अफसोस नहीं कि हमने महमूद गजनवी, तैमूर लंग और ईस्ट इंडिया कंपनी की लूट को नहीं देखा!

साठ के दशक में अमरीकी प्रोफेसर पाॅल आर.ब्रास ने उत्तर प्रदेश में सरकार के काम काज के गहन अध्ययन के बाद लिखा कि सत्ताधारियों ने अपने स्वार्थवश भ्रष्टाचार को ऊपर से नीचे की ओर फैलाया।

New Delhi, Apr 09 : तुर्क हमलावर महमूद गजनवी ने ग्यारहवीं सदी में कुछ साल के भीतर भारत को 17 बार लूटा था। इस देश में ताजा आयकर छापामारियों की खबरें पढ़कर यह लगता है कि आज के भारत को अनेक स्थानीय महमूद -तैमूर एक ही समय में एक साथ मिल कर विभिन्न राज्यों में भारी लूट कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि जो पकड़े जा रहे हैं, सिर्फ वही लुटेरे हैं।यह लूट तो लगभग सर्वदलीय व सर्वजातीय है। नेता यदि किसी राज्य में सत्ता में हैं तो उनकी स्थानीय पुलिस, केंद्रीय जांच एजेंसी से ‘युद्ध’ भी कर रही हैं।

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तैमूर लंग और ईस्ट इंडिया कंपनी आदि के निर्मम लुटेरों की भी कहानियां पढ़ी हैं। शुक सागर में भी लिखा है कि कलियुग में राजा ही अपनी प्रजा को लूटेगा। अभी -अभी मध्य प्रदेश में आयकर छापों से संबंधित दो खबरें मैंने पोस्ट की हैं।ये खबरें अकेली नहीं हैं।न पहली बार आई हैं।न ही ऐसा जघन्य काम सिर्फ एक दल के लोग कर रहे हैं। ऐसी खबरें आए दिन छपती रहती हैं।कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल में छापेमारी की कोशिश हुई तो वहां की मुख्य मंत्री केंद्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ धरने पर बैठ गईं।  मध्य प्रदेश की पुलिस बनाम सी.आर.पीएफ.जंग हुई। ऐसा ही कुछ कर्नाटका में भी हुआ। अभी तो गैर भाजपा दलों के नेताओं और उनके लगुए-भगुए के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां कार्रवाई कर रही है।

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मन मोहन राज में भाजपा से जुड़े रेड्डी बंधुओं पर ऐसी ही कार्रवाई हो रही थी। कोई हर्ज नहीं।यदि बारी-बारी से ही कार्रवाई होनी है तो वही सही। पर हो तो। इन ताजा छापामारियों की खबरें पढ़कर आम लोगों को महमूद गजनवी, तैमूर लंग, ईस्ट इंडिया कंपनी तथा उस तरह के अन्य विदेशी लुटेरों की कहानियां याद आएंगी या नहीं ? वे लोग तो भारत को सोने की चिडि़या जान कर लूटने आए थे। पर,आजादी के बाद जब एक बार फिर इसे सोने की चिडि़या बनाने की बारी आई तो हमारे ही हुक्मरानों ने इस देश की सार्वजनिक संपत्ति के साथ क्या -क्या करना शुरू कर दिया था।

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उसका एक नमूना खुद कांग्रेस अध्यक्ष के शब्दों में –‘ सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी. संजीवैया को इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा कि ‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।’@ 1963 के एक करोड़ की कीमत आज कितनी होगी ?@ गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘झोपडि़यों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’1971 के बाद तो लूट की गति तेज हो गयी।अपवादों को छोड़कर सरकारों में भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया। 1985 में राजीव गांधी ने कहा कि 100 सरकारी पैसों में से दलाल-बिचैलिए 85 पैसे लूट ले जाते हैं। पंद्रह पैसे ही लोगों तक पहुंच पाते हैं।

साठ के दशक में अमरीकी प्रोफेसर पाॅल आर.ब्रास ने उत्तर प्रदेश में सरकार के काम काज के गहन अध्ययन के बाद लिखा कि सत्ताधारियों ने अपने स्वार्थवश भ्रष्टाचार को ऊपर से नीचे की ओर फैलाया। अब तो हाल यह है कि भ्रष्टाचार अब भीषण लूट में बदल चुका है। सर्वव्यापी, सर्वजातीय और सर्वदलीय हो चुका है। कई सांसद घूस मांगते स्टिंग आपरेशन में पकड़े जा रहे हैं। कई धनपशु करोड़ों -अरबों खर्च कर संसद में पहुंच जा रहे हैं। हवाला रिश्वत घोटाले में प्रधान मंत्री ,मुख्य मंत्री ,केंद्रीय मंत्री स्तर के नेताओं के नाम आते हैं। मुख्य मंत्री जेल जा रहे हैं। आजादी की लड़ाई के दिनों इसकी कल्पना तक नहीं थी। कुछ अन्य जेल के रास्ते में हैं।फिर भी लालच जारी है।उन्हें जातीय-साम्प्रदायिक वोट बैंक व अपार धन,गंुडों का सहारा है।देश में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को लचर बना कर रखा गया है। कम्युनिस्ट सहित कोई भी पार्टी आज अपने सारे चंदे का हिसाब देने को तैयार नहीं है। कुछ का ही हिसाब देते हैं।घोटाले – महा घोटाले एक तरफ होते जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनमें से कई दबाए भी जाते रहे हैं।बोफर्स,जैन हवाला,सहारा डायरी,बिड़ला डायरी और टू जी घोटाले आदि इसके सबूत हैं।जिस देश के 20 करोड़ गरीब लोग रोज एक शाम भूखे रहने को अभिशप्त हैं,उस देश के अनेक नेतागण करोड़ों में चुनावी टिकट बेच -खरीद रहे हैं। अरबों रुपए चुनावों में खर्च हो रहे हैं। अधिक चुनाव यानी अधिक चंदे ! और अधिक लूट! इसीलिए लोक सभा -विधान सभा चुनाव एक साथ करवाने को अधिकतर नेता राजी नहीं हो रहे हंै। चुनाव के दिनों अधिकतर नेता इतनी बड़ी संख्या में हेलीकाॅप्टर उडा़ते हैं जिन्हें देख कर लगता ही नहीं कि वे एक ऐसे गरीब देश के नेता हैं जिस देश के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में रूई और डेटाॅल तक के लिए पैसे नहीं हैं।यह सब कब तक चलेगा ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)