विधानसभा चुनाव – ग्रामीण मतदाता और BJP की अंदरूनी नाराजगी चुनाव में भारी पड़ी

अपने दिग्गज मुख्यमंत्रियों की सरकार के पतन के बाद BJP को आत्ममंथन और चिंतन करने की जरूरत है। दो ‘क’ पर काम करने की जरूरत है। पहला ‘क’ है- कार्यकर्ता और दूसरा ‘क’ है किसान ।

New Delhi, Dec 12 : यह मानना पड़ेगा कि राहुल ग़ांधी की कांग्रेस ने अपनी ताकत बढ़ाई है। तभी उसके वोट बढ़े हैं। सीटें बढ़ी हैं। छग, राजस्थान और MP विधानसभा चुनाव में जीत, निराश, हताश और बिखरी-बिखरी सी नजर आनेवाली कांग्रेस के लिए, संजीवनी बूटी सा काम करेगी। आगे के चुनाव में इसका असर और ज्यादा दिख सकता है, अगर BJP ने अपनी रीति-नीति नहीं बदली तो।

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कांग्रेस मिजोरम में बुरी तरह हारी। लेकिन इसकी भरपाई उसने छग में BJP को बुरी तरह हराकर कर ली। राजस्थान और MP की जीत उसके लिए बोनस की तरह है। लेकिन सीटों का कम अंतर इस बात का संकेत है कि MP और राजस्थान में कांग्रेस की जीत उसकी जीत से ज्यादा BJP के प्रबंधन की हार है। यह मानने का कोई कारण नहीं कि सरकार के काम से वोटर नाराज थे। अगर सरकार के प्रति लोगों में नाराजगी होती तो कांग्रेस की जीत इन दो राज्यों में भी छग की तरह होती। BJP की सीटें और घटती तथा कांग्रेस की और बढ़ती। जो जानकारियां मिल रही हैं उसके मुताबिक ग्रामीण मतदाताओं और BJP की अंदरूनी नाराजगी चुनाव में उसपर भारी पड़ीं।

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जनता की उम्मीदें पूरी करने में पार्टी कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को भूल गई। ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच सका। साकार किसानों की समस्याओं को प्रभावी तरीके से हल नहीं कर पायी। जिसके चलते ग्रामीण इलाकों में BJP को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। MP में साधु-संतों की एक जमात भी शिवराज से नाराज थी। नाराजगी दूर करने के लिए 5 संतों को मंत्री भी बनाया गया, लेकिन वह काम नहीं आया। कई विधायकों के टिकट बिना किसी ठोस आधार के काटे गए। शिवराज सिंह जैसे सर्वप्रिय नेता की लोकप्रियता भी पार्टी को चौथी बार जीत नहीं दिला सकी।

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लोकप्रियता के मामले में रमन सिंह भी कमजोर नहीं थे। लेकिन लगता है कि जनता की नब्ज वे पकड़ नहीं पाए। उल्टा राजस्थान की CM वसुंधरा राजे सिंधिया, जो अपने अहंकार के चलते जानी जाती थी, और हर चुनाव में वहाँ सरकार की अदला-बदली होती है, इसके बावजूद वहां BJP दमखम के साथ खड़ी रही। यह हैरान करने वाला है। हालांकि वहां 10 मंत्री भी चुनाव हार गये हैं। यह सरकार के कामकाज पर बड़ा सवाल है।
इसके उलट कांग्रेस ने गुटबाजी से ऊपर उठकर पूरा जोर लगाया। यह सब राहुल गांधी के कारण हुआ। नतीजा सामने हैं।

मिजोरम में कांग्रेस की हार से पूरा नार्थ ईस्ट कांग्रेस मुक्त हो गया, लेकिन हिंदी पट्टी में उसकी वापसी हो गई।
अपने दिग्गज मुख्यमंत्रियों की सरकार के पतन के बाद BJP को आत्ममंथन और चिंतन करने की जरूरत है। दो ‘क’ पर काम करने की जरूरत है। पहला ‘क’ है- कार्यकर्ता और दूसरा ‘क’ है किसान । क्या BJP नेतृत्व इसके लिए तैयार है ?
BJP के एक वर्ग में यह भी चर्चा है कि यह तो होना ही था ! इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। पता नहीं यह कितना सच है ?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)