड़ी चुनौती है, उससे बड़ी चुनौती मंदिरवालों से है। यदि शिव सैनिकों ने मंदिर बनाना शुरु कर दिया तो सरकार उसे रोकेगी कैसे ? वह रोकेगी तो शिवसेना उसका भगवा रंग उतारकर उसे हरे रंग में पोत देंगी। यदि वह नहीं रोकेगी तो राम मदिर का ताज शिव सेना के मस्तक पर सुशोभित हो जाएगा। भाजपा हाथ मलती रह जाएगी और दांत पीसती रह जाएगी। 2019 का चुनाव जीतने का आखिरी पासा भी हाथ से फिसल जाएगा।

Advertisement

यदि सरकार मूक-दर्शक बनी रही तो उसका सरकार कहलाना ही खटाई में पड़ जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश यों तो कई बार ताक में रखे रहते हैं लेकिन इस मामले में उसकी इज्जत पैदें में बैठ जाएगी। मैं चाहता हूं कि सरकार और अदालत दोनों की इज्जत बची रहे और राम मंदिर भी बन जाए। इसका एक ही तरीका है। अदालत के तीन याचिकाकर्त्ताओं को एक जगह बिठाकर उन्हें मनाया जाए। वे मुकदमा वापस लें। 1993 में नरसिंहरावजी ने जो अध्यादेश जारी किया था, उसके मुताबिक 70 एकड़ जमीन में अत्यंत भव्य राम मंदिर बने और उसके साथ-साथ वहां दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों के पूजा-स्थल बनें। सर्वधर्म संग्रहालय, धर्मशाला, सभागार और अतिथि शाला भी बने। मस्जिद भी बने। मस्जिदवालों को इसमें क्या एतराज हो सकता है ? यह समाधान भारतीय समाधान है, हिंदू समाधान है। हमारे सर्वज्ञजी यह कर दें तो उनकी लुटिया तिर जाएगी।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)