द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर – अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहिष्णुता की परीक्षा अभी शेष है

अगर कांग्रेस की सरकार होती तो सलमान रश्दी की किताब या एम ओ मथाई की किताब की तरह संजय बारू की यह किताब द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर भी बैन का शिकार बन चुकी होती ।

New Delhi, Dec 29 : अदभुत अभिनेता हैं अनुपम खेर । द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म के प्रोमो में उन का अभिनय देख कर बेन किंग्सले की याद आ गई जिन्हों ने रिचर्ड एटनबरो की गांधी में गांधी की भूमिका की थी । जैसे बेन किंग्सले ने गांधी को अपने अभिनय के शीशे में उतार लिया था , ठीक वैसे ही अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह को अपने अभिनय के शीशे में उतार लिया है ।

Advertisement

कम से कम बाडी लैंग्वेज और संवाद अदायगी तो गज़ब है । फ़िल्म पर राजनीतिक विवाद अपनी जगह है , लेकिन प्रोमो तो अदभुत है । इस फ़िल्म के साथ ही कांग्रेस और उन के चट्टे-बट्टों की अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहिष्णुता की परीक्षा अभी शेष है । फिर भी आंधी , किस्सा कुर्सी का जैसी फिल्मों की भी याद आ गई है जो कांग्रेस की भृकुटि का शिकार हुई थीं ।

Advertisement

तय मानिए कि अगर कांग्रेस की सरकार होती तो सलमान रश्दी की किताब या एम ओ मथाई की किताब की तरह संजय बारू की यह किताब द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर भी बैन का शिकार बन चुकी होती । इस फ़िल्म की तो खैर कोई सोच भी नहीं पाता । फ़िलहाल अनुपम खेर के लाजवाब अभिनय की जय हो ! मनमोहन सिंह को कैसा तो जिया है उन्होंने । इस फ़िल्म के रिलीज की बेकरारी से प्रतीक्षा है । वैसे भी इधर कोई फ़िल्म देखे ज़माना हो गया है ।

Advertisement

अनुपम खेर ने एक इंटरव्यू में कहा है कि जब आप द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फ़िल्म देखेंगे तो मनमोहन सिंह से प्यार हो जाएगा । मनमोहन सिंह खुद इस फ़िल्म पर किसी टिप्पणी से कतरा गए कल । मतलब उन को भी ऐतराज नहीं है इस फिल्म पर । तो फिर कांग्रेस और कांग्रेस प्रेमी इतना बिदके और भड़के हुए क्यों हैं भला । कोई बताए भी । कि बदजुबानी और कुतर्क पर उतर आए हैं ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)