सिर्फ महाकुंभ ही नहीं लगता, बल्कि सब तीर्थों का राजा है “प्रयागराज”

ब्रह्म पुराण के अनुसार प्रयाग तीर्थ में प्रकृष्ट यज्ञ हुए हैं इसलिए इसे प्रयाग कहा जाता है। प्रयाग नाम पड़ने को लेकर कुछ और भी अवधारणाएं हैं।

New Delhi, Feb 11 : यह प्रश्न कभी न कभी उठता ही है कि सबसे बड़ा कौन ? देवताओं तक में उठा कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश में सबसे बड़ा कौन ? पर्वतों में पर्वताधिराज कौन? नदियों में सबसे श्रेष्ठ कौन? इसी तरह से तीर्थों में भी यह प्रश्न उठता है कि तीर्थराज कौन? कोई हरिद्वार को सर्वश्रेष्ठ मानता है तो कोई बद्री-केदार को। कोई तिरुपति बाला जी को मानता है तो कोई द्वारका को। कोई प्रयागराज (इलाहाबाद) को मानता है तो कोई वाराणसी को। इलाहाबाद और वाराणसी के करीब रहने वालों के मन में ये दुविधा कुछ ज्यादा ही रहती है। जिनका घर वाराणसी में या उसके पास है वाराणसी को बड़ा मानते हैं और वहीं गंगा स्नान करते हैं, जबकि इलाहाबाद के पास वाले प्रयागराज को बड़ा मानते हैं और संगम में स्नान करते हैं। इलाहाबाद वालों का तर्क होता है कि यहां देश की दो सबसे बड़ी नदियां गंगा और यमुना के साथ ही अदृश्य नदी सरस्वती का संगम है, इसलिए इस स्थान और इस नगर का महत्व बाकी स्थानों से ज्यादा है। जबकि वाराणसी के लोगों का कहना होता है कि गंगा संगम का पानी लेकर ही वाराणसी पहुंचती हैं। फिर यह नगरी तो शिव की नगरी है। क्योंकि यह शिव के त्रिशूल पर बसी है। इसका महाप्रलय में भी नाश नहीं होता। इस पर इलाहाबाद के लोग भी तर्क दे डालते हैं कि यहां भी अक्षय बट है। इसका भी महाप्रलय में कुछ नहीं बिगड़ता।

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बात चूंकि धार्मिक तौर पर महत्ता की है, इसलिए इसे धार्मिक तौर पर ही देखते हैं कि तीर्थों में सबसे बड़ा कौन है। लोगों के दिमाग में एक गलतफहमी तो यही है कि इलाहाबाद में तीन नदियों का संगम है इसलिए यह सबसे बड़ी और पवित्र नगरी है। ऐसे लोग जब बद्रीनाथ की यात्रा करते हैं तो उनकी गलतफहमी और बढ़ जाती है। हरिद्वार-रिषिकेश से आगे बद्रीनाथ के रास्ते में उन्हें पांच प्रयाग मिलते हैं। इन पांचों प्रयागों में दो-दो नदियां एक दूसरे से मिलती हैं। उनके दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि नदियों के संगम को ही प्रयाग कहते हैं। जैसे देव प्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा मिलती है तो इसे देव प्रयाग कहा गया। जहां मंदाकिनी और अलकनंदा मिलती हैं, उस जगह को रुद्र प्रयाग कहा गया। इसीलिए इलाहाबाद को प्रयाग कहा जाता है क्योंकि यहां भी नदियां मिलती हैं। चूंकि यहां तीन नदियां मिलती हैं और उनमें भी दो देश की सबसे बड़ी और पवित्र नदियां हैं, इसलिए उसे प्रयागराज कहा जाता है। पर यह बात सच नहीं है। नदियों के संगम को प्रयाग नहीं कहा जाता। ऐसी बहुत सी दो नदियां मिलती हैं, लेकिन उन जगहों को प्रयाग नहीं कहा जाता। इसी तरह ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ इलाहाबाद में ही तीन नदियां मिलती हैं, इसलिए इसे प्रयागराज की उपाधि दे दी गई। अपने देश में ही कई ऐसी जगहें हैं, जहां तीन नदियां मिलती हैं। पर उन जगहों को प्रयागराज नहीं कहा जाता। दक्षिणी भारत के कर्नाटक राज्य के कोडागु जिले में भागमंडल तीर्थ स्थान है। यह कावेरी नदी के ऊपर की ओर फैले हुए हिस्सों में स्थित है। इस स्थान पर, कावेरी दो सहायक नदियों, कन्निक और पौराणिक सुज्योति नदी के साथ मिलती है। दक्षिणी भारत के ही ईरोड में कावेरी, भवानी और अमुदा का त्रिवेणी संगम है। इन तीनों में से, अमुद नदी भी अदृश्य है, सरस्वती की ही तरह। पर इन दोनों संगमों को भी प्रयागराज का दर्जा नहीं हासिल है। केरल में कालीयार (काली नदी), थोडुपोज़यार (थोडुपोज़ा नदी) और कोठयार (कोठामंगल नदी) मिलकर मूवट्टुपुझा नदी बनाती हैं और इसलिए इस स्थान को मोवाट्टुपुझा कहा जाता है। इसी तरह मुन्नार शहर में मुधिरपुर, नल्लथन और कुंडली नदियों का संगम होता है। मलयालम और तमिल में मन्नार नाम का शाब्दिक अर्थ ही है “तीन नदियों” का संगम। इंद्रकुंड नासिक में भी दो पौराणिक नदियां अरुणा और वरुण गोदावरी से मिलकर एक त्रिवेणी संगम बनाती हैं।
तो नदियों के मिलने को संगम जरूर कहते हैं पर प्रयाग नहीं। प्रयाग ‘प्रा’ और ‘याग’ शब्दों को मिला कर बनाया गया है। जानकार बताते हैं कि यहां ‘प्रा’ का अर्थ प्रकृष्ट होता है यानी बहुत तेजी के साथ बढ़ने वाला और याग का आशय यज्ञ से है। ऐसा स्थान जहां पर तेजी के साथ यज्ञ बढ़ता है, उसे प्रयाग कहते हैं।

