खेती हो ऐसी जो लाए खुशहाली
देश के जिन इलाकों में टमाटर या ऐसी फसल की अफरात के कारण किसान हताश है जो कि जल्द इस्तेमाल न होने पर खराब हो सकती है।
New Delhi, Dec 22 : उत्तर प्रदेश के आलू उत्पादक जिलों के कोल्ड स्टोरेज में पिछले साल का माल भरा है और नई फसल आने के बाद मंडी में इतने दाम गिर गए कि एक साल से सहेज कर रखे गए आलू को सड़क पर फेकना पड़ा है। मध्य प्रदेश के नीमच में यही हाल प्याज का हो रहा है। मंडी में कई ढेरी की तो नीलामी तक नहीं हो पा रही है। मंडी में माल खरीदी के इंतजार के लिए शहर में ठहरना किसान को महंगा पड़ रहा है, लिहाजा वह अपनी उपज को छोड़ कर चले जाते हैं। रतलाम जिले की सैलाना मंडी में प्याज, लहसुन और मटर की इतनी आवक हुई कि न तो खरीदार मिल रहे और न ही मंडी में माल रखने की जगह। राजस्थान के झालावाड़ में लहसुन का उत्पादन कोई 27 हजार एकड़ में होता है। वहां फसल तो बहुत बढ़िया हुई, लेकिन माल को इतने कम दाम पर खरीदा जा रहा है कि लहसुन की झार से ज्यादा आंसू उसके दाम सुन कर आ रहे हैं। मुल्ताई में कोई 6,400 एकड़ में किसानों ने पत्ता गोभी लगाई और उसकी शानदार फसल भी हुई, लेकिन बाजार में उसका खरीदार 40 से 50 पैसे प्रति किलो से अधिक देने को राजी नहीं।
समय की मांग है कि प्रत्येक जिले में फल-सब्जी उगाने वाले किसानों को उत्पाद को सीमित कोटा दिया जाए। मध्य प्रदेश के मालवा अंचल के जिन इलाकों में लोग लहसुन व अन्य उत्पाद के माकूल दाम न मिलने से हताश हैं वहीं रतलाम जिले में किसान विदेशी अमरूद की ऐसी फसल उगा रहे हैं जो कम समय में पैदा होती है, एक महीने तक पका अमरूद खराब नहीं होता और फल का आकार भी बड़ा होता है। यहां कुछ किसान अंगूर उगा रहे हैं। जाहिर है स्थानीय बाजार के अनुरूप सीमित उत्पाद उगाने से किसान को पर्याप्त मुनाफा मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में ही कुल उपलब्ध कोल्ड स्टोरेज की क्षमता, उसमें पहले से रखे माल, नए आलू के खराब होने की अवधि और बाजार की मांग का आकलन यदि सटीक तौर पर किया जाए तो आलू की फसल को ही लाभ में बदला जा सकता है। जो किसान आलू से वंचित किया जाए उसे मटर, धनिया, गोभी, विदेशी गाजर, शलजम, चुकंदर जैसी अन्य ‘नगदी फसल’ के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
देश के जिन इलाकों में टमाटर या ऐसी फसल की अफरात के कारण किसान हताश है जो कि जल्द इस्तेमाल न होने पर खराब हो सकती है, उसके रकबे को मांग- सप्लाई के अनुसार सीमित किया जाना चाहिए। यदि हर जिले में मंडी में शीत-गृह वाले ट्रक हों तो ऐसे माल को कुछ ज्यादा दिन सुरक्षित कर बाहर भेजा जा सकता है। सबसे बड़ी बात, इन सभी सब्जियों के न्यूनतम खरीदी मूल्य घोषित किए जाएं और इससे कम की खरीद को दंडनीय अपराध बनाया जाए। साथ ही किसान के मंडी पहुंचने के 24 घंटे के भीतर माल खरीदना सुनिश्चित करना भी उनके लिए लाभदायक होगा। चूंकि अब मोबाइल पर इंटरनेट की पहुंच गांव तक है, सो सब्जी-फल उगाने वाले का रिकार्ड रखना, उन्हें मंडी के ताजा दाम बताना और ऑनलाइन खरीद का दाम व समय तय करना कठिन काम नहीं है।
(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)