बेगूसराय में बीजेपी को जिताने और विपक्ष को हराने के लिए चुनाव लड़ रही है सीपीआई?

बेगूसराय या बिहार ही नहीं, पूरे देश के बहुतायत मुसलमान अपनी-अपनी सीट पर उसी पार्टी या उम्मीदवार को वोट देंगे, जो भाजपा को हरा सके।

New Delhi, Apr 11 : अनेक लोग अलग-अलग प्रकार से संपर्क करके कह रहे हैं कि आपने ऐसा क्यों लिख दिया कि बेगूसराय में बीजेपी को जिताने और विपक्ष को हराने के लिए चुनाव लड़ रही है सीपीआई? हालांकि जिस लेख के हवाले से यह सवाल पूछा जा रहा है, उस लेख में मैंने इसके बारे में विस्तार से लिखा है, फिर भी संक्षेप में यहां दोबारा बता देता हूं कि ऐसा क्यों लिखा।

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सवाल है कि क्या बेगूसराय के बहुुतायत भूमिहार सीपीआई उम्मीदवार को अपनी जाति का समझकर वोट दे देंगे?जवाब है- नहीं। वजह- आज की तारीख में कोई भूमिहार सिर्फ़ भूमिहार नहीं है कि अपनी जाति के किसी भी व्यक्ति को वोट दे देगा। वह या तो मोदी-समर्थक है या मोदी-विरोधी है। अब मोदी समर्थक भूमिहार सीपीआई उम्मीदवार को भला क्यों वोट देंगे, जबकि टीम-मोदी ने भी भूमिहार प्रत्याशी ही पेश किया है? दुनिया जानती है कि न सिर्फ़ बेगूसराय, बल्कि समूचे बिहार में भूमिहार सहित तमाम सवर्ण जातियों का बहुमत फिलहाल भाजपा और एनडीए के साथ है।

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फिर सवाल उठता है कि क्या बेगूसराय के बहुतायत मुसलमान सीपीआई उम्मीदवार को वोट दे देंगे?जवाब है- नहीं।वजह- बेगूसराय या बिहार ही नहीं, पूरे देश के बहुतायत मुसलमान अपनी-अपनी सीट पर उसी पार्टी या उम्मीदवार को वोट देंगे, जो भाजपा को हरा सके। और बेगूसराय में सारे राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि यह क्षमता केवल और केवल राजद उम्मीदवार तनवीर हसन में ही है, जो पिछले चुनाव में बेहद कम मतों से भाजपा से हार गए थे। ऊपर से तनवीर हसन उनकी बिरादरी के हैं, साफ-सुथरे हैं, उनके बीच लोकप्रिय हैं। सोचने की बात यह भी है कि बेगूसराय के मुसलमान क्या उस लालू यादव की पार्टी का साथ छोड़ देंगे, जिनका माय समीकरण आज भी अभेद्य माना जाता है। याद रखिए, बिहार में लालू यादव का वोट बैंक हवा-हवाई नहीं, बल्कि ठोस ज़मीनी है। उसमें सेंधमारी करना बड़े-बड़ों के बूते से बाहर है।

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फिर सवाल उठता है कि क्या बेगूसराय के बहुतायत यादव मतदाता सीपीआई उम्मीदवार को वोट दे देंगे?जवाब है- नहीं।वजह- बहुतायत यादव मतदाता लालू यादव की पार्टी का साथ किसी कीमत पर नहीं छोड़ सकते। वो भी तब, जब लालू यादव जेल में हैं, यह संभव ही नहीं है कि बेगूसराय समेत बिहार के बहुतायत यादव मतदाता राजद के खिलाफ वोट करें।फिर सवाल उठता है कि क्या बेगूसराय के बहुतायत कुर्मी मतदाता सीपीआई उम्मीदवार को वोट दे देंगे?जवाब है- नहीं।वजह- कुर्मी मतदाता अपने स्वजातीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले और नीतीश कुमार इन दिनों भाजपा के साथ हैं।

बेगूसराय में आबादी के लिहाज से इन चार बड़ी जातियों के अलावा अन्य ओबीसी, ईबीसी, दलित, महादलित तमाम जातियों के वोट भी कमोबेश तय हैं। वे या तो एनडीए के साथ हैं या फिर महागठबंधन के साथ। बिहार में बड़े-बड़े क्रांतिकारी आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन सच यही है कि वहां की बहुतायत जनता अपनी जातीय लाइन से बाहर जाकर मतदान नहीं करती।फिर दिल्ली में बैठे वामपंथी बुद्धिजीवी और मीडिया के हमारे अनेक साथी कुछ भी समझते रहें, लेकिन बेगूसराय की जमीनी हकीकत उनकी समझ से बिल्कुल अलग है।

आज भी बेगूसराय के बहुसंख्य लोग यह मानते हैं कि सीपीआई उम्मीदवार न सिर्फ़ जेएनयू देशद्रोह कांड में व्यक्तिगत रूप से शामिल थे, बल्कि वे इस मामले में अंडरट्रायल भी हैं और आने वाले दिनों में कोर्ट का फैसला उनके ख़िलाफ़ भी जा सकता है। लोगों को पता है कि दिल्ली पुलिस इस मामले में उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट तैयार कर चुकी है, लेकिन दिल्ली की केजरीवाल सरकार इसपर कुंडली मारकर बैठी हुई है।इसीलिए मैं बार-बार कह रहा हूं कि नंबर वन और टू की लड़ाई भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह और आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन के बीच ही है। सीपीआई उम्मीदवार विपक्षी वोटों की बंदरबांट करके भाजपा को जिताएंगे, विपक्ष को हराएंगे और स्वयं तृतीय स्थान की शोभा बढ़ाएंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं, लेखक मूल रुप से बेगूसराय के ही रहने वाले हैं)