‘मेरा क्या और मुझे क्या’ संस्कृति को कितना तोड़ पाए पीएम मोदी

2019 के लोक सभा चुनाव में जनता यह पूछेगी कि मोदी जी, आप सरकारी भ्रष्टाचार पर काबू क्यों नहीं कर पाए ? कर पाए तो कितना ? फिर आपका क्या जवाब होगा ?

New Delhi, Jan 06 : 15 अगस्त 2014 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘मेरा क्या और मुझे क्या’ की संस्कृति से हमें ऊपर उठना पड़ेगा। उनका इशारा सरकारी हुक्मरानों की ओर था। लाल किले से अपने प्रथम संबोधन में मोदी ने कहा था कि ‘दुर्भाग्यवश ऐसा वातावरण बन गया है कि अगर कोई किसी के पास किसी काम से जाता है तो वह कहने लगता है कि इसमें ‘मेरा क्या ?’ @यानी इसमें मुझे कितना मिलेगा ?@ पर जब पता चलता है कि उसे कुछ नहीं मिलेगा तो कहता है कि फिर ‘मुझे क्या ?’ यानी मैं यह काम नहीं करूंगा।

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अब प्रधान मंत्री चुनाव में जा रहे हैं। उन्हें देश को बताना चाहिए कि इस वातावरण को वे कितना बदल सके ? यदि नहीं तो बदलने में उनकी क्या कठिनाइयां रहीं ? मोटामोटी केंद्रीय मंत्रिमंडल को छोड़ दें तो जानकार लोग बताते हैं कि सरकारी अफसरों ने उस वातावरण को बनाए ही रखा है।

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एक बार एक मुख्य मंत्री ने मुझे बताया था कि अधिकतर आई.ए.एस.अफसर भ्रष्टाचार को कम नहीं होने देते। क्या नरेंद्र मोदी का भी अनुभव यही रहा ? या राजनीतिक कार्यपालिका ने भ्रष्टाचार को जारी रखने का काम किया ?

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बिहार के पूर्व मुख्य सचिव पी.एस. अप्पू ने लिखा था कि आई.ए.एस. अफसरों को संविधान ने इतना अधिक पावर दे रखा है कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। मोदी सरकार ने भी एक संशोधन करके यह कानूनी प्रावधान कर दिया है कि निर्दोष मन से किए गए गलत निणयों पर भी कोई कार्रवाई नहीं होगी। 2019 के लोक सभा चुनाव में जनता यह पूछेगी कि मोदी जी, आप सरकारी भ्रष्टाचार पर काबू क्यों नहीं कर पाए ? कर पाए तो कितना ? फिर आपका क्या जवाब होगा ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)