पश्चिम बंगाल में बढ रही है बीजेपी की धमक, रणनीति बदलने को मजबूर हुई ममता बनर्जी

ममता बनर्जी को इस बात का एहसास है कि वाम दलों के सफाये से उन्होने कार्यकर्ताओं को बीजेपी के पाले में धकेल दिया है।

New Delhi, Mar 31 : तृणमूल मुखिया और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने सालों तक कम्युनिस्टों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है, आखिरकार साल 2011 में उन्होने वाम मोर्चा की सरकार को उखाड़ फेंका, दरअसल ममता बनर्जी ने साल 1998 में कांग्रेस छोड़ दिया था, क्योंकि उनका मानना था कि कांग्रेस वामपंथियों से लड़ने के लिये गंभीर नहीं है, अब बंगाल में कांग्रेस की स्थिति एक मामूली राजनीतिक पार्टी की रह गई है, कहा जा रहा है कि इस बार की लड़ाई तृणमूल और बीजेपी के बीच होगी।

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बीजेपी बन गई है चिंता
आज की तारीख में ममता बनर्जी के लिये सबसे बड़ी चिंता का विषय बीजेपी है, जो प्रदेश में तेजी से अपनी जड़े मजबूत कर रही है, ये इसलिये भी कहा जा रहा है, क्योंकि सीएम ने वाम दलों और कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी बंद कर बीजेपी से लड़ने में अपनी ऊर्जा केन्द्रित कर रही है, इसका एजेंडा पश्चिम बंगाल खासकर बांग्लादेश की सीमा से लगे इलाकों में खूब गूंज रहा है।

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टीएमसी विरोधी वोटों का विभाजन
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता ने रणनीति के तहत कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया है, टीएमसी ने अप्रत्यक्ष रुप से कम्युनिस्टों और कांग्रेस को आगे बढा रही है, ताकि टीएमसी विरोधी वोट बीजेपी के पास ना जाकर कांग्रेस और वाम दल के पास जाए, ताकि उनका ज्यादा नुकसान ना हो, क्योंकि अगर विपक्ष विफल रहा, तो बीजेपी वहां आसानी से अपनी जगह बना लेगी।

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तेजी से बढ रही बीजेपी
ममता बनर्जी को इस बात का एहसास है कि वाम दलों के सफाये से उन्होने कार्यकर्ताओं को बीजेपी के पाले में धकेल दिया है, जो प्रदेश में कमल की जड़े बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, प्रदेश में वामपंथियों का असर जिस तरह से घट रहा है, उतनी ही तेजी से बीजेपी बढ रही है। साल 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी 17 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही, जबकि लेफ्ट 43 से घटकर 29 पर पहुंच गयी, यही गिरावट उपचुनावों में भी दिखा।

बीजेपी को बढावा
वाम मोर्चे के वोट प्रतिशत में गिरावट बीजेपी को और बढावा देगी, अब टीएमसी के लिये चुनौती वाम दल नहीं बल्कि बीजेपी है, टीएमसी ये भी सुनिश्चित करने में लगी है कि कांग्रेस और वाम दलों के मत प्रतिशत 25 से नीचे ना जाए, हालांकि प्रदेश स्तर पर लड़ाई जारी रहेगी, अब ये तो समय ही बताएगा, कि टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी अपने किले की रक्षा करने में कितना सफल होती है।