आरक्षण: अंधे से काणा भला

आर्थिक आरक्षण जाति, संप्रदाय और मजहब की सीमाओं से भी ऊपर उठ गया है। अब विरोधी दलों को बड़ी पीड़ा हो रही है। वे कह रहे हैं कि मोदी ने यह चुनावी दांव मारा है।

New Delhi, Jan 09 : केंद्र सरकार की इस घोषणा का कोई भी विरोध नहीं कर सकता कि देश के सवर्णों में जो भी आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, उन्हें भी अब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इस नए आरक्षण ने अनुसूचित जाति, जन-जाति और पिछड़े वर्ग की सीमा को लांघ दिया है। इसने एक सीमा को और भी लांघा है। यह सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं है। यह भारत के उस हर नागरिक के लिए हैं, जिसकी आय 8 लाख रु. सालाना से कम है या जिसके पास पांच एकड़ से कम जमीन है।

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ाने वह कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई यहूदी, कोई बहाई भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में यह आर्थिक आरक्षण जाति, संप्रदाय और मजहब की सीमाओं से भी ऊपर उठ गया है। अब विरोधी दलों को बड़ी पीड़ा हो रही है। वे कह रहे हैं कि मोदी ने यह चुनावी दांव मारा है। अगले तीन-चार माह में यह घोषणा कानून कैसे बन पाएगी ? पहले तो संसद के दोनों सदन इसे 2/3 बहुमत से पास करें, फिर आधी से ज्यादा विधानसभाएं पास करें, तभी यह कानून बन सकती है। याने यह सिर्फ चुनावी जुमला है। यदि यह कानून बन भी जाए तो इस संवैधानिक संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक घोषित कर देगा, क्योंकि कई उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय (1992) का फैसला है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उनकी राय में संविधान सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ों को आरक्षण देता है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़ों को नहीं। लेकिन यह आर्थिक आरक्षण पहले से दिए जा रहे 50 प्रतिशत आरक्षण में सेंध नहीं लगाएगा। अब आरक्षण 50 प्रतिशत की जगह 60 प्रतिशत होगा। ये बात दूसरी है कि नौकरियां घट रही हैं और आरक्षण बढ़ रहा है।

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विरोधियों का यह तर्क बिल्कुल सही है कि यह मोदी का चुनावी पैंतरा है। वह चुनावी पैंतरा है तो, है। इसमें बुराई क्या है ? क्या आप भी चुनावी पैंतरे नहीं मार रहे हैं ? मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं, जनेऊ धारण कर रहे हैं, अर्धनग्न होकर पूजा की थाली फिरा रहे हैं, किसानों के कर्जे माफ कर रहे हैं ? अगर किसी भी पैंतरे से लोगों का भला हो रहा है तो उस पैंतरे का स्वागत है। नरसिंहराव सरकार ने भी इस 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण की घोषणा की थी। कांग्रेस के घोषणा-पत्र में भी यह था। मायावती, वसुंधरा राजे और केरल की सरकारों ने भी ऊंची जातियों के गरीब लोगों को आरक्षण देने की मांग की थी।

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लेकिन असली सवाल यह है कि गरीब कौन है ? मोदी के मुताबिक वह है, जो 8 लाख रु. सलाना कमाता है या जो 65 हजार रु. महिने कमाता है। इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है ? ऐसे लोगों के बच्चों को शिक्षा और नौकरियों में आप आरक्षण देंगे तो देश के करोड़ों गरीब ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, मराठा, जाट, गुर्जर, कापू आदि लोग क्या करेंगे ? मैं तो नौकरियों में किसी भी प्रकार के आरक्षण का घोर विरोधी हूं। नौकरियां शुद्ध योग्यता के आधार पर दी जानी चाहिए। आरक्षण सिर्फ सभी सरकारी और गैर-सरकारी शिक्षा-संस्थाओं में दिया जाना चाहिए और प्रत्येक गरीब के बच्चे को दिया जाना चाहिए। किसी भी जाति और संप्रदाय के किसी भी ‘मलाईदार परत’ वाले वर्ग के व्यक्ति को कोई भी आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। फिर भी जाति के आधार पर अंधा आरक्षण देने की बजाय यह (आर्थिक आधारवाला) काणा आरक्षण बेहतर है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)