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ब्रह्म पुराण के अनुसार प्रयाग तीर्थ में प्रकृष्ट यज्ञ हुए हैं इसलिए इसे प्रयाग कहा जाता है। प्रयाग नाम पड़ने को लेकर कुछ और भी अवधारणाएं हैं। जैसे-चारों बेदों की स्थापना के बाद ब्रह्मा ने यहीं पर सबसे पहला यज्ञ किया। इसलिए इसका नाम प्रयाग पड़ा। यहां प्रयाग का मतलब प्रथम यज्ञ से है। प्र मतलब पहला और याग माने यज्ञ। ऐसा भी माना जाता है कि कि ब्रम्हदेव ने ब्रह्माण्ड के निर्माण से पूर्व पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए यज्ञ यहीं किया इसीलिए इसका नाम प्रयाग पड़ा । यहां प्रयाग का अर्थ ‘शुद्धिकरण का स्थान ‘ बताया गया है। प्रयाग का एक अर्थ है, यज्ञ के लिए सर्वश्रेष्ट स्थान। प्रयाग का एक दूसरा अर्थ है-वह स्थान जहां बहुत से यज्ञ हुए हों। यह भी कहा जाता है कि जब ब्रह्मा ने सष्टि का निर्माण करने की सोची तो सबसे पहले यहीं यज्ञ किया था।

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धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि सब तीर्थों ने मिलकर ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि हे प्रभो! हम सब तीर्थो में जो सबसे श्रेष्ठ हो, उसे आप सबका राजा बना दें जिसकी आज्ञा में हम सब रहें।तब ब्रह्मा जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से अन्य तीर्थों के साथ प्रयागराज तीर्थ की तुलना की और उसका महत्त्व आंका जिसमें उन्होंने यह पाया कि अन्य तीर्थों के मुकाबले प्रयागराज तीर्थ अधिक भारी है। तब ब्रहृमा जी ने प्रयाग को ही सब तीर्थो का राजा बना दिया। उसी दिन से सब तीर्थ इनके अधीन रहने लगे और ये तीर्थराज प्रयाग कहलाये।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देश में कुल 14 प्रयाग हैं। इनमें इलाहाबाद को छोड़कर बाकी पांच प्रयाग उत्तराखण्ड में हैं और यही प्रमुख प्रयाग माने जाते हैं। वैसे अगर आकार के अनुसार देखें तो भी प्रयाग (इलाहाबाद) ही सबसे बड़ा है। उत्तराखंड स्थित पंच प्रयागों में नदियों के संगम पर बहुत थोड़ी जगह है, जबकि इलाहाबाद में संगम पर इतना बड़ा क्षेत्र है कि महाकुंभ का मेला लग जाता है। हर साल माघ मास में भी बहुत बड़ा मेला लगता है। इतना बड़ा संगम क्षेत्र हिंदुस्तान में तो कहीं और नहीं ही है। इसलिए भी इसे प्रयागराज की उपाधि दी जा सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)